अध्याय १


‘इंडियन स्कूल ऑफ़ साइंस, इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (आए.एस.एस.ई.टी.)’ में आजकल कैंपस रिक्रूटमेंट का माहौल था. इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष के छात्रों में एक तरफ उत्साह था तो दूसरी तरफ डर. जबरदस्त प्रतिस्पर्धा थी अच्छी संस्थाओं में अच्छा वेतन और अच्छा ओहदा पा लेने की. पर यह भी तय था की आज का दिन पढ़ाकू लड़कों और लड़कियों का दिन था. इनमे से ही कुछ, शीर्ष पायदान वाली अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की, सबसे ऊँची तन्खावों वाली जॉब्स जरूर मार ले जायेंगे. अफवाह यह थी कि गत वर्ष एक इंजीनियरिंग के स्नातक को सालाना एक लाख अमेरिकन डॉलर्स के जॉब की पेशकश हुई थी. ऐसा वेतन नौकरी के शुरुवात में ही पा लेना कोई मजाक बात न थी. सबकी आँखें इस पर टिकी थी कि इस बार बाजी कौन जीतेगा.

‘आए.एस.एस.ई.टी.’ सर्वश्रेठ छात्रों, अति उत्तम प्रोफेसरों और नामी कंपनियों को आकर्षित करने के लिए मशहूर था. क्यों न हो? आखिकार इस कॉलेज की नम्बर एक की रैंकिंग जो थी.

पाँच लाख से अधिक छात्र हर साल इस कॉलेज की प्रवेश-परीक्षा में भाग लेते थे. भारत के सारे संस्थानों की अपेक्षा इस कॉलेज की प्रवेश-परीक्षा सबसे कठिन मानी जाती थी. देश के सबसे मेधावी विद्यार्थी इस स्पर्धा में शामिल होते थे. परन्तु अंत में इंजीनियरिंग की पाँचों शाखाओं को मिलाकर उनमे सिर्फ छह सौ छात्र ही प्रवेश कर पाते थे. अनुपात था ८३३:१ का. ‘आए.एस.एस.ई.टी.’ में प्रवेश लेना बड़ी टेडी खीर थी.

‘आए.एस.एस.ई.टी.’ ने दुनिया भर के अच्छे प्राध्यापकों को इकठ्ठा कर रखा था. देश विदेश की बड़ी व्यावसायिक संस्थाएँ इन प्रोफेसर्स को नियुक्त करने के लिए मोटे वेतनों का लालच दे चुकी थी पर वे इस कॉलेज को छोड़कर और कहीं जाना नही चाहते थे. इस कॉलेज की इतनी अहमियत थी.

इस कॉलेज का इतना दबदबा था कि कैंपस रिक्रूटमेंट के लिए आने वाली नामांकित कम्पनियाँ कॉलेज से निमंत्रण पाने  के लिए कॉलेज की मिन्नतें करते नही थकती. उनमें आपस में सीजन के सर्व प्रथम दिन का न्योता प्राप्त करने की होड़ लगी रहती थी ताकि वे सबसे प्रतिभाशाली लड़के और लड़कियों का इंटरव्यू लेकर उन्हें अपनी कंपनी में शामिल कर सकें. प्रतिभाशाली छात्र रिक्रूटमेंट के पहले दिन ही बहुत आकर्षक जॉब ऑफर्स हथिया लेते थे और उन्हें फिर अन्य दिनों आने वाली कंपनियों में कोई रूचि नही रहती थी.

‘हाई टेक सिस्टम’ कंपनी ने प्रथम दिवस रिक्रूटर की योग्यता प्राप्त कर ली थी. इस कंपनी ने उन्ही चुनिंदा कुछ छात्रों को इंटरव्यू के लिए बुलाया जिन्होंने यूनिवर्सिटी की परीक्षा में कम से कम ३.५ का जी.पी.ए. हासिल किया था जो बहुत मुश्किल हुआ करता था. ऐसी कसौटी पर खरे उतरने वाले छात्रों में शान सबमे अव्वल था.

फिलहाल, शान ‘हाई टेक सिस्टम’ कंपनी की इंटरव्यू कमिटी के समक्ष था. ‘हाई टेक सिस्टम’ भारत की सबसे प्रतिष्ठित कंपनी थी. शान भी उसी टक्कर का था. इंटरव्यू कमिटी में दो तकनीकी मैनेजर्स और मानव संसाधन मैनेजर (ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर) थे.

