अध्याय १६

मेधावी और संस्कार उनके विवाह के बाद अमेरिका के सैन डिएगो में बस गए. दोनों के पास बहुत अच्छी नौकरियाँ थीं. यदि विभिन्न दृष्टिकोणों से देखें तो ऐसा लगता था जैसे वे एक दूसरे के लिए ही बने थे- मूलतः एक ही देश, एक ही शहर, वही नस्ल, समान धर्म, एक ही जाति, एक ही उपजाति, वही मातृभाषा, समान शैक्षणिक पृष्ठभूमि, समान पेशेवर पृष्ठभूमि.

शीघ्र ही संस्कार ने रोजाना सुबह-सुबह पाँच बजे उठने की अपनी दिनचर्या शुरू कर दी. छुट्टियों और सप्ताहांत भी वह पाँच बजे उठने का कार्यक्रम जारी रखता. प्रतिदिन इतनी सुबह अनिवार्य रूप से स्नान करने के बाद वह विस्तृत तरीके से भगवान की पूजा करता.

मेधावी ईश्वर की पूजा-प्रार्थनाओं में उसके बहुत पीछे नहीं थी. लेकिन वह पाँच बजे उठ न पाती. उसके लिये छह-सात बजे का समय ज्यादा ठीक था. पर उसके पति जैसे सुबह-सुबह स्नान करना उसके बस की बात नहीं थी.

सात बजे तक दोनों अपने धार्मिक कामों से निपट कर नाश्ता करते थे और अपने अपने कार्यालयों के लिये रवाना हो जाते.थे. वे उनके वैवाहिक जीवन में खुश थे और पूरी तरह से संतुष्ट थे. लगभग चार महीनों तक यह आलम बिना किसी बाधा और रुकावट के बना रहा. फिर एक दिन एक विशेष और कुछ असामान्य घटना घटी.

विश्वविद्यालय से बाहर निकलने के बाद, मेधावी और अंजली एक दूसरे के साथ संपर्क में नहीं थे. उन्हें एक दूसरे के बारे में सिर्फ इतना मालूम था कि अंजली ने लॉस एंजेलिस में नौकरी ले ली थी और शादी के बाद से मेधावी सैन डिएगो में बस गई है. उनके पास एक दूसरे के फोन नंबर और ईमेल के पते थे. लेकिन फिर भी उन्होंने बहुत दिनों से एक दूसरे के साथ कोई संपर्क नहीं रखा था.

फिर एक शाम जब मेधावी गाड़ी चला रही थी, उसे अंजली से अपने सेल फ़ोन पर फोन आया.
"हाय मेधावी, मैं तुम्हारे ऑफिस के काम में विघ्न तो नहीं डल रही?"

"अंजी, हाय, क्या आश्चर्य है! मैं बहुत खुश हूँ कि तुमने फ़ोन किया. मैं अपनी गाडी में हूँ और घर जा रही हूँ.”

"क्या तुम अंदाजा लगा सकती हो कि हम जल्दी ही मिलेंगे! मैं अगले सोमवार एक दिन के सम्मेलन के लिए सैन डिएगो पहुँच रही हूँ. मैंने तुम्हारे घर तुम्हारे साथ रहने का फैसला किया है. मुझे यकीन है कि यदि मैं तुम्हारे साथ एक रात बिताऊँ तो इसमें तुम्हारे पति को आपत्ति नहीं होगी?” अंजली ने मेधावी की चुटकी ली. फिर दोनों खिलखिलाके हँस पड़ी.

मेधावी ने कहा, "मैं उस रात तुम्हारे साथ तुम्हारे रूम में आ जाउंगी. फिर हम बीते दिनों की यादें ताज़ा करेंगे. हम दोनों रात भर बातें करेंगे और बातें करेंगे. गपशप के लिये हमारे पास इतना मसाला जो होगा! मैं अपनी मुलाकात को लेकर बहुत उत्साहित और उत्तेजित हूँ. मैं तुम्हे विश्वास दिलाती हूँ कि मेरे पति एक रात मुझे मिस नहीं करेंगे. तुम कुछ और दिन क्यों नहीं रुक जाती? मुझे बहुत ही बहुत ख़ुशी होगी.”

