अध्याय २

रात के खाने के बाद एक शाम शान की माँ एलिस और पिता युसूफ ने उसे उनके बेड-रूम में बुलाया था.

एलिस ने कहा था, “आपको पता है कि मेरा आपके पिता के साथ एक अंतर्धार्मिक विवाह हुआ. फिर हमने आपको एक प्रधानत: हिन्दू अनाथालय से गोद लिया. इस समय तक युसूफ और मुझमे कोई भी मतभेद नहीं रहे. हमने इन जैसे दोनों गंभीर विषयों को बड़ी समझदारी से सुलझा लिया था. पर आपको कौन सा धर्म दिया जाए, आपको किस धर्म के औपचारिक संस्कार दिए जाए, आपका हिन्दू रीतियों के तरह यज्ञोपवीत या उपनयन किया जाये अथवा इसाइयों की तरह बप्तिस्म किया जाए या मुस्लिमों की तरह खतना किया जाए. आप अल्लाह की प्रार्थना करें या यीशुमसीह की- ऐसे विषयों पर बातचीत करने से हम कतराते रहे, बचते रहे. हमें डर था कि इन बातों को लेकर हममें मतभेद न पैदा हो जाए. ऐसे किसी संघर्ष में एक दूसरे से खोने का डर हमें खाये जा रहा था. और आपसे जुड़े हुए इन मुद्दों पर निर्णय लेना हम टालते गए.”

“मॉम, आप चिंता न करें. इसमें बुरा लगने वाली कोई बात नहीं है.”

“नहीं शान. हम अब तक इस विषय को टालते आ रहे थे. पर आप अब वयस्क हो गए हो. आप जीवन की ऐसी दहलीज पर हो जब यह बातें जरूरी हो जाती हैं. आपकी नौकरी, आपकी शादी, आपका आगे का जीवन और कई अन्य बातों के लिए कुछ निर्णय लेने आवश्यक हैं. हमने जो निर्णय लिए उसकी जानकारी आपको देने के लिए मैं आपके डैड से अनुरोध करुँगी.”

एलिस ने युसूफ की ओर रुख किया और कहा, “युसूफ, हमारे निर्णय के बारे में शान को बता दो.”

शान के पिता ने बोलना शुरू किया, “शान, हम जब आपको अनाथाश्रम से घर लाये थे तब अनाथाश्रम के प्रभारी ने हमें एक प्रमाणपत्र दिया था. उसमे लिखा था कि आपका धर्म हिन्दू है. प्रभारी ने बताया था कि उनके अनाथाश्रम में प्रधानत: हिन्दू लोगों के बच्चे ही आते हैं. ज्यादातर बच्चे उनके माता, पिता या दोनों या उनके कोई और अभिभावक गुप्त रूप से उनके आश्रम के बाहर छोड़ जाते हैं. कई बार वे बच्चों को वापस ले जाने के लिए लौटते हैं तब उनसे पूछने पर पता चलता हैं कि वे सब हिन्दू थे. इसीलिए अनाथाश्रम के प्रभारी का ऐसा अंदाज़ है कि आपको जन्म देने वाले माता-पिता भी हिन्दू ही होंगे. यह तर्क एलिस और मुझे भी सही लगता है. इसलिए हमारी यह इच्छा है कि आपके भविष्य के जीवन के लिए आप हिन्दू धर्म को स्वीकार करें.”

अपने माता-पिता के इतने उदार मनों के इतने उदार विचारों को सुनकर शान भावनात्मक हो गया. वह युसूफ और एलिस के करीब गया, उनके हाथों को अपने हाथों में लिया और बोला, “आप दोनों बहुत अच्छे और असाधारण इंसान हैं. आप दोनों को माता-पिता के रूप में पाकर मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ. आपने मुझे किसी भी चीज़ से वंचित नहीं रखा. इन सबमे धर्म तो एक नगण्य सी बात थी. आप दोनों के उच्च विचारों से प्रभावित वातावरण में परवरिश होने का सौभाग्य मुझे मिला. मेरे हिन्दू होने से आपको कोई तकलीफ नहीं थी. आपके अंतर्धार्मिक विवाह में एक दूसरे के धर्म को लेकर आपमें कोई मनमुटाव या परेशानी मैंने कभी नहीं देखी. औपचारिक या संगठित धर्म हमारे घर में जरूरी नहीं रहा. इंसानियत का सद्भाव ही काफी था. मिलजुल कर एक साथ रहने के लिए यही सबसे अधिक मायने रखता है मेरे लिए, धर्म नहीं.”

