अध्याय २३

अगले दिन शान सुबह बहुत जल्दी उठ गया और उस दिन के बचाव अभियान पर केली के साथ बाहर निकलने से पहले वह मेधावी से मिलने गया.

जिस वक्त शान जाग गया था लगभग उसी वक्त केली भी जाग गई थी. लेकिन वह बिस्तर पर अलसाई सी लेटी रही. 

वह यह जानने को उत्सुक हो गई कि शान क्या कर रहा है. उसने देखा कि शान शिविर की दिशा में चल पड़ा था. केली उसके पीछे-पीछे हो ली. उसका अंदाज़ था कि शान मेधावी से मिलना चाहता है. वह शान से प्यार करती थी. इसलिये वह मेधावी और शान के बीच के संबंधों को समझना चाहती थी.

शान मेधावी के बिस्तर तक पहुँचा और उसके पास बैठ गया. उसने मुस्कुराकर मेधावी से पूछा, “इस सुबह तुम कैसी हो, मेधावी?"

"मैं अच्छी हूँ. मैं कल तुम्हे ठीक से धन्यवाद नहीं दे सकी.”

“किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं है. क्या हम पुराने दोस्त नहीं हैं? दोस्तों के बीच औपचारिकताओं की कोई जगह नहीं होती.”

मेधावी को खुद पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी. उसकी आँखों में आँसू थे.

वह धीरे से बोली, "मुझे खेद है शान. मै तुम्हे समझ नही पाई. मैंने हाल ही में कुछ-कुछ समझना शुरू कर दिया है. तुम मुझे बताते थे कि धर्म और जातियों जैसी छोटी चीजों से मानवता कहीं ज्यादा ऊपर होती है. मैं कितनी गलत थी.”

"मेधावी, ओके. आराम करो.”

"नहीं, मुझे तुम्हे यह बताने की ज़रूरत है कि मैं पूरी तरह से बेवकूफ थी. मैं अति महत्वाकांक्षी और बहुत ईर्ष्यावान थी. मैं मूर्ख थी, शान.”

"मेधावी, मुझे तुम्हे सबसे पहले यह बताना भूलना नहीं चाहिए कि तुम्हारे पति कल यहाँ पहुँचे और शाम को वह तुम्हे मिलने आये थे. उस समय तुम सोई हुई थी. इसलिए हमने तुम्हे जगाना उचित नहीं समझा. वह जल्द ही तुमसे मिलेंगे. तुम पूरे दिन आराम करो. फिर डॉक्टरों से परामर्श करने के बाद तुम तुम्हारे पति के साथ हॉटेल जा सकोगी.”

केली मेधावी के बिस्तर से थोड़ी दूर खड़ी थीं. वह मेधावी या शान की दृष्टि से बाहर थी लेकिन वह शान और मेधावी के बीच हुई पूरी बातचीत सुन सकती थी और सुन भी रही थी.

तब उसने देखा कि शान मेधावी के बिस्तर से उठा और दूर जाकर फिर दोबारा मेधावी की तरफ वापस लौट गया. केली को बहुत उत्सुकता हुई यह जान लेने की कि शान फिर से मेधावी से क्यों मिलना चाहता है.

इसलिए केली वहीँ खड़ी रही जहाँ वह पहले से तैनात थी. फिर उसने शान और मेधावी के बीच हो रही सारी बातें सुनी.

शान मेधावी के पास पहुँचा और बोला, "अरे एक और बात कहनी है. मुझे एक बात की बहुत उत्सुकता है. तुमने तुम्हारे पास अभी भी मेरा रूमाल क्यों रखा है?”

मेधावी मुस्कुराई. उसने जवाब दिया, "शान, जब मैंने तुम्हारे साथ अमेरिका तक की यात्रा की और मुझे उस दिन तुमने अंजी के अपार्टमेंट में छोड़ा, मैं उस समय हर पल तुमसे बहुत नाराज थी. उसके ऊपर मैंने हवाई अड्डे पर कन्वेयर से मेरा सामान निकालते वक्त खुद को चोट पहुँचाई और तुमने अपने रूमाल से मेरा घाव बाँध दिया. उसकी वजह से भी मैं गुस्से में थी. और क्रोध की आग में जलते रहने की वजह से तुम्हारे रूमाल को तुम्हे वापस करना भूल गई.”

