अध्याय २०

मेधावी ने अपनी डायरी दिनों के क्रम में लिखी थी:

पहला दिन:

यह मेरे जीवन का पहला दिन है जब मैंने पहली बार डायरी लिखने का विचार किया है. मैं डायरी लिखने वालों में से नहीं हूँ. लेकिन आज की घटना ने मुझे मेरी कल्पना से परे परेशान कर दिया है और मुझे मेरी भावनाओं को कहीं तो बाहर निकालना होगा.

तो क्या हुआ अगर मैंने अपने करीबी दोस्त अंजी की कंपनी में ऑमलेट खा लिया?

इसे मत खाओ. उसे मत खाओ. केवल इन चीजों को ही खाओ. क्या बकवास है? यह मजेदार पर हास्यास्पद और बेतुकी बात है. फिर भी हर धर्म ऐसी अनुचित अनुमतियों और प्रतिबंधों को निर्धारित करता है. अरे भाई, जो भी पसंद है उसे खाने में क्या नुकसान है? इस तरह के व्यक्तिगत मुद्दे में कोई धर्म क्यों और कैसे प्रवेश करता है?

मुझे संस्कार की मेरे एक ऑमलेट खाने के ऊपर टिप्पणी करने से नफरत हुई. मैं इसे सामान्य रूप से नहीं खाती हूँ. मैं अभी भी अन्य मांसाहारी पदार्थ नहीं खाती. लेकिन ऑमलेट का स्वाद मुझे अच्छा लगने लगा है. और इसलिए मैंने खा लिया. क्या यह कोई पाप है कि संस्कार ने इसे राई का पहाड़ बना दिया?

दूसरा दिन:

मुझे इस शुद्धिकरण प्रक्रिया से नफरत है. हर महीने जब मेरे पीरियड्स समाप्त होते है संस्कार मेरा शुद्धिकरण करता है. क्या बेहूदापन लगा रखा है?

उसने यह तमाशा उस दिन भी किया जब मैंने ऑमलेट खा लिया था जैसे कि मैं ऑमलेट खाने के बाद अशुद्ध हो गई.

मुझे बहुत अधिक अपमानित महसूस होता है जब वह गंगा नदी का पानी को मेरे ऊपर और घर पर और फ्रिज पर छिड़कने का काम करता है.

मेरी माँ भी ऐसा ही किया करती थी. अब मुझे याद आया कि जब वह इस शुद्धिकरण का कार्यक्रम मुझ पर करती तब भी मैं चिढ जाती थी.

मैंने कभी उसकी सोच पर सवाल नहीं उठाया क्योंकि कि वह मुझसे बड़ी है और मुझसे बेहतर जानती है. लेकिन आज मैं वास्तव में खुद से पूछना चाहती हूँ, "क्या इस शुद्धिकरण में कोई अर्थ है?" मेरा जवाब है, "कोई नहीं.” इसलिए मैं संस्कार द्वारा मेरा इस तरह का अपमान सहन नहीं कर सकती.

वास्तव में यह सब स्वच्छता के बारे में है. आधुनिक साधन इसकी देखभाल अच्छी तरह करते हैं.

और मुझे लगता है कि इस तरह के या इससे मिलते-जुलते अनुचित अनुष्ठान हर धर्म और हर समुदाय में होते है. मुझे एहसास हुआ है कि यदि कोई भी धर्म इस तरह की परम्पराओं को निर्धारित करता है तो यह सब अच्छा नहीं है.

तीसरा दिन:

दिन के अजीब-अजीब प्रहरों में, लम्बे-लम्बे समय तक हर दिन कई-कई बार पूजा और प्रार्थना करना क्या वास्तव में मनुष्य को पवित्रता दिलाता है? मैं भी धार्मिक हूँ. लेकिन मैं उतनी बार पूजा नहीं करती जितनी बार संस्कार पूजा करता है. तो क्या मैं कम धार्मिक हो गई या क्या मैं एक पापी व्यक्ति हूँ?

