अध्याय ११

उन दिनों मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, खास कर रात के प्रहर में, भयानक रूप से अव्यवस्थित और अस्तव्यस्त हो जाता था. एकदम से बहुत बड़ी संख्या में यात्रियों और उनको विदा करनेवालों का ताता लग जाता था. इसका कारण यह था कि ढेर सारी महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय उड़ाने रात के अजीब और अनुचित काल में प्रस्थान करती थीं.

शान का विमान रात के ११.३० बजे प्रस्थान करने वाला था. देर रात की उड़ानों के मुकाबले में ११.३० का समय बहुत बुरा नहीं कहा जा सकता.

मुंबई हवाई अड्डे पर उमड़े मानवता के महासागर को पार करने में, विभिन्न सुरक्षा जाँचों से गुजरने में, ऐसी ही और भी अनेक मानव निर्मित दफ्तरशाही प्रक्रियाओं से निपटने में तकरीबन दो तीन घंटे आसानी से खर्च हो जाते हैं. इसलिए आपकी उड़ान के प्रस्थान के समय से तीन घंटे पहले हवाई अड्डे पर पहुँचना जरूरी है. शान वहाँ ८.३० बजे हाजिर था.

मुंबई एयरपोर्ट के प्रवेशद्वारों पर लगी लम्बी कतारें किसी भी आम आदमी को निरुत्साही बनाकर उसे उसकी यात्रा की योजनाओं को रद्द करने का कारण बन सकती थी.

पर शान एक बहादुर किस्म का नौजवान था. वह लम्बी कतारों से डरने वालों में से नहीं था. वह एक कतार में लग गया. फिर ढेर सारी प्रकियाओं की मशक्कतों को पार कर वह उसके विमान के बोर्डिंग क्षेत्र में पहुँचा. जब वह वहाँ उड़ान की बोर्डिंग की सूचना होने के इंतज़ार में बैठा था उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी. उसे वह परिचित सी, जानी पहचानी सी लगी.

उसने खुद को पूछा, “क्या मै केवल कल्पना कर रहा हूँ या यह लड़की वास्तव में मेधावी ही है?”

जब वह इस सोच में मशगूल था वह लड़की उसकी जगह पर थोड़ी हिली. उसका पूरा चेहरा अब शान को दिखाई दिया. उसकी आँखे शान की आँखों से मिली. तुरंत उसने अपनी नज़र हटा ली और चेहरा फेर लिया.

“वह फिर मुझे बना रही है. नाटक कर रही है. नाटकीयता और बहानेबाजी जैसे उसके खून में दौड़ रही हो. वह ऐसे जतला रही है जैसे कि उसने मुझे देखा ही नहीं. वह बड़ी चालाकी से चकमा देकर मुझसे बचना चाहती है.” शान ने सोचा.

दूसरी ओर मेधावी को शान की ऐसी अनपेक्षित उपस्थिति ने हक्का-बक्का कर दिया. शान एक मात्र ऐसा शख्स था जिसे वह कभी भी मिलना नहीं चाहती थी. उसने क्षण में फैसला लिया. “मैंने शान को मुझे देखने और मिलने का मौका कतई नहीं देना चाहिये.” यह सोचकर वह उस जगह से हट गई ताकि वह शान की दृष्टि से ओझल हो जाए.

शान ने बोर्डिंग की घोषणा होने तक का वक्त काटने के लिये नजदीकी किताबों की दुकान का चक्कर लगाया. इसी बहाने समय जल्दी से कट गया.

इसी बीच उसने मेधावी को ढूंढने की कोशिश भी की पर वह उसे खोज नहीं पाया. उसे मेधावी से मुलाकात करने में या उससे बातचीत करने में कोई आपत्ति या दिक्कत नहीं थी.

इसके विरुद्ध मेधावी शान से बचने की कोशिश कर रही थी. वह बोर्डिंग क्षेत्र में ऐसी जगह जाकर बैठ गई थी जहाँ से वह शान की गति-विधियों पर अच्छी तरह से निगरानी रख सकती थी पर शान की नज़र उस पर कतई नहीं पड़ सकती थी.

जैसे ही विमान में प्रवेश की घोषणा हुई सभी यात्री एक कतार में खड़े हो गये और धीरे धीरे विमान की ओर बढ़ने लगे. शान कतार के करीब करीब सबसे पीछे था. वह विमान के प्रवेश द्वार से अंदर आया और अपनी सीट तक पहुँचा. फिर अपने हाथ का सामान सीट के ऊपर लगे सामान-कक्ष में रखकर उसकी नियत की गई सीट पर बैठ गया.