"उस वक्त मैं रूमाल को स्वीकार भी नहीं करता क्योंकि वह तुम्हारे पैर के जख्म क़े लिए ज्यादा जरूरी था.”

"फिर भी मैं तुमसे जुडी हर चीज से छुटकारा पाना चाहती थी. लेकिन तुम्हारा रूमाल मेरे साथ रखा रहा. और फिर मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या हुआ, मैं इसे फेंक नहीं सकी. इतना ही नहीं, हाल के महीनों में मैंने इसे मेरी पर्स में हर समय मेरे साथ ले जाना शुरू कर दिया. पता नहीं क्यों, पर मैं महसूस करने लग गई कि तुम्हारा रूमाल हमेशा मेरी रक्षा करेगा. मैं बहुत बेवकूफ और अंधविश्वासी हूँ. अब देखो न, अंत में तुम्हारे रूमाल ने ही मुझे आज बचा लिया. सचमुच इसने मुझे दूसरा जीवन दिया है. शान, मैं तुम्हारी बहुत ऋणी हूँ.”

उसने आगे कहा, "मैं उस इमारत की छत से जहाँ मैंने आश्रय लिया था, वहाँ से गुजरने वाली प्रत्येक बचाव टीम की ओर रूमाल लहरा रही थी लेकिन हर किसी ने मुझे अनदेखा कर दिया. मुझे कारण पता नहीं था. तब मुझे याद आया कि हिंद महासागर में होने वाले अंतिम बचाव अभियानों में भी बचाव कार्यकर्ताओं ने नस्ल, रंग, धर्म, जाति और राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव किया था. तो मैंने सारी आशा छोड़ दी. मौत हर एक मिनट सीधे मेरे चेहरे पर निगाहें टिकाये थी. लेकिन मैंने बचावकर्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने रूमाल का लहराना जारी रखा और अंत में तुम्हारा रूमाल मेरे लिए इतना भाग्यशाली साबित हुआ.”

"हाँ, यह रूमाल ही था जिसने मुझे सुराग दिया कि रुमाल को पकड़ने वाली लड़की मेधावी ही होनी चाहिए. मैंने तुम्हे छोड़कर कभी भी किसी के पास अपने किसी भी रूमाल को नहीं छोड़ा था. जब मैंने दूरबीन से देखा तो मुझे रुमाल पर मेरा नाम बुना हुआ दिखा. मेरी माँ ने मेरे सभी रूमालों पर मेरा नाम बुन रखा था. मैंने एक बार फिर से यह पुष्टि करने के लिए दूरबीन से देखा कि क्या वह लड़की वास्तव में मेधावी ही है.”

"शान, भले ही अब तुम मुझे उस रूमाल को वापस करने के लिये पूछो तो भी मैं इसे कभी वापस नहीं लौटाऊँगी. यह मेरा निर्णय है.”

केली छुप कर गुप्त रूप से इस वार्तालाप को सुन रही थी.

केली ने सोचा, "क्या यह लड़की अभी भी शान से प्यार करती है? और शान के बारे में क्या? क्या वह भी?”

शान के उनके निवास स्थान तक लौटने से पहले केली वहाँ से चल दी थी और निवास स्थान पर पहुँच चुकी थी.

उसके बाद शान और केली ने उस दिन का बचाव अभियान शुरू कर दिया. शान को भनक भी नहीं थी कि केली ने सुबह सुबह मेधावी के साथ हुई उनकी बातचीत सुन ली थी.

