अध्याय ४


मेधावी क्लास की नंबर दो पर रहने वाली छात्रा थी. कहने के लिए तो उसका दूसरा क्रमांक था पर उसके और शान के गुणों के बीच जमीन-आसमान का अंतर था. मेधावी हर वर्ष जी तोड़ मेहनत करती पर हर बार उसके और शान के बीच के अंको की बहुत बड़ी खाई को वह कम नहीं कर पाई. वह शान को काँटे की टक्कर देना चाहती थी पर हमेशा असफल रही. उसका एकमेव ध्येय केवल शान की बराबरी में आना ही नहीं था बल्कि उसे पीछे छोड़ना था. उसे शान के आगे निकल जाना था.

मेधावी एक अत्यंत महत्वाकांक्षी लड़की थी. केवल सुन्दर दिखना उसके लिए काफी नहीं था. वह यूनिवर्सिटी के हर एक विद्यार्थी और प्रोफेसर को जता देना चाहती थी कि वह केवल सुन्दर ही नहीं थी बल्कि वह एक बहुत बुद्धिमान महिला भी थी. असल में उसके निशाने पर शान था. वह खास करके शान को खुद की श्रेष्ठता मनवा देना चाहती थी क्योंकि वही उसका सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी था, बुद्धिमत्ता में और सौंदर्य-सृष्टि में भी. वह शान को पराजित करना चाहती थी.

वह अपना यह सपना पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकती थी, किसी भी हद तक जा सकती थी. यहाँ तक कि हर साल वह परीक्षा के परिणाम आने के बाद दिन भर रोती भी रहती थी क्योंकि उसका कट्टर प्रतिद्वंदी उसे हमेशा पिछले क्रमांक पर छोड़ देता था. उसे इस तरह शान से मात खा लेना कतई पसंद नहीं था. वह शान से बहुत अधिक क्रोधित हो जाती और अपने गुस्से को अपने ही आसुओं से धोने में लग जाती.

दूसरी ओर शान मन ही मन उसकी प्रशंसा किये नहीं थकता था. उसे हर पल मेधावी से मित्रता करने के विचार सताते थे. पर वह इस ओर पहल करने से हिचकिचाता था.

फिर जब वे दोनों कॉलेज के अंतिम वर्ष में पहुँचे तब मित्रता का हाथ शान ने नहीं बल्कि मेधावी ने बढ़ाया. ऐसी एक कहावत है न कि जब आप शत्रु को हरा नहीं पाते हैं तो उसके साथ हो लेना चाहिए. इसलिए मेधावी ने शान से दोस्ती करने का निर्णय ले लिया.

उसने एक दिन कॉलेज के गलियारे में शान को अकेले जाते देखा. वह अपने विचारों में व्यस्त था. मेधावी ने ऐसा अभिनय किया जैसे उसने शान को न देखा हो और जान बूझकर शान से जा टकराई. उसने शान को ऐसे महसूस कराया जैसे उसका यूँ टकराना एक हादसा था.

उसने हड़बड़ाने और चौंकने का अभिनय किया. फिर कुछ लजाते-शरमाते बोली, “हे शान, मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ कि तुम्हे आते हुए देख न पाई और धड़ाम से तुमसे टकरा गई. मेरी वजह से तुम्हे कहीं चोट तो नहीं आई? मुझे प्लीज माफ़ कर दो.”

“मेधावी, यह सवाल तो मैंने तुम्हे पूछना चाहिये. गलती मेरी थी. मैं कुछ अपनी ही धुन में खोया सा चल रहा था और तुम्हे देख नही पाया. मैं भी कितना मूर्ख हूँ?”

“घबराओ मत. शान, मुझे कहीं कोई चोट-वोट नही आई. मैं एकदम ठीक-ठाक हूँ.”

“मैं भी ठीक हूँ. चलो मैं फर्श पर बिखरी तुम्हारी चीजों को इकठ्ठा कर देता हूँ.”