उसके बगल की खिड़की वाली सीट पर एक महिला बैठी थी. वह स्वतः को सीट में ठीक-ठाक करने में व्यस्त थी. इसलिए उसका उसके सह-यात्री पर ध्यान नहीं गया. शान ने भी अब तक उसे गौर से नहीं देखा था. अचानक ही एक ही समय उन दोनों ने अपने चेहरे एक दूसरे की तरफ घुमाये और उन्हें इस आकस्मिक मुलाकात ने चकित कर दिया.

शान बोल पड़ा, “हाय.”

“हाय,” महिला ने झेंपते हुए जवाब दिया. वह जानती थी कि वह शान से मिलना टाल रही थी. वह यह भी जानती थी कि शान उसकी यह बात समझ चुका था.

वह महिला और कोई न होकर मेधावी ही थी. 

शर्मिंदगी को छिपाने की कोशिश करते हुए वह बोली, “तुम बड़े ही अजीब आदमी हो. पहले तो तुमने मुझसे तुम्हारे प्यार का इजहार किया. उसके बाद तुम मेरे माता-पिता से भी मिले. तुमने अपने बारे में उनके विचार जानने के लिये एक बार और मिलने का वादा भी किया. मेरे माता-पिता तुमसे मिलने की प्रतीक्षा करते रहे. पर तुम नहीं आये. न ही तुमने हमसे न मिलने के तुम्हारे इरादे और नीयत को स्पष्ट किया. हम तुमसे इतनी शिष्टता की उम्मीद तो कर सकते थे? मैं यहाँ इस तरह से तुमसे न मिलती तो अच्छा होता. तुम्हारे जैसे धोखेबाज़ से मैं कभी नहीं मिलना चाहती थी.”

खुद का बचाव करने की सबसे बढ़िया रणनीति होती है विरोधी-पक्ष पर दोष थोपना.

मेधावी के शब्द शान पर गुस्से की बौछार कर रहे थे. वह यह सब जान बूझकर कर रही थी. वह सही माने में पहली दर्जे की अभिनेत्री थी.

वह गुस्से का केवल अभिनय नहीं कर रही थी. वह वाकई में बहुत नाराज़ थी. उसके माता-पिता ने शादी के लिये मेधावी का हाथ शान के हाथ में देने के सम्बन्ध में उनकी नाराज़गी और इनकार जल्द ही जाहिर कर दिया था. मेधावी ने बिना किसी प्रतिरोध उनके इस फैसले पर ख़ुशी से हामी भर दी. यही तो मेधावी का शुरुवात से ही इरादा था. यह चाहती थी कि शान उनके घर आये, उसके माता-पिता से मिले और वे उसके मुँह पर उसके मेधावी से शादी के प्रस्ताव को निर्दयता से ठुकरा दें.

वह शान के चहरे पर हार देखना चाहती थी. वह बुरी तरह अपमानित होकर कैसे उसे खो चुका है इसका असर उसके चहरे पर देखना चाहती थी. इस तरह उसका प्रतिशोध पूरा हो जाता. पर क्योंकि शान उनके घर दोबारा कभी नहीं गया, मेधावी अपने इन इरादों को कामयाब होते हुए देख न पाई. यही उसके हताश होने का और शान पर क्रोधित होने का एकमेव कारण था.

मेधावी अपनी सीट पर से उठने लगी. उसने अपनी पर्स हाथ में ली और शान को कहा, “मुझे बाहर निकल जाने के लिए थोड़ी जगह बनाओ. मैं किसी दूसरी जगह बैठूंगी. एक धोखेबाज़ के साथ बैठकर मैं मेरी पहली अमेरिका यात्रा का आनंद खराब नहीं करना चाहती. मुझे जाने दो.”

शान उसके नखरों और झुंझलाहट से प्रभावित नहीं हुआ. उसने कहा, “मेधावी, यदि मेरा साथ तुम्हे अच्छा न लगता हो तो मैं ही कहीं और जाकर बैठ जाऊंगा. तुम यहीं बैठो. पर मेरे यहाँ से जाने से   पहले तुम्हारी अंजी के साथ हुई बातचीत के बारे में मुझे बताओ. मुझे पता है कि उस दिन तुम्हारे माता-पिता से मिलकर जब मैं तुम्हारे घर से निकला उसके तुरंत बाद तुम अंजी से मिली थी.”