मेधावी को अंजली की दबी हँसी सुनाई दी. "नहीं। धन्यवाद। मैं इस समय ज्यादा नहीं रह सकती. मैं तुम्हे अपनी फ्लाइट के बारे में ईमेल करूंगी. मुझे हवाई अड्डे पर लेने आ सकोगी क्या?”

"मैं निश्चित आउंगी. मैं तुमसे मिलने के लिये बेकाबू हो रही हूँ.”

"मेरा भी इधर यही हाल है. तो जल्द ही मिलते हैं."

उस शाम मेधावी ने संस्कार को बताया, "अंदाजा लगाओ कि अगले सोमवार को हमारे घर कौन आ रहा है?"

"नहीं.  मैं अनुमान नहीं लगा सकता. तुम ही बताओ.”

"अंजी आ रही है. अंजली. तुम उसे अच्छी तरह जानते हो. यूनिवर्सिटी के दिनों वाली मेरी रूम-मेट. तुम उससे कई बार मिले हो.”

"हाँ, मैं अंजली को जानता हूं. लेकिन मैं यह नहीं कह सकता कि मैं उसे बहुत अच्छी तरह जानता हूं. चूकि वह एल.ए. में तुम्हारे अपार्टमेंट में रहती थी, मैं उसे कई मौकों पर मिला था. लेकिन सही कहूँ तो मुझे उसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. फिर भी मुझे खुशी है कि वह आ रही है. आखिर वह तुम्हारी अच्छी दोस्त है. क्या वह हमारे साथ रहेगी?”

"हाँ. सिर्फ एक रात. लंबे समय तक रहना उसे इस बार संभव नहीं है. उस एक दिन अगर हम दोनों तुम्हे हमारी कंपनी न दे सके तो कृपया बुरा मत मानना. हम दोनों को ढेर सारी गप्पे मारनी हैं. तुम हमारे साथ रहे तो बोर हो जाओगे. लगभग छह महीने या उससे अधिक समय के बाद हम मिलेंगे.”

"तो फिर दिल खोल के मिलो और खूब गपशप करो,” उसने मुस्कराते हुए कहा.

और अगले सोमवार की रात मेधावी और अंजली ने वाकई में धूम मचाई. सिर्फ बक-बक और बक-बक. उन्होंने जी भरके बहुत गपशप की.

अंजली ने कहा, "मेधावी, एक मजे की बात बताऊँ? हाल में एक दिन मैं लैक्स हवाई अड्डे पर शान में अचानक टकराई. वह सैन होज़े में रहता है.”

“मुझे पता है. मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है. मुझे दूसरों के बारे में बताओ.”

"पर मेधावी, तुम कैसे जानती हो कि वह सैन होज़े में रहता है?"

"बस, ऐसे ही.”

"ओह अब छोडो भी. सच सच बोलना. तुम्हारे पास उसके बारे में जानने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि तुमने उसके साथ सभी रिश्तों को तोड़ दिया था. तो तुम कैसे जानती हो कि शान आजकल अमेरिका में है?”

"मेरे कुछ परिचितों ने मुझे शान का ठिकाना दिया," मेधावी ने सफ़ेद झूठ बोला.

"नहीं. यह सच नहीं है. लेकिन मुझे पता है कि तुम शान के बारे में कैसे जानती हो. जब तुम पहली बार अमेरिका आई थी तब तुमने उसके साथ यात्रा की थी और तब तुम उससे मिली थी. वास्तव में शान ही तुम्हे हमारे अपार्टमेंट तक छोड़ने आया था. हवाई अड्डे पर तुम्हे तुम्हारे पैर में चोट लगी और उसने तुम्हारी देखभाल की. लेकिन तुमने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया.”

"अंजी, पर तुम यह सब इतने विस्तार में कैसे जानती हो?" मेधावी और जानने के लिए उत्सुक हो गई.