शान के पिता युसूफ शान को समझाने के अंदाज में बोले, “जीवन के इस मोड़ पर आपको किसी एक धर्म को अपना लेना व्यावहारिक होगा. लोग आपका धर्म क्या है, यह जानने के लिए सदा उत्सुक रहेंगे. आपको नौकरी देने वाली संस्थाए आपको आपके धर्म के बारे में पूछेंगी. आपकी होने वाली बीवी आपका धर्म जानना चाहेगी. आप यदि भविष्य में किसी सार्वजनिक पद के लिए चुनाव लड़ना चाहें तब भी मतदाता जानना चाहेंगे आपके धर्म के बारे में. वे तो आपकी जाति और उपजाति के बारे में जानने के लिए भी उत्सुक रहेंगे. इसीलिए एलिस और मैं आपसे हिन्दू धर्म अपनाने के लिए आग्रह करते हैं.”

शान ने जवाब दिया, “डैड, मॉम, आप दोनों तो बहुत उत्कृष्ठ व्यक्ति हैं. आपके विचार करने का नजरिया हमेशा बडा रहा है. सिर्फ मेरी थोड़ी सी चिंता में आप संकुचित दृष्टि से फैसला न लें. क्या आप इस बारे में फैसला लेने की स्वतंत्रता मुझे दे सकते हैं? मेरी इस प्रार्थना को आप मान लीजिये. विश्वस्त रहें कि मैं कोई गलत निर्णय नहीं लूँगा.”

शान के पिता युसूफ ने कहा, “अंतिम फैसला, शान, आपको ही लेना है और इसके लिए आपको पूरी आज़ादी है. हमने तो अपना मत आपके सामने जाहिर किया.”

शान की माँ एलिस ने इसकी पुष्टि की, “शान, आप आपका निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो. फिर भी हमारा निर्णय आपको योग्य लगेगा ऐसा हमें विश्वास है. सही न?”

शान का जवाब उसके माता-पिता की सोच और सलाह से कुछ हटके था, “मैं इस विषय में पिछले कई महीनों से काफी सोच विचार करता रहा हूँ. मैंने इस विषय पर लिखे साहित्य का गहनता से अध्ययन किया है. मैंने लोगों और दुनिया में हो रही गतिविधियों का बहुत सूक्ष्मता से निरीक्षण भी किया है. धर्म के नाम पर दुनिया के लोग विभाजित हो रहे हैं. आपस में जुड़ने के बजाय धर्म को एक बहाना बनाकर लोग एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं जबकि कोई भी धर्म ऐसा नहीं सिखाता. यहाँ तक कि धर्म की आड़ में आपसी घृणा, खून-खराबा, लड़ाइयों और युद्धों को बढ़ावा मिल रहा है.”

इतना कहकर शान रुका. एलिस और युसूफ ने उसकी तरफ देखकर सिर हिलाया जैसे वे शान के विचारों से सहमत हों.

इससे प्रेरित होकर शान ने अपनी बात आगे बढ़ाई, “और हाँ, यदि मैं केवल एक ही धर्म में बंध जाऊ तो जीवन के कई पहलुओं के प्रति मेरे खुले विचारों के बावजूद, उस धर्म के संकुचित, कभी कभी मानवतावाद से टकराने वाले दायरों में, जाने या अनजाने में फँस जाने का खतरा नाकारा नहीं जा सकता. या उस धर्म को मानने वाले कुछ प्रभावशाली व्यक्ति मुझे उन संकीर्णताओं को अपनाने के लिए बाध्य कर सकते हैं. इसलिए भी मैं किसी एक धर्म का बंधक नहीं बनना चाहता. इसका मतलब यह नहीं दूसरों के किसी धर्म से जुडने में मुझे कोई आपत्ति है, आखिर उनका यह मानव और मौलिक अधिकार है. पर मैं तो धर्म-विरहित, एक अच्छा इंसान बना रहना पसंद करूंगा. सिर्फ आप दोनों का आशीर्वाद चाहिए.”

शान की बातें सुनकर उसके माता-पिता की आँखे भर आई. उनके दिल गर्व से भावनात्मक हो गये. उन्होंने शान को देर समय तक गले लगा लिया. उन्होंने अपना सिर हिलाकर शान के फैसले को उनकी स्वीकृती दे दी.

इस तरह से शान ने अपने आपको किसी भी संगठित धर्म से न बांधने का अपना इरादा पक्का कर लिया था. जल्दी ही उसने अपने जीवन को सही तरीके से जीने के लिए जरूरी सिद्धांतों को भी तय कर लिया.



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