“मैं उस दिन या उसके बाद किसी और दिन अंजी से नहीं मिली. तुम क्या अनाप-शनाप बोले जा रहे हो?”

“कृपा करके इतनी सफाई से झूठ तो मत बोलो. चलो, मैं ही अब तुम्हे बताता हूँ. मैं उस दिन और उस वक्त झील के पास की चट्टानों पर बैठा था जब तुम अंजी के साथ तुम्हारी मेरे ऊपर जीत की शेखियाँ शेयर कर रही थी. मैंने सब सुन लिया था. यही कारण था कि मैं तुम्हे और तुम्हारे माता-पिता से मिलने दोबारा नहीं गया. आशा है अब तुम सब समझ गई होगी. बाय.”

मेधावी ने उस दिन उससे हुई इस बड़ी भारी लापरवाही के लिए खुद को बहुत कोसा. उसने मन ही मन सोचा, “उस दिन जब मैं अंजी को मेरी गुप्त बातें बता रही थी तब मैंने यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये था कि हमारी बातें कोई और सुन तो नहीं रहा है. अब शान सोच रहा होगा कि मैं कितनी बड़ी बेवक़ूफ़ हूँ. इस बात का भी मुझे गुस्सा आ रहा है.” वह यह सोचकर परेशान और दुखी हो गई कि उसकी चालें शान के सामने काम करने में पूरी तरह नाकामयाब रहीं. शान ने एक और पॉइंट कमा लिया. वह फिर जीत गया.

अपनी एक और हार की वजह से उसकी सूरत रोने जैसी हो गई.

इसके पहले कि मेधावी कुछ कह पाती, शान अपनी सीट से उठकर दूसरी सीट पर बैठने चला गया जो काफी दूर थी. विमान के लॉस एंजेलिस (एल.ए.) पहुँचने तक मेधावी और शान न तो एक दूसरे को मिले, न ही उन्होंने एक दूसरे से कोई बातचीत की.

लॉस एंजेलिस (एल.ए.) के हवाई अड्डे पर, जो आम तौर पर लैक्स नाम से जाना जाता है, मेधावी और शान सिर्फ संयोगवश एक बार फिर एक दूसरे के आमने सामने आ गये. अबकी बार वे बैगेज कलेक्शन क्षेत्र में अपने सामान की प्रतीक्षा में खड़े थे. उन्हें एहसास नहीं था कि वे एक दूसरे के एकदम करीब खड़े थे. उन दोनों की निगाहें कन्वेयर पर आने वाले सामान पर टिकी थी.

मेधावी की बैग पहले आई. बहुत भारी बैग थी. वह काफी कोशिशों के बाद भी बैग को कन्वेयर से निकाल नहीं पा रही थी. जब शान ने देखा कि उसके साथ खड़ी महिला उसका सामान नहीं निकाल पा रही है, उसने आगे जाकर बैग को बाहर निकाला. जब उसने बैग को उस महिला को सौंपा तो वह उसे देखता ही रह गया. वह महिला और कोई नहीं बल्कि मेधावी थी. उनका एक बार फिर मिलना शायद उनके भाग्य में लिखा था.

शान का आभार प्रदर्शित करने के बजाय मेधावी चिढ़कर बोली, “तुम्हे तुम्हारे शिष्टाचार का इतना दिखावा करने की कोई जरूरत नहीं. तुम कुछ भी करो मैं किसी भी तरह तुम्हारी ओर प्रभावित नहीं होने वाली, न ही पहले कभी थी. तुम्हारी मदद के बिना मैं मेरी बैग निकाल सकती थी.”

इसी बीच शान की बैग भी आ गई. पर वह वहीँ रुका रहा. उसे मालूम हो गया था कि मेधावी उसकी दूसरी बैग के इंतज़ार में थी, वरना वह उसकी पहली बैग आने के बाद वहाँ से जा चुकी होती.

वह वहीँ कन्वेयर के पास खड़ा रहा.

जैसे ही मेधावी की दूसरी बैग कन्वेयर पर आई उसने उसे उठाने की कोशिश की. वह खुद को संभाल नहीं पाई और गिरते गिरते बची. यह देखकर शान दौड़कर उसके पास गया. एक हाथ से बैग उठाई और दूसरे हाथ से किसी तरह गिरती हुई मेधावी को गिरने से बचाया. नहीं तो वह कन्वेयर पर गिर जाती. एक गंभीर हादसा टल गया. पर कुछ खरोंचे आने से वह बच न सकी.