"मैंने अभी तुम्हे बताया कि मेरी हाल ही में शान से मुलाकात हुई थी. हमारी बातचीत के दौरान मुझे एहसास हुआ कि वह यह मान कर चल रहा था कि मुझे उसके सैन होज़े में रहने के बारे में पता है. पर जब मैंने इनकार किया, तो उसने मुझे बताया कि तुम दोनों अमेरिका एक ही साथ कैसे आये थे, कैसे कन्वेयर से अपना सामान उठाते वक्त तुम्हे चोट लगी और उसने तुम्हे अपार्टमेंट तक कैसे छोड़ा. उसे लगा कि तुमने मुझे पूरी कहानी बताई होगी. मेधावी, मुझे बताओ कि तुमने मुझे यह सब क्यों नहीं बताया?”

"ठीक है, लेकिन अब तो तुम इस बारे में सब जान गई हो न? फिर कौन सी दिक्कत है? आओ, हम उस अध्याय को यहीं बंद करें. अब बहुत हो गया. इसके बजाय कुछ बेहतर और सुखद बातें करें.”

अंजली मेधावी को चिढ़ाने के मूड में थी. उसने कहा, "क्या तुम जानती हो कि शान अपने व्यवसाय के संबंध में भारत आता-जाता रहता है? और हाँ, एक और बहुत ही महत्वपूर्ण बात. लैक्स हवाई अड्डे पर मैंने उसे एक लड़की के साथ देखा.”

मेधावी की जिज्ञासा जागी और साथ ही साथ ईर्ष्या भी. उसने तुरंत पूछा, "लड़की? कैसी लड़की? कौन?”

"मैंने शान के साथ एक सुंदर लड़की को देखा. उन दोनों में काफी आत्मीयता थी ऐसा मैंने महसूस किया. मैंने देखा कि जब तक मैं शान के साथ बातें कर रही थी, तब तक सारे समय वह शान का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थी.”

"क्या शान ने उससे शादी कर ली है?" मेधावी ने तुरंत पूछताछ की. वह जिज्ञासा-वश अधीर हो गई.

"नहीं. शान ने मुझसे उसका परिचय उसके दोस्त के रूप में किया. दूध का जला छाछ भी फूँक-फूँककर पीता है. मुझे लगता है कि वह अब लड़कियों के मामलों में सावधान रहेगा. तुमने उसे अच्छा सबक सिखाया है.”

"बकवास बंद करो. यह बताओ कि क्या वह लड़की वाकई खूबसूरत थी?”

"हाँ. पर वह तुम्हारे जैसी सुंदर नहीं.”

अंजली की इस बात पर मेधावी को खुशी और संतुष्टि मिली और उस रात उसे शांतिपूर्ण नींद लेने में कोई कठिनाई नहीं हुई.

नाश्ते की मेज पर मेधावी, अंजली और संस्कार अपने कामों पर जाने से पहले एकत्र हुए.

मेधावी ने सभी के लिए इडली-सांभर-चटनी और मद्रास कॉफी वाला विशिष्ट शाकाहारी दक्षिण भारतीय नाश्ता खाने की मेज पर सजाया. इसी बीच अंजली दो अंडे के ऑमलेट बनाकर मेधावी और खुद के लिए मेज पर ले आई. मेधावी इसके बारे में अनजान थी.

तीनों टेबल के आस-पास बैठ गये.

मेधावी उसके सामने ऑमलेट देख कर आश्चर्यचकित हुई. उसने पूछा, "अंजी, तुमने ये ऑमलेट कब बनाये? और अंडे कौन लाया? हम घर पर गैर-शाकाहारी या मांसाहारी पदार्थ नहीं रखते हैं, न ही खाते हैं. अंजी, क्या तुमने यह सब कुछ किया?”

मेधावी की इस बातचीत ने संस्कार का ध्यान आकर्षित किया.

