अध्याय ६

दिन का कौन सा प्रहर चल रहा है, इससे बेखबर, मेधावी उसके शयन-कक्ष में अलसाये तन-मन से बिस्तर पर लेती हुई थी. इंजीनियरिंग डिग्री कोर्स की अंतिम परीक्षा हो चुकी थी तो छुट्टियों सा मौसम था. परीक्षा के लिये किये गए परिश्रम के बाद मौज-मस्ती करने का ऐसा सुनहरा मौका अब हाथ लगा था. मेधावी उसका भरपूर आनंद ले रही थी.

उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी. शान ने फ़ोन किया था.

“हाय मेधावी. बहुत बहुत बधाइयाँ. आखिकार तुमने जिसके लिये जी-तोड़ मेहनत की थी वह करके दिखा ही दिया. फिर से एक बार और अभिनन्दन. अभी अभी परीक्षा के नतीजे आये हैं.”

“क्या मैंने टॉप कर दिया?” मेधावी को अपनी ख़ुशी को काबू में रखना मुश्किल हो रहा था.

“तो क्या तुमने टॉप करने का इरादा कर लिया था? तब तो मुझे बधाइयाँ वापस लेना पड़ेंगी. मुझे नहीं पता था कि तुम मुझे पीछे छोड़ना चाहती थी, हराना चाहती थी. अब जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो तुम्हारी ऐसी सोच मुझे कुछ चोट सी पहुँचा रही हैं. थोड़ा दुःख हुआ.”

“हे, शान, शांत हो जाओ. मेरा ऐसा मतलब कतई नहीं था. तुमने नाहक गलतफहमी कर ली. क्या मैं तुम्हारा ताज कभी छीनना चाहूंगी भला? तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो? मैंने मज़ाक में कुछ बोल दिया और तुम सच में नाराज़ हो गये. गुस्सा छोडो और बताओ कि मेरे मार्क्स तुमसे बहुत कम तो नहीं हैं न हमेशा जैसे?” इस अंतिम बार भी टॉप न कर पाने की वजह से मेधावी की आँखे भर आईं.

“अबकी बार तुम्हारे बहुत ही अच्छे मार्क्स आये हैं. इसीलिये तो मैंने तुम्हे तुरंत फ़ोन किया था. कुछ और मार्क्स यदि तुम ले आती तो यूनिवर्सिटी-टॉपर हो जाती. फिर से बधाइयाँ. मैं दोस्तों से निपट लूँ तो बहुत जल्दी तुमसे मिलने आ रहा हूँ.”

फिर हर साल से जो किस्सा मेधावी करती आ रही थी उसे एक बार और दुहरा दिया. उसने रोना शुरू कर दिया. बहुत देर तक रोती रही. आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. पर उसके लिये यह कोई नई बात नहीं थी. शान से फिर एक बार हार कर वह शान से बेतहाशा नाराज़ हो गई. इस वक्त उसकी नाराज़गी आँसुओं से धुल नहीं पाई. वह उसके ह्रदय के अंत:करण तक पहुँच चुकी थी, समा चुकी थी. वह नाराज़ ही नहीं थी बल्कि अपने आप को अपमानित महसूस कर रही थी. उसका इस प्रकार से महसूस करना रुका नहीं, घड़े-भर आँसू  बहाने के बाद भी.

और उसने शान से इस अपमान का बदला लेने की योजना बना ली. वह भी शान के दिल को दुखाना चाहती थी.

कुछ देर बाद, उस दिन, जब शान मेधावी से मिलने आया, मेधावी ने शान का अभिनन्दन करते वक्त अपने होंठ उसके होठों पर रख दिए. अब तक वह परफेक्ट किस के बारे में शान से बहुत कुछ सीख चुकी थी. शान को वह न जाने कितने मिनटों तक चूमती रही. फिर मेधावी ने शान को ठीक सामने बिठाया और उसकी तरफ एक-टक देखती रही. उसकी आँखों के कोनों में आँसुओं की हल्की सी बूंदें अभी भी देखी जा सकती थी.

शान ने सोचा कि मेधावी काफी भावुक हो गई है. उसने पूछा, “मेधावी, क्या बात है? तुम इतनी उदास क्यों दिख रही हो?”

