अध्याय १५
मेधावी
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एम.एस. डिग्री का अध्ययन सुचारु रूप से कर रही थी.
वह खुद को यह जताने की कोशिश में रहती कि उसकी शैक्षणिक प्रगति शान की तुलना मे कहीं
ज्यादा बेहतर थी. शान ने ग्रेजुएट होने के बाद अपनी पढ़ाई रोक दी थी पर वह जल्दी ही
पोस्ट ग्रेजुएट होने जा रही थी.
एक
बार उसने उसकी रूममेट अंजली से कहा, "अंजी, क्या तुम्हे नहीं लगता कि मैं शान
से बेहतर हूँ? वह भारत का सिर्फ एक स्नातक है और मैं एक स्नातकोत्तर हूँ और वह भी अमेरिका
के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से. मुझे यकीन है कि मुझे अमेरिका में एक बढ़िया नौकरी
मिल जायेगी और वह भारत में अपने स्टार्ट-अप से जूझ रहा है.”
अंजली
ने कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिखाई. बस इतना भर कहा, "हाँ."
इसके
बाद मेधावी कई दिनों तक अंजली से खिंची-खिंची सी रही. उससे मेल-जोल और बोल-चाल
कम कर दी.
मेधावी
ने संस्कार के साथ अधिक और अंजली के साथ कम समय बिताना शुरू कर दिया. संस्कार उसका
सहपाठी था.
संस्कार
भी एम.एस. करने के लिए भारत से अमेरिका आया था. वह मेधावी के अपार्टमेंट के पास वाले
अपार्टमेंट में रहता था.
संस्कार
और मेधावी एक ही प्रोजेक्ट टीम में एक साथ मिलकर काम कर रहे थे. इसलिए उन्हें अक्सर
एक दूसरे से परामर्श करने की जरूरत पड़ती थी. इसी प्रक्रिया में उन्होंने एक-दूसरे के
अपार्टमेंट में आना-जाना शुरू कर दिया था.
एक
दिन जब वे संस्कार के अपार्टमेंट में थे, वे आपस में आम तौर की गप-शप करने लगे.
बातों
बातों में संस्कार ने बताया, "हमारा परिवार मूल रूप से दक्षिण भारत से आता है,
विशेष रूप से तमिलनाडु से. मैं एक शुद्ध हिंदू ब्राह्मण हूँ.”
"क्या
संयोग है! हमारा परिवार भी तमिलनाडु का है और हम भी शुद्ध हिंदू ब्राह्मण हैं.”
"क्या
तुम जानती हो कि मेरे माता-पिता ने मेरा नाम
संस्कार क्यों रखा?”
"मैं
कैसे जानू? तुम बताओ."
"मेरे
माता-पिता को हिंदू संस्कारों पर बहुत गर्व है. उनके अनुसार हिंदू संस्कार दूसरे धर्मों
के संस्कारों से बहुत ज्यादा श्रेष्ठ हैं. वे मुझमे उन सभी श्रेष्ठ हिन्दू संस्कारों
को आत्मसात हुआ देखना चाहते थे.”
मेधावी
ने कहा, "और इसलिए उन्होनें तुम्हारा नाम संस्कार रखा. एकदम सही.”
संस्कार
ने महसूस किया कि मेधावी को उसकी ये बातें
पसंद आई.
इसलिए
मेधावी को और भी प्रभावित करने के लिए उसने कहा, "मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं
उन संस्कारों के अनुसार ही अपना जीवन जीता हूँ.”
इसी
बात-चीत के दौरान संस्कार और मेधावी ने अपनी-अपनी व्यक्तिगत और शैक्षणिक जानकारी एक
दूसरे को विस्तार में बताई. उन्होंने एक दूसरे को यह भी बताया कि उनके माता-पिता भारत
में क्या करते हैं. उन्हें पता चला कि दोनों के पिता सरकारी नौकरियों में उच्च पदों
पर काम करते हैं. भारत के आम लोग सरकारी महकमे के ऊँचे पदों पर बैठे व्यक्तियों से
बहुत प्रभावित रहते हैं और उनसे डरते भी हैं. एक और महत्वपूर्ण बात मेधावी और संस्कार
के माता-पिताओं में बिकुल एक जैसी थी और वह थी उनका अत्यधिक धार्मिक होना.