उसे हर दिन सुबह-सुबह पाँच बजे के अजीब से समय क्यों उठना पड़ता है? उसकी इस प्रक्रिया में मेरी नींद भी खराब हो जाती है. उसके पास कभी भी मेरे साथ इत्मीनान से बैठकर साथ-साथ नाश्ता करने के लिये समय नहीं होता, यहाँ तक कि सप्ताहांत पर भी ऐसा नहीं हो पाता.

मैंने मेरे शादी-शुदा जीवन में अपने पति से जिस प्रकार के साहचर्य और मैत्री की उम्मीद की थी वह अनुभव मुझसे कोसों दूर है.

आज जब मैं यह सब लिख रही हूँ तो मुझे शान की याद आ रही है. उसका साथ हमेशा कितना खुशनुमा होता था! मैं उसके बारे में जितना जानती हूँ उतनी जानकारी के मुताबिक़ वह शायद ही कभी किसी पूजा या धार्मिक-सेवा या किसी अन्य प्रकार की प्रार्थना में समय बिताता था. हर बार जब मैंने उससे इसका कारण पूछा, तो उसने मुझे बताया, "मेधावी, यदि कोई ईश्वर है, तो वह आपके भीतर रहता या रहती है और इसी वजह से आप जीवित हैं. मैं चुपचाप उसे बीच-बीच में सलाम कर लेता हूँ और फिर किसी को भी इसकी भनक भी नहीं पड़ती. क्या यह सब अद्भुत नहीं है?”

......................

चौथे दिन की डायरी पढ़ने से पहले संस्कार ने डायरी में शान के उल्लेख के बारे में सोचा. संस्कार ने खुद से प्रश्न किया, “मेधावी ने इससे पहले मुझसे कभी शान के बारे में बात क्यों नहीं की?”

......................

चौथा दिन:

मैं अपनी डायरी में बिल्कुल वही दोहरा रही हूँ जैसा संस्कार ने अभी हाल ही में एक दिन कहा था.

उसने कहा था, “ओह, अन्य समुदायों के ये लोग हमारे बच्चों पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं. और मैं इसके बारे में काफी गंभीर हूं. अन्य समुदायों के लोग उनके बच्चों को जो संस्कार देते हैं उनकी तुलना में हमारे संस्कार कहीं ज्यादा बेहतर हैं. हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे उनके संस्कार चुने,”

फिर उसने मुझे अंजी के साथ अपने रिश्ते को कम करने के लिए कहा क्योंकि वह एक इसाई है.

मैं संस्कार के इस तरह के शब्दों पर बहुत चौंक गई थी. मुझे यकीन है कि उसके ये विचार बिल्कुल भी सही नहीं हैं. हर जाति, धर्म और समुदाय में अच्छे और बुरे लोग होते हैं. आप इस तरह के व्यापक बयान के साथ किसी भी समुदाय को पूरी तरह रद्द नहीं कर सकते.

लेकिन यह सिर्फ संस्कार ही नहीं है जो अन्य समुदायों या जातियों को तुच्छता से देखता है. पुनर्विचार पर मैं देखती हूँ कि हर समुदाय, जाति और धर्म में ऐसे कुछ लोग पाये जाते हैं जो अन्य समुदायों, जातियों और धर्मों के लोगों के बारे में ऐसी ही बयान-बाजी करते हैं. लेकिन किसी ने भी ऐसा कहना सही नहीं है. क्या उनका धर्म दूसरे धर्मों की निंदा करने की अनुमति देता है? कोई धर्म इसे नहीं सिखाता.

अन्य समुदायों के मेरे दोस्तों के साथ मैं मेरी दोस्ती कभी नहीं तोड़ूंगी. और अंजी से? कभी नहीं. वह मेरी सबसे अच्छी दोस्त है. तो क्या हुआ यदि वह एक इसाई है? और आखिरकार मैं उससे शादी तो नहीं कर रही हूं?

