अध्याय २१

अब तक संस्कार को दूसरी डायरी यानी एड्रेस बुक मिल गई थी जिसमे पते और फोन नंबर लिखे थे.

उसने उस अपार्टमेंट के लैंडलाइन नंबर को डायल किया जहाँ मेधावी जापान में रह रही थी. दूसरी तरफ कोई घंटी नहीं बजी. उसने कई बार कोशिश की लेकिन सारी टेलीफोन लाइनें बंद थीं. यह सुनामी का प्रभाव था. प्राकृतिक आपदाओं ने हमेशा मानव निर्मित तकनीकीयों को मात दी है.

“अब क्या करें?” संस्कार ने खुद से पूछा. “अगला सबसे अच्छा कदम होगा सैन डिएगो में मेधावी के कार्यालय से संपर्क करना. उसने ऐसा ही किया. लेकिन मेधावी की कंपनी का कार्यालय भी जापान में अपने लोगों से संपर्क करने की स्थिति में नहीं था. पूरी संचार प्रणाली बाधित हो गई थी.

उसने अपनी गाड़ी गैरेज से बाहर निकाली और 'ह्यूमैनिटी फोरम' के कार्यालय में पहुँच गया. उसने रिसेप्शनिस्ट से मुलाकात की.

उसने खुद का परिचय दिया और अनुरोध किया, "क्या आप कृपया मुझे जापान में अपनी टीम के ठिकाने दे सकते हैं? मुझे खबरों से पता चला है कि आपके कार्यकर्ता बचाव अभियान शुरू करने के लिए जापान पहुँच चुके हैं. मैं उनसे जापान जाकर व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहता हूँ ताकि मैं उनसे अपनी पत्नी को बचाने के लिए आग्रह कर सकूँ. मेरी पत्नी इस समय जापान के उन इलाकों में से एक में है जो सुनामी से प्रभावित हुए हैं.”

रिसेप्शनिस्ट ने उसे वे सब पते दिये जहाँ जापान में उसे 'ह्यूमैनिटी फोरम' के सदस्य मिल सकते थे.

संस्कार ने सबसे पहली उड़ान से जापान की यात्रा के लिए हवाई टिकट खरीदा. उसने जापान की यात्रा के संबंध में आवश्यक औपचारिकताएँ अति-शीघ्रता से पूरी की. उसके लिए हर मिनट कीमती था. मेधावी को बचाना संस्कार का सर्वोपरि उद्देश्य था.
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भारत में मेधावी के माता-पिता भी उतने ही चिंतित थे. उन्हें पता था कि एक वर्ष की नियुक्ति पर मेधावी जापान में थी. उन्होंने फोन पर उससे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. भारत से जापान के सुनामी प्रभावित इलाकों से संपर्क साधना नामुमकिन सा हो गया था.

तब उन्होंने उनके दामाद संस्कार से संपर्क किया. संस्कार ने उनसे कहा, “मैं भी फोन पर मेधावी तक नहीं पहुँच सका और अब मैं पहली उड़ान से जापान जा रहा हूँ. मैं हवाई जहाज से ही बोल रहा हूँ. कृपया आप चिंता न करें. मैं वहाँ पहुँचकर अमेरिका की संस्था ‘ह्यूमैनिटी फोरम' की टीम से मिलूंगा जो वहाँ पहले ही बचाव अभियान शुरू कर चुकी है.”

संस्कार का आश्वासन मेधावी के माता-पिता को सांत्वना नहीं दे सका, उन्हें संतुष्ट नहीं कर पाया. इसलिये उन्होंने भी जल्द से जल्द जापान जाने की अपनी तैयारी शुरू कर दी. इसकी औपचारिकताएँ पूरी करने के लिए उन्हें दो दिन लग गये. अब वे भी जापान जाने वाली उड़ान में बैठने ही वाले थे.

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केली और शान साथ-साथ काम कर रहे थे. उन्हें सेंडाई क्षेत्र में फ्रंटलाइन बचाव अभियान सौंपा गया था. वे दोनों बिना किसी विश्राम के कई घंटों तक अथक रूप से काम कर रहे थे. अंत में वे बुरी तरह से थक चुके थे.

शान ने केली को सुझाव दिया. "चलो एक ब्रेक ले लें. शायद एक घंटे के आराम से कुछ अच्छा लगेगा. कुछ आराम करने के बाद हम बेहतर प्रभावशीलता और दक्षता के साथ और भी लंबे समय तक काम कर सकेंगे.”