संस्कार
और मेधावी दोनों यह जानकर प्रसन्न थे कि उनकी धार्मिक, व्यक्तिगत और पारिवारिक पृष्ठभूमि
एकदम समान थी. जल्द ही उनका शैक्षणिक साथ व्यक्तिगत दोस्ती में बदल गया. धीरे-धीरे
उन्होंने व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे को पसंद करने का फैसला किया. और अंत में एक-दूसरे
के साथ प्यार करने का फैसला भी कर लिया.
उन्हें
विश्वास हो चला था कि वे वाकई में एक-दूजे के लिए बने थे.
दोनों
के बीच चल रहे इन दोस्ती और प्यार वाले घटनाक्रमों के दौरान, वे अपने अपने माता-पिता
के साथ निरन्तर परामर्श कर रहे थे.
मेधावी
के माता-पिता ने संस्कार के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में मेधावी से बहुत सारी जानकारी
मांगी. मेधावी ने इसे संस्कार से कभी सीधे और कभी अप्रत्यक्ष रूप से हासिल किया.
संस्कार
के माता-पिता ने भी मेधावी के परिवार की पृष्ठभूमि के बारे में संस्कार से बहुत सारी
जानकारी मांगी. संस्कार ने इसे मेधावी से कभी सीधे और कभी अप्रत्यक्ष रूप से हासिल
किया.
इस
शोध कार्य में कई दिन और महीने बीत गये.
और
अंत में जब हर कोई संतुष्ट हो गया कि सब कुछ एकदम ठीक-ठाक है तब मेधावी संस्कार से
प्यार करने लगी और संस्कार भी मेधावी से प्यार करने लगा.
एम.एस.
पूरा करने की अंतिम परीक्षा पास आ चुकी थी. एक दिन वे दोनों संस्कार के अपार्टमेंट
में साथ-साथ पढ़ाई कर रहे थे. पढाई से ब्रेक लेकर वे एक साथ खाना पकाने के लिए रसोई
में थे. उस समय संस्कार ने सोचा कि यह सही मौका है मेधावी से अपना प्यार जाहिर करने
के लिये. उसने कहा, "मेधावी, अब हम कुछ ही दिनों में अपनी पढ़ाई पूरी कर लेंगे,
मुझे लगता है कि मेरे लिये मेरे प्यार को तुमसे जाहिर करने का यह सही समय है. मुझे
लगता है कि नौकरी पाने के बाद हमें जल्द ही शादी कर लेनी चाहिए. बेशक तुम्हारी सहमति
जरूरी है.”
"मैं
भी तुमसे यही बात कहने वाली थी,” मेधावी ने कहा. "मैं भी तुमसे प्यार करने लगी
हूँ. मुझे कोई दिक्कत नहीं है यदि हम तुम्हे नौकरी मिलने के तुरंत बाद शादी कर लेते
हैं. तब तक मेरे पास भी नौकरी होगी. यह सब ओर से सुविधाजनक है. क्या अब हमें अपने माता-पिता
को सूचित कर देना चाहिए?”
"हाँ,
हमें अपने माता-पिता को सूचित करना चाहिए. हमारी शादी के लिए बहुत सारी तैयारियाँ करने
की आवश्यकता होगी क्योंकि हमारी शादी सख्त धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार होगी. उन्हें
हमारे गुरुजी के साथ परामर्श करके एक उपयुक्त शुभ तिथि और शुभ मुहूर्त तय करना होगा.
इन सब के लिए समय तो लगेगा ही.”
"मैं
भी विवाह के सभी आवश्यक धार्मिक अनुष्ठानों और शुभ मुहूर्त में विश्वास करती हूँ. उनके
बिना, शादी एक शादी की तरह महसूस नहीं होती.”
"तुमने
एकदम पते की बात कही. यही मेरी राय भी है."
उनकी
इस बातचीत के बाद वे कुछ भावुक से हुए और औपचारिक तौर पर एक दूसरे के गले मिले.
फिर
दोनों ही अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गये.
पढाई
के साथ साथ विवाह के संदर्भ में वे दोनों अपने अपने माता-पिता के साथ चर्चा भी करते
थे.
संबंधित पंडितों से सलाह-मशविरा करके, संस्कार, मेधावी और उनके माता-पिता ने निर्णय लिया कि शादी अगले छह महीनों में भारत में चेन्नई में होगी. शादी के लिए अगले छह महीने का समय सबसे शुभ समय था. पृथ्वी के संदर्भ में ग्रहों की स्थिति के अनुसार शुभ समय का निर्णय लिया जाता था.
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