मैं जरूर मानती हूँ कि शादी अपने ही समुदाय में करनी चाहिए. मैं अभी भी इस मुद्दे पर अडिग हूँ. नहीं तो मैं क्या शान से शादी नहीं कर लेती? देखो न, मुझे अपने धर्म और उप-जाति के पति के साथ इतनी सारी समस्याएँ हैं, किसी अन्य धर्म या जाति के किसी व्यक्ति से शादी करने में किस तरह की समस्याएँ हो सकती हैं इसकी कल्पना करके भी मैं सिहर उठती हूँ. काँप जाती हूँ यह सोच के कि उसके धर्म और जाति के कौन कौन से और रीति-रिवाज़ मुझे पालन करने पड़ते!

पाँचवा दिन:

संस्कार सारे धार्मिक नियमों, संस्कारों और रीति-रिवाजों में विश्वास करता है जो कि प्राचीन काल के कुछ लोगों ने अगली पीढ़ियों को उनकी सत्यता की जाँच किए बिना सौंप दिये हैं. कभी-कभी मेरे जैसे कुछ धार्मिक व्यक्ति को भी उनमे से कई नियम, संस्कार और रीति-रिवाज़ काफी अनुचित लगते हैं और खासकर वर्तमान समय में.

इन दिनों मुझे अब एहसास होने लगा है कि किसी भी धर्म के किसी भी नियम, संस्कार और रीति-रिवाज़ का पालन करने से पहले हमें हमेशा उनके पीछे के वैज्ञानिक कारणों को ढूँढना चाहिए. इन मुद्दों पर संस्कार की राय मेरे साथ मेल नहीं खाती है. वह धार्मिक सीखों द्वारा दिये गये हर लिखित और बोले गए शब्द को आँख मूंदकर सच और सौ प्रतिशत पवित्र मानता है.

छटा दिन:

संस्कार ने हाल ही में कुछ और सनकी नियम लगाएँ हैं. उसने मुझे एक दिन एक चार्ट सौंप दिया. इसे राहु कालम कहा जाता है. उसके अनुसार यह बहुत उपयोगी है क्योंकि यह प्रत्येक दिन की उस अशुभ घडी को निर्धारित करता है जब किसी को किसी भी शुभ कार्य को नहीं करना चाहिए. इस घडी की अवधि प्रतिदिन डेढ़ घंटे है. उदाहरण के लिए, सुबह ७.३० से ९ का समय सोमवार को अशुभ है, दोपहर ३ बजे से ४.३० बजे का समय मंगलवार को अशुभ है, दिन के १२ बजे से १.३० बजे का समय बुधवार को अशुभ है और इसी तरह सप्ताह के बाकी दिनों की अशुभ घड़ियाँ राहु कालम चार्ट में दी होती हैं.

मुझे याद है कि मेरे माता-पिता भी राहु कालम के पक्के अनुयायी हैं. वे इन घंटों के दौरान कोई भी महत्वपूर्ण काम करने से इनकार करते हैं. हालाँकि मैं धार्मिक हूं किन्तु मैं कई बार विद्रोही हो जाती हूँ. इसलिए मैं अपने माता-पिता से इसके पीछे का तर्क पूछा करती थी.

मैं बहस करती थी. "माँ, अगर मैं इस राहु कालम के दौरान विश्वविद्यालय की परीक्षा दे रही हूँ, तो क्या मुझे पेपर लिखना बंद कर देना चाहिए? और अब तक का मेरा अनुभव दिखाता है कि कई बार जब मैंने राहु कालम में परीक्षा-पत्र लिखे, फिर भी मुझे १००% अंक मिले." मेरे माता-पिता मेरी इस तरह की पूछताछ और दलीलों का कोई जवाब नहीं दे पाते.