उस दिन शान ने केली के बर्ताव में कुछ बदलाव महसूस किया. केली ने रोज की तरह बचाव काम में अपना कर्तव्य बखूबी निभाया. पर वह शान से व्यक्तिगत तौर पर वह दूर-दूर रही. शान इस तरह के उसके व्यवहार पर आश्चर्यचकित था. वह सोचता रह गया कि ऐसी क्या बात हो गई जिससे केली में अचानक बदलाव आया है?

वे पूरे दिन लोगों को बचाने में बहुत व्यस्त रहे और उन्हें किसी तरह की व्यक्तिगत बातचीत आदान-प्रदान करने का कोई समय नहीं मिला. सच तो यह भी था कि केली शान क़े करीब जाने से कतराती रही थी.

......................

संस्कार मेधावी के माता-पिता के साथ लगातार संपर्क में था. वे दोनों भारत से निकलकर आज सुबह जापान पहुँच गए थे. उनके हॉटेल के कमरे में संस्कार ने उनसे मुलाकात की.

संस्कार ने उनसे कहा कि वह शान से मिला था और उसके साथ जाकर शिविर में उसने मेधावी को देखा. चूँकि वह पहले से सो रही थी और आराम कर रही थी वह उससे बात नहीं कर सका.

मेधावी सुरक्षित है जानकार मेधावी के माता-पिता बहुत खुश थे. लेकिन संस्कार के मुँह से शान का नाम सुनकर उलझन में पड़ गये. मेधावी के पिता ने पूछा, "शान? वह यहाँ कैसे? उसका इन सबसे क्या संबंध?”

"शायद आप शान को जानते होंगे. भारत में विश्वविद्यालय में पढ़ते समय मेधावी और शान सहपाठी थे. शान अब अमेरिका के एक मानवतावादी संगठन ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के लिए काम करता है. शान ने उसकी सहयोगी केली के साथ मिलकर मेधावी के जीवन को बचाया.”

"क्या वास्तव में मेधावी को शान ने बचाया?” आश्चर्य और साथ ही संदेह मेधावी के पिता के चेहरे पर छा गया.

"हाँ, केवल शान की वजह से ही मेधावी आज जीवित है.”

मेधावी के पिता ने यह सुनकर कुछ सार्थक संकेतों के साथ अपनी पत्नी की ओर देखा. लेकिन संस्कार उन्हें ऐसा करते देख नहीं पाया.

संस्कार ने कहा, "चलिए. बचाव शिविर में जाएँ.”

अभी वे शिविर में मेधावी के साथ थे.

मेधावी ने संस्कार को संबोधित किया, "संस्कार, तुम शान को कैसे जानते हो? तुमने अभी बताया कि तुम कल उससे मिले थे.”

"मैं उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता लेकिन तुम्हारी डायरी से उसके बारे में पता चला.”

संस्कार के उसकी डायरी के जिक्र से मेधावी चौंक गई. थोड़ी बेचैन हुई. थोड़ी घबराई. जापान पहुँचने के बाद उसे एहसास हुआ कि वह सैन डिएगो में घर पर ही अपनी डायरी भूल से छोड़ आई थी. वह इसके बारे में काफी डर रही थी क्योंकि डायरी में इतनी सारी ऐसी बातें लिखी थी जिन्हें वह समय के इस मोड़ पर संस्कार पर जाहिर होने देना नहीं चाहती थीं. लेकिन उसने अब सोचा कि नुकसान तो अब हो ही चुका है.

फिर भी उसने अपने माता-पिता की उपस्थिति में डायरी के विषय को आगे जारी नहीं रखा. उसने फैसला किया कि वह जल्द ही संस्कार के साथ उन सभी मुद्दों पर चर्चा करेगी जो उसे परेशान कर रहे थे क्योंकि संस्कार को डायरी पढ़ने के बाद सब कुछ पता चल चुका था.

संस्कार भी डायरी में लिखी मेधावी की सोच और परेशानियों पर चर्चा करने के लिये मानसिक रूप से तैयार था. लेकिन वह मेधावी के माता-पिता की उपस्थिति में इस विषय पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता था.


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