केली काफी परेशान सी थी. उसने टिप्पणी की, "इस तरह की परिस्थितियों में मानव-जीवन इतना क्षणिक लगता है. यह बहुत ही निराशाजनक वातावरण है. अकेले सेंडाई क्षेत्र में सुनामी के फैलने के कुछ ही घंटों के भीतर कुल हताहतों और मृतकों की संख्या किसी भी कल्पना को मात दे गई है. जब हम एक को बचाते हैं तो दो पहले से ही मृत पाए जाते हैं. कुल १३,००० मौतें पहले से ही रिपोर्ट की जा चुकी हैं और लगभग १६,००० लोगों तक पहुंचने की संभावना है. घायल लोगों की संख्या ६,००० पर अनुमानित है और ३,००० लोग लापता हैं.”

वे बातचीत कर रहे थे और भूख को शांत करने के लिए कुछ खा-पी रहे थे. उनके पास सुनामी पीड़ितों के वितरण के लिए शुष्क खाद्य पदार्थों और पानी की बोतलों की अच्छी-खासी आपूर्ति थी. उन्होंने अपने लिए कुछ भोजन और पानी उसी में से निकाल लिया.

"एक बहुत ही परेशान करने वाला तथ्य प्रकाश में आया है. यह कुछ बचाव टीमों के पीड़ितों के प्रति भेदभावपूर्ण व्यवहार के बारे में है. इन विशेष बचाव दलों को कुछ संगठित धर्मों और राष्ट्रीयताओं द्वारा प्रायोजित किया गया है. इसलिए वे उनके स्वयं के समुदायों और राष्ट्रों के पीड़ितों को बचाने में स्पष्ट रूप से पक्षपात करते दिख रहे हैं. यह वास्तव में दुखद रवैया है.”

"यह अच्छा है कि हम 'ह्यूमैनिटी फोरम’ से हैं और हम हर व्यक्ति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. हमने उन सब यक्तियों  को बचाया जिन्हे धर्म-प्रायोजित बचाव दलों ने भाग्य-भरोसे जीने-मरने के लिए छोड़ दिया था. अभी अभी एक दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई. एक व्यक्ति को हर एक ऐसे बचाव दल ने उसके अनुरोध करने के बावजूद भी नहीं बचाया क्योंकि वह उनके धर्म और राष्ट्र का नहीं था. कुछ देर बाद हमारी टीम वहाँ पहुँची और उस व्यक्ति को बचाया.”

केली और शान ने अगले आधे घंटे तक चुप रहने का फैसला किया ताकि उचित रूप से विश्राम किया जा सके. इसलिये वे उतने समय के लिये चुप रहे.

केली ने आखिरकार चुप्पी तोड़ी और बात की. "शान, मैंने कुछ समय पहले उल्लेख किया था कि जीवन कितना क्षणिक लगता है. आप इस पल जीवित हैं और अगले पल आप चले गए हैं.”

उसने थोड़ी देर रुककर शान को अर्थपूर्ण नज़रों से देखा.

उसने बात करना जारी रखा. “मैं सोचती हूँ कि यदि मेरा इस पल में मरना नियत है तो फिर मैं मरने से पहले कौन सा सबसे महत्वपूर्ण काम करके मरूंगी?”

" तुम इस तरह क्यों सोचती हो? ऐसा बिलकुल मत सोचो.”

"मैं जो कह रही हूँ मुझे उसे कहने दो. मरने से पहले मुझे अपने सबसे महत्वपूर्ण काम को पूरा करने से लिये सिर्फ एक पल पकड़ना होगा अन्यथा वह महत्वपूर्ण काम अपूर्ण रह जाएगा. और इस क्षण मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण काम यह है कि मैं तुमसे मेरा प्यार जाहिर करूँ. कौन जानता है कि ऐसा करने से पहले मैं जीवित न रहूँ. शान, मैं अभी इस वक्त तुमसे कहती हूँ कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ."

शान ने तुरंत उसे अपनी बाहों में जकड लिया और कहा, "इस पल के लिए मेरा भी यही सबसे महत्वपूर्ण काम है. केली, मैं भी तुमसे बहुत प्यार करता हूँ."  

शान ने अपने होठ केली के होठों पर रख दिये और वे दोनों न मालूम कितनी देर तक एक दूसरे की बाहों में जकड़े रहे.

"शान, मुझे सच-सच बताओ, क्या तुम्हे अभी भी मेधावी याद आती है?"

"नहीं, केली. वह पूरी तरह से मेरे तन-मन से बाहर है.”

"मेधावी ने तुम जैसी एक अच्छी मछली को हाथ में आ जाने के बाद भी छोड़ दिया. मैं ऐसी गलती कभी भी नहीं करूंगी.”

उन्होंने एक दूसरे को फिर से गले लगा लिया.

"अब हम पूरी तरह से तरो-ताज़ा हो गये हैं. केली, चलो हम आगे बढ़ें और कुछ और लोगों को बचाएँ.”

"चलो चलते हैं, शान.”


दोनों ने लोगों को बचाने के अपने मिशन को फिर से शुरू किया.


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