कई बार हम इस अवधि के दौरान बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर डालते हैं क्योंकि राहु कालम की जानकारी नही होने वाले किसी व्यक्ति ने उसी अशुभ अवधि के दौरान उस गतिविधि की योजना बनाई थी. और मैंने देखा है कि उन कामों में कुछ भी गलत नहीं हुआ.

मेरे और संस्कार के बीच संघर्ष के डर से मैंने अभी तक संस्कार के साथ इस पहलू पर तर्क नहीं किया है. लेकिन मुझे निश्चित रूप से ऐसे प्रतिबंध पसंद नहीं हैं.

एक और विचार मेरे दिमाग में आया, "क्या कट्टर धार्मिक लोग अंधविश्वासी होते हैं? क्या वे उन लोगों की तुलना में अधिक अंधविश्वासी होते हैं जो कम धार्मिक हैं या धार्मिक नहीं हैं?”

सातवाँ दिन:

आज मैंने 'ह्यूमैनिटी फोरम' नामक समूह के बारे में इंटरनेट पर एक लेख पढ़ा. मैं उनके काम से प्रभावित हुई.

इस समूह में सभी प्रकार के धर्मों के लोग शामिल हैं और वे लोग भी जो किसी भी संगठित धर्म से जुड़े नहीं है. फिर भी वे सभी एक साथ काम करते हैं बिना किसी आपसी भेद-भाव के.

'ह्यूमैनिटी फोरम' पूरी मानवता को विभिन्न लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार सहायता करता है. सहायता देते समय यह संस्था राष्ट्रों की भौतिक या राजनीतिक सीमाओं या नस्ल, रंग, धर्म, जाति, उप-जाति, भाषा के आधार या किसी अन्य आधार पर तैयार की गई सीमाओं पर ध्यान नहीं देती और कोई भेद-भाव नहीं करती.

लेख में शान का उल्लेख था कि उसने पिछले कुछ महीनों के दौरान मानवता के लाभ के लिए क्या किया था, कौन-कौन से प्रोजेक्ट संभाले थे.

शान की उपलब्धियों को पढ़ने के बाद मैं शान की प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकी.

मैंने अपनी अपरिपक्वता, मूर्खता, अति महत्वाकांक्षा और ईर्ष्या के कारण शान जैसे एक अच्छे और महान दोस्त को खो दिया. मुझे जल्द ही उससे मिलना चाहिए और क्षमा मांगनी चाहिए.

......................

शान और उसके साथ ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के उल्लेख को पढ़ने के बाद संस्कार ने थोड़ी देर के लिए डायरी पढ़ना बंद कर दिया. उसे याद आया कि आज सुबह ही उसने टेलीविज़न पर प्रसारित समाचारों में 'ह्यूमैनिटी फोरम' का नाम सुना था. संस्कार ने याद करने की कोशिश की. “मैंने क्या सुना था? हाँ याद आया. 'ह्यूमैनिटी फोरम' के सदस्यों की टीम जापान के बाहर से जापान को पहुँचने वाली पहली बचाव टीम थीं.”

......................

आठवाँ दिन:

मैं काफी दिनों के बाद डायरी लिख रही हूँ.

इस बीच मैं संस्कार की धार्मिकता जिसे मैं अब अति-धार्मिकता कहने लगी हूँ, उससे बहुत परेशान रही हूँ. वह उसके विचारों को मुझ पर लादने की कोशिश में लगा रहता है. अब मैं उसके विचारों को बिना सोचे-समझे, आँखें मूँदकर स्वीकार करने वाली आखरी व्यक्ति हूँ.

मैं संस्कार के अजीबों-गरीब विचारों से थक गई हूँ और कम से कम एक साल तक उससे दूर रहना चाहती हूँ. मुझे अपनी शादी को बचाना है. मेरे बॉस ने जापान में मेरी नियुक्ति पक्की कर दी है. मेरी शादी में आई दरारों को दूर करने में इससे सहायता मिलेगी.