कंपनी के इन तीन प्रबंधकों और शान के बीच इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी. शान से तकनीकी प्रश्न पूछे जा रहे. दोनों तकनीकी परीक्षक शान के उत्तरों से प्रभावित हो रहे थे. इस बीच ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर कंपनी के फॉर्म में लिखे गए शान के बायोडेटा को फिर एक बार पढ़ रहा था. एक जगह जाकर उसकी नज़र रुक गई. ‘आपका धर्म क्या है?’ इस प्रश्न के उत्तर में शान ने कुछ भी नहीं लिखा था. इस कॉलम को उसने खाली रख छोड़ा था. ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर को कुछ हैरानी हुई. थोड़ी देर के लिए उसने इंटरव्यू प्रक्रिया को रुकवाने की इजाजत ली और अपने दो साथियों की ओर मुखातिब हुआ. उन्हें बायोडेटा फॉर्म दिखाया और कुछ सलाह मशविरा किया. उसके बाद उन्होंने तकनीकी इंटरव्यू लेना बंद कर दिया और इंटरव्यू की आगे की प्रक्रिया ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर को सौंप दी.

मानव संसाधन प्रबंधक ने शान से पूछा, “शान, आपने आपके बायोडेटा फॉर्म में धर्म वाला कॉलम खली छोड़ दिया है. क्या बात है? आपका धर्म क्या है?”

“मुझे मेरे धर्म के विषय में कुछ पता नही है,” शान ने जवाब दिया. “जब मैं छोटा बच्चा था तभी मुझे जन्म देने वाले माता-पिता ने मुझे एक अनाथाश्रम के बाहर त्याग दिया था. मेरे माता और पिता कौन थे, उनके धर्म क्या थे, मुझे नही मालूम. जब मेरे कानूनी माँ जो इसाई है और पिता जो मुस्लिम हैं, उन्होंने मुझे दत्तक लिया उस समय अनाथाश्रम चलाने वाले महानुभाव ने उन्हें एक प्रमाणपत्र दिया था. उसमे उन्होंने मुझे हिन्दू घोषित किया था. उनके पास इसका कोई आधार नही था. वह कभी मेरे जन्मदाताओं से नही मिले थे. उनका यह सिर्फ एक अनुमान होगा. मेरे जन्म देने वाले माँ और पिता के धर्म कुछ भी हो सके होंगे- हिन्दू, मुस्लिम, इसाई, सिख, बौद्ध, यहूदी या कुछ और. अब आप ही बताइये कि मेरा धर्म क्या है?”

मानव संसाधन मैनेजर को शान की इस अजीबोगरीब और अनूठी स्थिति की अधिक जानकारी हासिल करने में रस आने लगा था. इसलिए उन्होंने आगे बात बढ़ाई. “शान, आपने अब तक बिना किसी भी धर्म को अपनाये कैसे क्या मैनेज किया? मेरी सोच यह है कि आजकल हर तरह के शासकीय प्रयोजनों के लिए धर्म से जुडी जानकारी मांगी जाती है. क्या आपके माता-पिता ने इस आवश्यकता को मद्देनजर रखते उनके स्वत: के धर्मों में से आपके लिए कोई एक भी नहीं चुना? या खुद आप किसी एक धर्म का चयन कर सकते थे?”

“यह उनके लिए काफी मुश्किल काम हो गया था. अनाथालय का प्रमाणपत्र मुझे हिन्दू बताता था. मेरी माँ की तरफ से यदि धर्म का चयन करूँ तो मैं इसाई और पिता का धर्म अपनाऊँ तो मुस्लिम. उनके लिए मेरा धर्म क्या हो यह तय करना एक संघर्ष स्वरुप था. दिन बीतते गए. मैं धर्म-रहित था और मुझे मेरी जिंदगी जीने में कोई फर्क नहीं पड रहा था. धर्म न होने के बावजूद मै हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, बौद्ध, यहूदी या अन्य किसी भी धर्म को मानने वालों की तरह ही सोता था, खाता था, गाता था, पढ़ता था. मुझे महसूस हुआ कि धर्म होने या न होने से मेरी सोच में या काम करने में कहीं कोई रुकावट नहीं आ रही थी.”

ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर शान की दलीलों पर थोड़ा मुस्कराये और बोले, “तो फिर किसकी पूजा प्रार्थना करते हो तुम?”

“जब मैं अनाथालय में था तब मैँ और बच्चों के साथ बहुत सारे हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करता था. मुझे गोद लेने के बाद जब मैँ पिताजी के साथ प्रार्थना करता हूँ तो अल्लाह को पूजता हूँ. जब माताजी के साथ प्रार्थना करता हूँ तो ईसामसीह को पूजता हूँ. मुझे लगता है मेरी वजह से ये सब भगवान या तो मेरे से प्रसन्न होंगे या आपस में झगड़ते होंगे या तो कन्फ्यूज्ड होंगे जैसा मैँ इस बात को लेकर शुरुवात शुरुवात में था. अब सब काफी स्पष्ट प्रतीत हो रहा है.”

“आप कहते हैं की इस बारे में स्पष्टता हाल में उभरी है, तो फिर आप अपनी समझ से इन तीन धर्मों में से किसी एक को गले लगा सकते हैं. सही न?”

“आप कृपया बुरा नहीं माने. मेरे हिसाब से सही नहीं है. मुझे एहसास हुआ है कि मैं किसी  संगठित धर्म के टैग के बिना भी अच्छा जीवन बिता सकता हूँ. मैं मुक्त होते का अनुभव करता हूँ. स्वतंत्रता का एहसास मुझे हर वक्त होता है. मैं किसी एक या अन्य धर्मों के द्वारा निर्धारित कई अनावश्यक और अवांछित धारणाओं और नियमों से अपने आप को नाहक जकड़ने के लिये बाध्य नहीं हूँ. और जो मानवता के लिए आवश्यक अच्छाइया हैं, उन्हें तो हमेशा ही मैं आचरण में ला सकता हूँ और लाता हूँ.”

शान की ये बातें सुनकर ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर के साथ वाले दोनों टेक्निकल मैनेजर का कौतुहल बढ़ चुका था. उन्होंने अपनी कुर्सियों को थोड़ा आगे खिसकाया जैसे वे शान आगे क्या कहेगा, सुनने की तैयारी में हों. उनमे से एक ने पूछ ही लिया, “शान, क्या आप अपनी बातों को उदाहरणों के साथ समझा सकते हो?”

“जी हाँ मिसाल के तौर पर- अमुक धर्म में ये खाओ और ये न खाओ का जो अनावश्यक प्रतिबन्ध है उस नियम से मैं मुक्त हूँ. मैं सभी तरह के खाने के पदार्थ खाकर उनके स्वाद का आनंद ले सकता हूँ. किस प्रकार के कपडे पहने जाए और कौन से नहीं का जो धर्मों का प्रतिबन्ध होता है उससे मैं बंधा नही हूँ. मुझे अच्छे लगने वाले सभी तरह के कपडे जिससे दूसरों को कोई हानि न हो, मैं पहन सकता हूँ. मैं हर धर्म में प्रचलित भिन्न भिन्न अभिवादन करने और बधाई देने के प्रकारों का प्रयोग, मेरी खुद की अभिवादन शैली में, बेहिचक और बेझिझक शामिल कर सकता हूँ. मैं आज़ाद हूँ इस धरती पर बसें सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों का भ्रमण करके, उनका नमन करने के आनंद का अनुभव करने के लिये. वह भी बिना किसी पक्षपात के. और यह भी सच है कि यदि मैं दिनों, हफ़्तों या महीनों तक भी किसी मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, चर्च या किसी और धार्मिक स्थानों पर न भी जाऊं, तो भी मैं खुद को दोषी नही मानता यदि मानवता की ओर मेरी प्रतिबद्धता कायम है. बिना किसी धर्म का चोला पहने मैं हमेशा सच बोलता हूँ, दूसरों क़े प्रति दयालु हूँ, सभी का आदर करता हूँ. मैं चोरी नही करता, मैं भ्रष्ट नही हूँ. दूसरों की संपत्ति या बीवी को छीनने या हथियाने का ख्याल कभी मेरे मन में नही आता. मैं किसी से युद्ध करवाने या करने का इरादा नही रखता. मैं किसी का किसी भी तरह से बुरा नही सोचता. क्या अब आपको नही लगता कि मैं किसी संगठित धर्म को अपनाये बिना ठीक-ठाक हूँ?”