मेधावी भी शान की मदद करने लगी और इसी बहाने उसने जान बूझकर अपनी उंगलियाँ शान की उंगलियों से छू दी. शान को एक मीठा सा एहसास हुआ. मेधावी का छोटा सा स्पर्श सारी पुरुष जाति को ऐसी मीठी अनुभूति देने के लिए काफी था. इतनी कमाल की खूबसूरत जो थी वह! और बुद्धिमान भी!! सौंदर्य और दिमाग का ऐसा मादक मिलाप जिससे कोई भी पुरुष अपने आप को अछूता नही रखना चाहेगा!!!

शान भी एक शानदार व्यक्तित्व वाला सुंदर पुरुष था. शान के स्पर्श से हुए मीठे एहसास से माधवी भी बच नही पाई इसके बावजूद कि वह शान से सम्बन्ध जोड़ने का सिर्फ नाटक करना चाहती थी. पर अब ऐसा सब कुछ उसके साथ वास्तव में हो रहा था और वह इससे मिलने वाले आनंद का विरोध नही कर पा रही थी. कोई भी स्त्री इसका विरोध नही कर सकती थी. आखिर शान कमाल का हसीन जो था! और कमाल का बुद्धिमान भी!! सौंदर्य और दिमाग का ऐसा मादक मिलाप जिससे कोई भी स्त्री अपने आप को अछूता नही रखना चाहेगी!!!

“शान, मैं एक अरसे से तुमसे मिलना चाहती थी. पर मैं तुम्हे अकेले में मिलना चाहती थी,” मेधावी बोली. “हम इस तरह से और इस हालत में मिलेंगे ऐसा मैंने कभी भी नहीं सोचा था. फिर भी मैं इस टक्कर का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ.”

शान मेधावी की इस बात से एकदम सहमत था. वह बोला, “मैं तुमसे इस तरह मिलने से बहुत खुश हूँ. केवल हम दो- तुम और मैं. हम पहले भी क्लास रूम में कभी कभार मिल लिया करते थे पर वैसा मिलना कोई मिलना नहीं था.”

शान ने पहल की और मेधावी के सामने प्रस्ताव रखा, “क्यों न हम साथ में कॉफी लें?”

“क्यों नहीं?” मेधावी ने तुरंत जवाब दिया.

फिर वे दोनों कॉलेज की कैंटीन की ओर चल पड़े.

कॉलेज-कैंटीन कॉलेज की एक मात्र ऐसी इमारत थी जिसका भ्रमण छात्र और छात्राएँ सबसे अधिक करते थे. कॉलेज के विद्यार्थी क्लासेज या लाइब्रेरी में जाने से ज्यादा कैंटीन में बैठना पसंद करते थे. यहाँ लड़कों और लड़कियों को एक दूसरे को पढ़ने-पढ़ाने और परखने का ज्यादा सही वातावरण मिलता था. इस प्रकार की पढ़ाई, नीरस क्लास रूम्स में नीरस प्रोफेसर्स द्वारा नीरस विषयों पर दी जाने वाली नीरस पढाई से कहीं अधिक मनोरंजक और लाभकारक थी. बहुत सारी प्रेम कहानियाँ यहीं जनमी, पनपी और फूली-फली थीं. कई प्रेम कहानियों का दु:खांत भी यहीं हुआ था. सारांश में कहें तो कॉलेज की कैंटीन एक हॉट जगह थी. दिन भर लड़के-लड़कियों से भरी रहती थी. ऐसी भीड़-भाड़ वाली जगह पर एक भी खाली टेबल मिलना नामुमकिन था.