शान उसे एक तरफ ले गया. उसने उसे पास की बेंच पर लिटा दिया. वह इस दुर्घटना से बहुत घबराई सी दिख रही थी. उसके पैर में एक जगह बुरी तरह खरोंच आई थी और जख्म से खून बहना शुरू हो गया था.

शान ने उसके घाव को अपने रुमाल से बाँध दिया. पीने को पानी दिया. उसका चेहरा फीका दिख रहा था. चेहरे पर हैरानी सी छाई थी. उसने शान की किसी बात का प्रतिरोध न करते हुए उसकी सारी हिदायतें आज्ञाकारी बालिका की तरह मान लीं.

फिर शान ने एक ट्रॉली पर अपना सामान रखा और दूसरी पर मेधावी का. उन्हें धकेलते हुए वह मेधावी के पास आया.

मेधावी को अब थोड़ा ठीक लग रहा था. उसने शान से कहा, “मैं तुम्हे धन्यवाद देती हूँ. अब मैं जाऊंगी.”

“मेधावी, तुम्हारा ऐसी हालत में अकेले जाना ठीक नहीं होगा. क्या तुम बताओगी तुम्हे कहाँ जाना है? मैं तुम्हारे साथ जाकर तुम्हे वहाँ तक छोड़ आऊंगा.”

मेधावी शान का विरोध करने या उससे झगड़ा करने की स्तिथि में नहीं थी.

उसने शान को उत्तर दिया, “कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी. अंजी यहाँ दो दिन पहले आई है और उसने उसके यहाँ के रिश्तेदार की मदद से यूनिवर्सिटी के नज़दीक एक अपार्टमेंट किराये पर लिया है. मैं उसी के साथ रहने वाली हूँ. हम दोनों इसी यूनिवर्सिटी से एम.एस. करने वाले हैं.”

“तो फिर चलें? मैं तुम्हे अपार्टमेंट तक छोड़ दूंगा. फिर वापस एयरपोर्ट लौटकर मेरी सैन होज़े की फ्लाइट पकडूंगा. भाग्य से मेरे पास इतना समय है कि मैं तुम्हे तुम्हारे अपार्टमेंट तक पहुँचाकर वक्त में लौट सकूँ.”

“नहीं. तुम्हे इतनी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. अंजी ने मुझे यूनिवर्सिटी और उसके आगे अपार्टमेंट तक पहुंचने के रास्तों का सम्पूर्ण नक्शा भेजा है. मैं वहाँ जा सकूंगी,”

“तुम यह सब अकेली कैसे कर पाओगी? तुम्हे चोट लगी है. मैं देख रहा हूँ कि तुम ठीक से चल भी नहीं पा रही हो. लंगड़ा कर चल रही हो. तुम कितनी ही आना-कानी करो पर मैं तुम्हारे साथ आऊंगा ही.”

मेधावी के पैर में काफी दर्द हो रहा था. उसकी सहन-शक्ति के बाहर था. वह बोली, “ओके. जैसा तुम कहो. मेरे लिए ठीक रहेगा. ओके.”

वे दोनों एक टैक्सी में बैठे. मेधावी ने टैक्सी ड्राइवर को पता बताया. कुछ देर की चुप्पी के बाद मेधावी ने पहल की. उसे शान के बारे में जानने की उत्सुकता थी.

“व्यवसाय के सम्बन्ध में आये हो?” उसने पूछा.

“तुम्हे कैसे मालूम?”

“मैं कुछ समाचारों पर खास ध्यान रखती हूं. सुना है तुमने तुम्हारी कंपनी खोल रखी है. ‘सॉफ्ट एक्ट’. मैंने ठीक सुना है न? मैंने अंदाज़ लगाया कि तुम इस सिलसिले में यहाँ आये हो. क्या मेरा अंदाज़ सही है?”

“हाँ. ‘सॉफ्ट एक्ट’. एक अमेरिकन कंपनी के साथ सैन होज़े में कल मेरी मीटिंग है. मुझे उम्मीद है कि काम हो जाएगा.”