अंजली ने उत्तर दिया, "हा. जब तुमने पिछली शाम किराने की खरीदारी की थी और तुम उसके लिए पैसे देने में व्यस्त थी तब मैंने अंडे की एक ट्रे उठाई और दूसरे कॅश काउंटर पर जाकर भुगतान किया. मैं तुम्हें आज सुबह आश्चर्यचकित करना चाहती थी. मैंने सोचा कि क्यों न नाश्ते में अंडे खाए जाय जैसे हम पहले किया करते थे. तुम्हे याद है? तुम शुरुवात में अंडे या ऑमलेट खाने से कितना कतराती थी? पर धीरे धीरे आखिर में मैंने तुम्हे ये सब खाना सीखा ही दिया. हैरानी की बात है कि तुम्हे ऑमलेट सच में अच्छा लगने लगा था.”

"आज के नाश्ते में तुम्हारे इस अति-विचारशील योगदान के लिये, अंजी, तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद,” मेधावी ने कहा. "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे कभी फिर से ऑमलेट खाने का मौका मिलेगा. इसे मैं सचमुच पसंद करती हूँ.”

नाश्ते के बाद अंजली घर छोड़ने वालों में पहली थी. मेधावी भी काम पर जाने के लिए तैयार हो ही रही थी कि इतने में संस्कार ने उसे जाने से रोक दिया. उसने मेधावी का हाथ जबरदस्ती पकड़कर खींचा और अभद्र तरीके से कुर्सी पर बिठा दिया.

उसने जबरन उसे कुर्सी पर बिठा रखा और उसके सामने बैठ कर चिल्लाया, "तुमने मुझे पहले कभी नहीं बताया कि तुम गैर-शाकाहारी पदार्थ भी खाती हो. हिंदू ब्राह्मण होने के बावजूद तुम मांसाहारी पदार्थ कैसे खा सकती हो?”

"मैं किसी भी प्रकार का मांसाहारी भोजन नहीं करती. सिर्फ ऑमलेट कभी-कभार खा लेती हूँ. वह भी मैंने अंजी की कंपनी में देर से, अभी-अभी खाना सीखा. क्या तुमने कभी मुझे पहले ऑमलेट खाते देखा है क्या? और कृपया इस एकदम मामूली मामले पर मुझ पर चिल्लाओ मत. कृपया मेरा हाथ भी छोड़ दो, तुम मुझे चोट पहुँचा रहे हो.”

"यह मामूली मामला नहीं है. हम ब्राह्मण मांसाहारी भोजन छूते भी नहीं हैं, खाना तो दूर की बात है. अब मुझे तुम्हारा शुद्धिकरण करना पड़ेगा. और साथ ही साथ अपने फ्रिज का भी, जिसमे अंडे रखे थे."

उसने फ्रिज खोला, अंडे की ट्रे को बाहर निकालकर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया. फिर गंगा नदी के पानी से भरी बोतल ली और गंगा-जल को फ्रिज पर और मेधावी के ऊपर छिड़क दिया.

"अब गंगा के इस पवित्र जल ने तुम्हे और फ्रिज को शुद्ध कर दिया है. कृपया आगे से ऐसा मत करना.” उसके संरक्षक और तिरस्कारपूर्ण स्वर मेधावी के कानों को छेदते हुए ऐसे घाव कर गए जिनका इलाज करना आसान नहीं था. उसे संस्कार के इस तरह के बर्ताव पर नफरत हुई.

संस्कार जल्दी-जल्दी घर से बाहर चला गया. मेधावी ने उसके कार की आवाज सुनी.

मेधावी कुछ पाँच मिनट के लिए निस्तब्ध रही. उसका दिमाग सुन्न हो गया. उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँची थी. वह अपने आप को भयानक रूप से भंगित महसूस कर रही थी. उसे संस्कार के शब्दों और कार्यों पर बेहद नफरत हुई. उसने सोचा, "उसका दिमाग इतना संकीर्ण क्यों है? मेरे पुराने दोस्त की कंपनी में सिर्फ एक ऑमलेट खा लिया तो क्या गलत किया मैंने? और मेरी अनुमति के बिना मेरे सारे शरीर पर पानी छिड़कने का क्या मतलब था? शुद्धिकरण, मेरी जूती. मुझे उससे नफरत है."