मेधावी ने आँसू पोछते हुए कहा, “अब अंतिम साल की परीक्षा हो चुकी है और परिणाम भी आ गए हैं. कुछ ही दिनों बाद हम अपने अपने अलग-अलग रास्तों पर चल पड़ेंगे. पता नहीं फिर मुलाकात का मौका आये या न आये. फिर भी एक दूसरे से अलग होने से पहले मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ.” इतना कहकर वह रुकी और शान की ओर देखा.

शान ने उसे प्रोत्साहित करते हुए कहा, “हाँ, हाँ. बोलो मेधावी.”

“मैं जो कुछ भी बोलूंगी, उसका गलत अर्थ मत लगाना, मैं अपने आप को तुम पर थोपना नहीं चाहती. पर क्योंकि हाल ही में मुझे एक मीठा एहसास हुआ है उसे मैं तुम्हारे साथ बाँटना चाहती हूँ. उसका तुम पर इजहार करना चाहती हूँ क्योंकि उसका सम्बन्ध तुम्ही से है.” मेधावी एक बार फिर उसकी बात कहते कहते रुक गई.

शान असमंजस में पड़ गया कि वह ऐसा क्या कहना चाहती है कि जो उससे सम्बंधित है.

“मेधावी, कहो ऐसी क्या बात है?”

मेधावी कुछ सकुचाते, कुछ लजाते बोली, “शान, मैं तुमसे प्यार करने लगी हूँ.”

“वॉव, यह तो बहुत ही बड़ी खबर है और बड़ी अच्छी भी! मैं तो अब तक इसे केवल मेरा मामला समझता था, एक तरफ़ा प्यार वाला. मैं न जाने कितने दिनों से मेरे प्यार का इजहार करने से अपने आप को रोकता रहा. मुझे डर था कि तुम मुझे मना तो नहीं कर दोगी?”

और फिर न जाने कितनी देर तक दोनों ने एक दूसरे को अपने बाहुओं में जकड़ रखा था.

शान मेधावी से बोल पड़ा, “क्या तुम मुझसे शादी करोगी, मेधावी?”

मेधावी इसी क्षण की प्रतीक्षा में थी. उसने सोचा कि अब सही मौका आ गया है उसके प्लान को सुचारु रूप से कार्यान्वित करने का.

उसने शान को खुद के बहुत करीब खींच लिया और बोली, “आज मैं अपने जीवन में सबसे अधिक खुश हूँ, शान. मैं यह बात तुम्हारे मुँह से सुनने के लिए उसी दिन से तैयार हो गई थी जिस दिन हम पहली बार टकराये थे. अच्छा यह बताओ कि हमें तुरंत शादी कर लेनी चाहिए या थोड़े समय के बाद? तब तक हमें जॉब्स भी मिल जायेंगे और हम दोनों अपने अपने कॅरियर में सेटल भी हो जाएंगे. हाँ, एक बात और. मेरे माता-पिता उनके होने वाले दामाद से भी मिलना चाहेंगे. उन्होंने अब तक तुम्हे दूर-दूर से देखा जरूर है पर अब वे तुम्हे अच्छी तरह से मिलना चाहेंगे. आखिरकार उन्हें उनकी बेटी तुम्हारे हाथ में सौंपना जो है. हैं न? मैंने उन्हें हमारे एक दूसरे के करीब आने के विषय में थोड़ा इशारा कर रखा है और उसी दिन से वे तुमसे मिलने के लिए उत्सुक हैं.”

“उनकी उत्सुकता एकदम उचित और स्वाभाविक है. मैं उनसे अवश्य मिलूंगा. यह मेरा सौभाग्य होगा.  कब मिलना ठीक रहेगा? उनसे मिलकर उनकी सम्मति और आशीर्वाद लेने के बाद तुरंत शादी कर लेना जरूरी नहीं है. हम अपने अपने जॉब्स में सेटल हो जाएँ पहले. फिर शादी भी कर लेंगे. तुम भी तो यही चाहती हो. पर सबसे पहले तुम्हारे माता-पिता से इंटरव्यू की औपचारिकता पूरी करना बहुत महत्वपूर्ण है.” शान मेधावी की तरफ देखकर मुस्कराया.

मेधावी भी खुलकर मुस्कराई क्योंकि शान को अपने माता-पिता से मिलवाना मेधावी के प्लान का आवश्यक भाग था. उसने कहा, “उन्हें तुमसे मिलकर बहुत ख़ुशी होगी. उनकी सम्मति मिलना तो औपचारिकता मात्र है.”



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