इस बेलगाव से संवाद के बाद बहुत समय तक सन्नाटा छाया रहा. दोनों को सूझ नहीं रहा था कि और क्या बातचीत की जाए. हाल की वारदातें दोनों में दूरियाँ बना रही थी. एक दीवार सी खड़ी हो गई थी उन दोनों में.

जब वे यूनिवर्सिटी के करीब पहुँच गये, अंत में शान ने चुप्पी तोड़ी और बोला, “मेधावी, मुझे पता नहीं कि हम भविष्य जीवन में कभी मिलेंगे या नहीं. इसलिए एक दूसरे से जुदा होने से पहले मैं तुम्हे बताना चाहता हूं कि मैंने तुमसे सच्चे दिल से प्यार किया. और तुम्हारी अंजी से कही बातें सुनकर मैं तुम्हारी मजबूरियाँ समझ सकता हूँ. मैं जानता हूँ कि अंतर्धार्मिक या अन्तर्जातीय विवाह करना और उसे निभाना आसान नहीं है. यह हर किसी के बस की बात नहीं है. मेरी वस्तु-स्तिथि और हैसियत और भी उलझे हुए थे- एक अनाथ जिसे हिन्दू मान लिया गया, एक बालक जिसे मुस्लिम पिता और इसाई माता ने गोद लिया, अंत में वयस्क होकर धर्म-विरहित हो गया. इसलिए कभी भी चिंता मत करना क्योकि मेरे दिल में तुम्हारे खिलाफ कुछ भी नहीं है.”

अपार्टमेंट पहुँचने पर जैसे मेधावी टैक्सी से उतरी, शान उसके पास गया, उससे हाथ मिलाया और बोला, “मैं तुम्हारे सुखी भविष्य के लिये मेरी शुभ कामनाएँ देता हूँ.”

मेधावी के जवाब के लिये न रुकते हुए शान टैक्सी में बैठा और लैक्स हवाई अड्डे की ओर निकल गया.

मेधावी शान के इस प्रकार के अविश्सवनीय ढंग के सभ्य बर्ताव को देखकर यक़ीन नहीं कर पाई. उसने खुद ने शान से की बहुत ओछी हरकत के बावजूद भी शान कितनी तमीज से पेश आया, वह ऐसा सोचे बिना रह न सकी. वह मन ही मन बोली, “यदि उसने मेरे साथ बदतमीजी का बर्ताव किया होता तो भी वह कोई गलत नहीं था. यदि मैं उसकी जगह होती तो मैं बहुत रूखे ढंग से पेश आती.”

अपार्टमेंट की तरफ चलते चलते उसे सारी पुरानी बातें याद आईं- कॉलेज के गलियारे में शान से टकराने से लेकर इस क्षण तक की सारी बातें. फिर वह खुद से बोल पड़ी, “शान अजीब है.”

उसे अचानक एहसास हुआ कि शान का रूमाल अभी भी उसके पैर के जख्म पर बंधा हुआ है. उसने रूमाल खोला. वह उसे फ़ेंक देना चाहती थी. वह शान से जुडी हुई कोई भी चीज़ या बात अपने साथ नहीं रखना चाहती थी फिर वह उसका रूमाल हो या उसकी यादें.

पर किसी कारण जो उसे खुद को पता नहीं था उसने वह रूमाल अपनी पर्स में रख दिया. फिर उसने अपार्टमेंट के दरवाजे से लगी घंटी दबाई.

अंजली ने दरवाजा खोला. वह बाहर आई और मेधावी से लिपट गई. “अमेरिका में तुम्हारा स्वागत है. चलो, अंदर चलो और तुम्हारी लम्बी यात्रा के बारे में मुझे सब कुछ बताओ,” उसने मेधावी से कहा.

मेधावी ने अंजली को सब कुछ विस्तार से बताया सिर्फ एक  विषय को छोड़कर. वह विषय था- शान. उसने शान के बारे में बिलकुल भी जिक्र नहीं किया.



Order your copies of the novel "सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी" on the following Amazon links:

eBook or Digital Books:

Printed Books (Paperback):


English Version of the Novel (titled "Good People" or "Love Knows No Bounds")

The readers interested in reading this novel in English can read it on the following blog site:

Interesting Novels, Stories and Other Interesting Stuff : Read Now


3. सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी: 

4. Funny (and Not So Funny Short Stories): https://funny-shortstories.blogspot.com/


6.  Building Leadership and Management: http://shyam.bhatawdekar.com

Comments

Popular posts from this blog

अध्याय १

अध्याय ६

अध्याय १२