मानव संसाधन मैनेजर शान के इस प्रकार के उत्तर से हैरान सा हो गये. थोड़ा संभलने के बाद, थोड़ा सोचकर वह बोले, “आप ने जो कुछ कहा वह सही हो सकता है. फिर भी मैं यह मानने की स्थिति में नहीं हूँ कि कोई इंसान किसी धर्म के बिना अपना वजूद बनाये रख सकता है और अच्छा जीवन-यापन कर सकता है. छोड़िये इस विषय को. पर फिलहाल आपको बायोडेटा फॉर्म में आपका धर्म क्या है यह लिखना पड़ेगा. हमारे कंपनी कि रिक्रूटमेंट की प्रक्रिया कम्प्युटराइज़्ड है और इसके लिए धर्म का कॉलम भरना अनिवार्य है. इसमें आप कोई भी धर्म लिख दीजिये. आप चाहें तो आपके पिता का मुस्लिम धर्म लिख सकते हैं या आपकी माता का इसाई धर्म लिख सकते हैं. यदि ये दोनों ही मंजूर न हो तो अनाथाश्रम से मिले प्रमाणपत्र के अनुसार हिन्दू लिख सकते हैं. तब सब ठीक हो जायेगा.”

शान ने कहा, “सभी धर्मों की भूलभुलैयाओं से बाहर निकलकर, मुक्ति के अनुभव का आनंद लेने के बाद, सिर्फ एक नौकरी की खातिर केवल एक धर्म में मैं अटकना नहीं चाहता. आपकी कंपनी की नीतियों के अनुसार काम करने की आपकी मजबूरी को मैं समझ सकता हूँ.”

ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर बोले, “आप हमें गलत न समझे. आप पर हम किसी किस्म का दबाव नहीं डाल रहे. हम सिर्फ आपके बायोडेटा फॉर्म को और अपने रेकॉर्ड्स को पूरा होते देखना चाहते थे. हम इंटरव्यू यहीं समाप्त करते हैं. अन्य उम्मीदवारों के इंटरव्यूज हो जाने के बाद हम हमारा निर्णय आपको सूचित करेंगे.”

शान ने तीनों इंटरव्यू लेने वालों को धन्यवाद दिया और उनसे हाथ मिलाया. बाहर आते समय उसकी नज़र कंपनी के नाम ‘हाई टेक सिस्टम’ पर पड़ी और विशेष रूप से, ‘हाई टेक’ वाले अंश को पढ़कर एक व्यापक मुस्कान चेहरे पर लाये बिना वह रुक न सका.

उसी दिन शाम को पता चला कि ‘हाई टेक सिस्टम’ कंपनी ने उससे कम जी.पी.ए. वाले दो छात्रों का चयन कर लिया और उसे नज़रअंदाज़ कर दिया था- कारण केवल शान को पता था!

यह कोई उसका पहला अनुभव नही था. कुछ और संस्थाओं ने उसे अपने कार्यालयों में कुछ दिनों पहले साक्षात्कार के लिए बुलाया था और इसी कारण से उसे नही चुना जिस कारण से ‘हाई टेक सिस्टम’ ने उसे नही चुना था. वह नाराज़ नही था. न उसे किसी से शिकवा-शिकायत थी. उसे अब दुनियादारी की परख हो रही थी. यदि आपको नौकरी पाना है तो आपका किसी संगठित धर्म से जुड़ा होना जरूरी है. 

पर अब तक शान ने धर्म-विरहित आजादी की हवा में सॉंस लेना सीख लिया था और किसी धर्म, जाति, उपजाति, उप-उपजाति में वर्गीकृत हुए बिना जीने का फैसला कर लिया था.

शान के कानूनी पालक, युसूफ और एलिस, इस नाजुक और संवेदनशील मामले में शान के साथ थे. उन्होंने उसे उसके खुद के पसंद का धर्म चयन करने की स्वीकृति दे दी थी. इसीके अनुसार शान ने ऐसा फैसला लिया था.


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