पर मेधावी के लिए आसान थी ऐसी सारी चीजें जो दूसरे छात्रों के लिए नामुमकिन थी. वह कॉलेज की सबसे सुन्दर लड़की थी और हर कोई उसका दीवाना था. यही दीवानगी मेधावी का हर काम आसानी से करवा देती. कैंटीन-मैनेजर भी इससे अछूता नही था. वह मेधावी के लिए हमेशा कोने वाली अच्छी सी टेबल का इंतज़ाम, किसी न किसी तिकड़म से, कर ही दिया करता था. आज भी मेधावी ने कैंटीन-मैनेजर से एक कोने वाली टेबल के लिए बोला. कैंटीन-मैनेजर ने मेधावी की इच्छा को सिर आँखों पर बिठा लिया और तुरंत अच्छी सी कोने की टेबल का इंतज़ाम कर दिया.

मेधावी और शान कुर्सियों पर बैठे. शान ने वेटर को बुलाया और अपना आर्डर दिया, “दो कप कॉफ़ी और साथ में कुछ बिस्किट्स ले आना.” आम तौर पर सारे विद्यार्थी सेल्फ-सर्व्हिस का इस्तेमाल करते थे क्योंकि वेटर-सर्व्हिस के लिए ज्यादा पैसे लगते थे. पर मेधावी के साथ कॉफी पीना शान के लिए एक ख़ास मौका था और इसलिए वेटर-सर्व्हिस पर ज्यादा पैसा खर्च करना उसे मंजूर था.

गरम कॉफ़ी पीते पीते मेधावी ने उसका प्रस्ताव शान के सामने रखा, “शान क्या तुम मेरी सहायता करोगे?”

“मेधावी, कैसी सहायता? किस बारे में?”

“तुम्हे पता है, शान, कि यूनिवर्सिटी में मैं दूसरे क्रमांक पर रहती हूँ, हमेशा तुमसे एक क्रमांक पीछे. पर मेरे मार्क्स तुम्हारे मार्क्स से बहुत ही कम होते हैं. इस मुँह-फाड़ अंतर की वजह से मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं दसवें क्रमांक पर हूँ. क्या तुम इस अंतर को कम करवाने में मेरी मदद कर सकते हो? डरो मत. मेरा तुम्हारे प्रथम क्रमांक को छीनने का कोई इरादा नही है. वहाँ तो तुम ही हमेशा डटे रहोगे. पर मैं तुम्हारी सहायता से मेरे मार्क्स बढ़ाने की कोशिश जरूर कर सकती हूँ. इसके लिये मैं तुम्हारा मार्गदर्शन चाहूंगी. तुम मुझे गाइड करोगे न?”

जब ऐसा प्रस्ताव मेधावी जैसे लड़की की तरफ से आया हो तो शान कैसे मना कर सकता था? उसने मन ही मन सोचा, “मैं तो कब से तुमसे दोस्ती करना चाहता था. तुम इतनी सुंदर और बुद्धिमान जो हो.”

बहरहाल उसने मेधावी से जो कहा वह ऐसा था. “तुम्हारी रिक्वेस्ट सर-आँखों पर. मुझे मंज़ूर है.”

“शान, फिर कब शुरू करें? पर तुम्हारे हॉस्टल रूम में नही. मैं लड़कों के हॉस्टल में जाना पसंद नही करती. यह भी सुना है कि हॉस्टल में किस समय जाया जा सकता है और कितनी देर तक रुका जा सकता है, इस पर प्रतिबन्ध होता है.” मेधावी ने शान की तरफ प्रश्नसूचक नज़रों से देखा.

“तुम सही हो. तब हम कहाँ मिला करेंगे?”

“मेरे घर में कैसा रहेगा? मेरा घर नजदीक ही है. मैं इस बारे में मेरे माता-पिता से बातचीत कर लूंगी. सिर्फ एक-दो घंटा रोज. शान, मैं तुमसे कुछ ज्यादा तो नही मांग रही? मुझे विश्वास है कि तुम मेरे लिये इतना तो कर लोगे?”

शान को मेधावी का यह सुझाव मंजूर था. उसने स्वीकृति में सिर हिलाया और बोला, “हाँ. ओके.”

“फिर कल ही से शुरू करें, शान?”

“ठीक है, मेधावी.”


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