उसे पिछली कुछ घटनाएँ भी याद आईं. “वह पवित्र गंगा-जल को छिड़कने की यह प्रक्रिया मेरे पीरियड्स हो जाने के बाद हर महीने दोहराता है. वह सारे घर में हर जगह का गंगा-जल से शुद्धिकरण करता है. और अब मुझे पता चला कि उन चार-पाँच दिनों के दौरान वह मुझे छूने से क्यों बचता है. तो वह सोचता है कि मेरे पीरियड्स मुझे और सारे घर को गंदा बनाते हैं. बकवास! अब मुझे याद आया. मेरी माँ भी यही करती थी और मुझे बिकुल अच्छा नहीं लगता था. मैं हमेशा इसे घृणा की दृष्टि से देखती थी.”

उसने महसूस किया कि संस्कार की कुछ अन्य आदतें भी काफी उकताने वाली होती थीं. वह महसूस करती थी कि संस्कार का रोज सुबह-सुबह पाँच बजे उठना, ऐसे बेतुके वक्त पर नहाना और दो-दो घंटे पूजा करने में लगा देना बहुत उबाऊ था. मेधावी सोचती रह जाती कि वह अपनी पूजा थोड़ी तेज़ी से क्यों नहीं कर सकता? सप्ताहांत पर भी अपनी लम्बी-चौड़ी पूजाओं के कारण वह एक बार भी मेधावी को उस तरह की कंपनी नहीं दे पाया जिसकी उसे हमेशा से चाह थी. मेधावी को इत्मीनान वाली चाय और नाश्ता बहुत पसंद था पर संस्कार इसके लिये लगने वाला वक्त नहीं निकाल पाता. मेधावी चिढ़ जाती थी.

"अब मुझे समझ आ रही है कि हर चीज़ की ज्यादती ख़राब होती है. ज्यादती कष्ट-प्रद पर हो जाती है.” उसने सोचा.

उस शाम जब संस्कार घर लौटा तो उसने  मेधावी को सुझाव देने में कोई समय नहीं खोया. "मेरा एक सुझाव है. तुम्हारी मित्र अंजली को यहाँ बार-बार आने के लिये प्रोत्साहित मत करना.”

मेधावी को संस्कार का सुझाव चेतावनी जैसा प्रतीत हुआ. "सिर्फ इसलिए कि उसने मुझे आज सुबह ऑमलेट खिलाया?" मेधावी गुस्से में थी.

"हाँ, निश्चित रूप से. उसने अच्छा नहीं किया.” संस्कार का स्वर काफी कठोर था.

कुछ रुक कर उसने कहा, "इसके अलावा हमें अपने ही समुदाय के लोगों के साथ मिलना-जुलना चाहिए. क्या अंजली एक इसाई नहीं है?”

"हमारे पास पहले से बहुत से दोस्त हैं जो हमारे समुदाय से हैं. लेकिन मैं अन्य समुदायों के लोगों के साथ मेल-जोल रखने में कोई बुराई नही देखती. मैं अपने बचपन से लेकर अब तक सभी प्रकार के समुदायों से सम्बन्ध रखती आ रही हूँ. इसमें समस्या क्या है?" मेधावी ने पूछा.

"ओह, अन्य समुदायों के ये लोग हमारे बच्चों पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं. और मैं इसके बारे में काफी गंभीर हूं. अन्य समुदायों के लोग उनके बच्चों को जो संस्कार देते हैं उनकी तुलना में हमारे संस्कार कहीं ज्यादा बेहतर हैं. हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे उनके संस्कार चुने,” संस्कार ने कहा.

मेधावी अपने पति की इन सभी विचारधाराओं को सुनकर बहुत परेशान हो गई. उसने सोचा कि संस्कार ने इन मुद्दों से संबंधित कुछ ऐसे विचार पेश किये हैं जो उसके खुद के विचारों से मेल नहीं रखते. उसने सोचा कि इस समय चुप रहना ही बुद्धिमानी है. वह पहले से ही परेशान हो चुकी थी और अगर वह उस मनस्थिति में संस्कार से बात करती तो निश्चित ही उन दोनों के बीच एक बड़े झगड़े की संभावना थी.