इस एक साल के दौरान मैं संस्कार और मेरे बीच के इस मामले पर और गहराई से सोचूंगी. यह भी देखना होगा कि संस्कार उसके इन विचारों और कार्यों में थोड़ा परिवर्तन ला पायेगा या नहीं. मैं अपनी शादी बचाने के पक्ष में हूँ और इसीलिये ये सब कुछ कर रही हूँ.

इंटरनेट पर उपलब्ध विशाल साहित्य की जाँच करने के बाद और ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के उद्देश्यों का अध्ययन करने के बाद अब मुझे बहुत अधिक धार्मिकता में समाये कट्टरतावाद या अतिवाद की व्यर्थता स्पष्ट दिखाई पड़ती है.

मुझे आश्चर्य है कि मैं शान जैसी बन रही हूँ.

मुझे इन दिनों शान की इतनी बार याद क्यों आती है?

क्या मैं उससे दोबारा प्यार करने लगी हूँ? जब मैं पहली बार उससे मिली थी तो क्या मैं सच में उससे प्यार करने लगी थी?

ओह, मैं यह सब बकवास क्यों कर रही हूँ?

मुझे अपनी शादी को बचा लेना चाहिए.

......................

वह मेधावी की डायरी का अंत था. उसके बाद वह जापान चली गई थी. जब वह जापान गई तो डायरी अपने साथ रखना भूल गईं. उसने अनजाने में इसे घर पर टेबल पर छोड़ दिया था.

डायरी पढ़ने पर संस्कार की सारी इन्द्रियाँ सुन्न पड गईं. कुछ मिनटों के लिए वह निर्जीव सा बना रहा और उसके दिमाग ने सोचना बंद कर दिया.

कुछ मिनटों के बाद मेधावी ने डायरी में लिखी बातें उसे जल्द ही समझ आने लगी. उसने मेधावी के दिमाग में पैदा हुई उथल-पुथल की विशालता और गंभीरता को महसूस करना शुरू कर दिया. उसने महसूस किया कि उस उथल-पुथल का कारण वह खुद था. सबसे पहले तो उसे बहुत गुस्सा आया लेकिन जल्द ही शांत भी हुआ. उसके दिमाग ने समझदारी दिखाई और उसने सबसे पहली बात यह सोची कि वह कैसे मेधावी से संपर्क करे और उसकी जान बचाये?

“मैंने तुरंत सही कदम उठाने चाहिए.” उसने फैसला किया.


Order your copies of the novel "सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी" on the following Amazon links:

eBook or Digital Books:

Printed Books (Paperback):

https://www.amazon.com/Love-Knows-No-Bounds-Hindi/dp/1719557462/ref=sr_1_3?s=books&ie=UTF8&qid=1529758090&sr=1-3&keywords=shyam+bhatawdekar%27s+books

English Version of the Novel (titled "Good People" or "Love Knows No Bounds")

The readers interested in reading this novel in English can read it on the following blog site:

https://good-people-novel.blogspot.com/2013/10/good-people-path-breaking-novel-and.html

Interesting Novels, Stories and Other Interesting Stuff : Read Now

1. Good People (Also titled "Love Knows No Bounds"): https://good-people-novel.blogspot.com/2013/10/good-people-path-breaking-novel-and.html

2. The Peace Crusaders: https://peacecrusaders.blogspot.com/2014/11/the-peace-crusaders-chapter-2.html

3. सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी: 

4. Funny (and Not So Funny Short Stories): https://funny-shortstories.blogspot.com/

5. Stories for Children: https://stories-children.blogspot.com/2009/08/dholu-ram-gadbad-singh-stops-train.html

6.  Building Leadership and Management: http://shyam.bhatawdekar.com

7. Management Universe: https://management-universe.blogspot.com

Comments

Popular posts from this blog

अध्याय १

अध्याय ६

अध्याय १२