उसे पता था कि वह खुद बहुत धार्मिक थी और इसीलिए दूसरे धर्म के किसी लड़के से शादी करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. शादी के सवाल पर वह अन्य समुदायों और जातियों के लोगों को निम्न मानकर उनसे शादी करने के उपयुक्त नहीं मानती थी. उसने अपने स्वयं के धर्म के ही अन्य जातियों और उप-जातियों के लड़कों के शादी के प्रस्तावों को ठुकरा दिया था. यही उसने शान के साथ किया था. लेकिन अब उसे खुद की तुलना में उसका पति कहीं अधिक धार्मिक लग रहा था. मेधावी की नज़र में संस्कार उसकी कल्पना से भी परे कुछ ज्यादा ही धार्मिक व्यक्ति निकला.

उसे इस बात का आश्चर्य हुआ कि धार्मिकता, जिसे उसने सोचा था कि एक महान गुण है, जब अत्यधिक हो जाती है तो असहनीय हो सकती है. अपनी नई समझ से उसे इस विषय पर कुछ स्पष्टता हासिल हुई और समझ से उत्पन्न विरोधभास से कुछ भ्रम भी. उसने महसूस किया कि धार्मिकता की भी कई पायदाने हो सकती हैं. जैसे, लोगों को बिलकुल अधार्मिक या गैर-धार्मिक, थोड़ा धार्मिक, मामूली धार्मिक और अति धार्मिक होने के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है.

उसने खुद से सवाल पूछा, "आखिर धर्म की कितनी मात्रा सही है या उपयुक्त है? और एक ही संगठित धर्म से चिपके रहकर और उसके सभी अनुष्ठानों और फरमानों को पालन करके क्या एक इंसान पूरी तरह से योग्य हो जाता है? क्या भिन्न भिन्न धर्मों के सारे नियम, फरमान, अनुष्ठान, रस्म-रिवाज़, शास्त्र-विधियाँ  वगैरे वर्तमान समय की स्थितियों के अनुरूप हैं या उनमे से कई कालविरुद्ध  हो चले हैं? क्या लोग उनकी सही ढंग से व्याख्या करते हैं? क्या वे लोग जिन्होंने इन्हे तय किया और अपने अपने धार्मिक समाज के अनुयायियों पर लागू किया, आधुनिक मनुष्य के मुकाबले अधिक प्राधिकृत, प्रामाणिक, बुद्धिमान और समझदार थे? क्या उन नियमों, धार्मिक संस्कारों और रीति-रिवाजों में से कई अब पुराने ढंग के, अप्रचलित और अप्रासंगिक नहीं हो गये हैं? हो सकता है कि इनमे से कई एकदम पिछड़े, प्रतिकूल और अमानवीय हो गये हों? क्या हमें उन्हें खुले दिमाग और खुली सोच से समीक्षा करने की और उचित रूप से संशोधित करने की आवश्यकता नहीं है?”

उसने उसका इस विषय पर मनन जारी रखा, "शायद यह बात हर संगठित धर्म के बारे में सच है, हर धर्म पर लागू होती है. शायद कोई भी धर्म इसके लिए अपवाद नहीं है.”

यह उसके लिए अचानक ऐसी समझ आना आकस्मिक रहस्योद्घाटन से कम नहीं था, जो कि उसके जीवन में पहली बार हुआ था.

कई महीनों के बाद पहली बार उसने शान को याद किया. पहली बार उसने उसे अनुकूल तरीके से और उसके प्रति उत्तम भावनाओं के साथ उसे याद किया. अवचेतनपूर्वक उसने अपने पति से उसकी तुलना करना शुरू कर दिया. इन सब बातों को सोचते-सोचते अब तक वह खुद को भावनात्मक रूप से बहुत थका हुआ महसूस करने लगी थी. उसे पता नहीं चला कि कब वह बिस्तर पर पड़ी और सो गई.


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