अध्याय ५

शान
मेधावी की पढाई में उसका मार्गदर्शन कर रहा था और साथ-साथ उसके प्यार में दीवाना भी
हुआ जा रहा था.
मेधावी
शान ने बताये हुए पढाई करने के और परीक्षाओं में ज्यादा से ज्यादा अंक प्राप्त करने
के तरीकों को आसानी से सीख रही थी. पर वह शान के प्यार में दीवानी नहीं हो रही थी.
बल्कि वह शान से प्रेम हो जाने का नाटक जरूर कर रही थी.
वह
जानती थी कि शान से प्यार करना निरर्थक था. उसे पता था कि वे दोनों एक दूसरे से शादी
नहीं कर पाएंगे. वह एक कट्टर हिन्दू थी. उसके माता-पिता उससे भी ज्यादा कट्टर हिन्दू
थे. उसने शान के बारे में काफी सारी जानकारी इकठ्ठा कर रखी थी. उसे पता था कि एक इसाई-मुस्लिम दंपत्ति ने उसे गोद लिया था.
उसने अनुमान लगाया कि शान या तो इसाई होगा या मुसलमान, यद्यपि उसे उसके धर्म
के विषय में पक्की जानकारी नहीं थी. फिर भी ऐसे लड़के से, जिसका धर्म हिन्दू नहीं था,
विवाह करना उसे मंजूर नहीं था. उसे यह भी पता था कि उसके माता-पिता भी ऐसे विवाह के
लिए कतई राजी नहीं होंगे. “फिर क्यों इस लव-शव के पचड़े में पड़ा जाये?” उसने सोचा.
मेधावी
का प्यार के विषय में उसका अपना नजरिया और सिद्धांत था. इस बारे में वह काफी होशियार
थी. उसके अनुसार ‘प्यार हो नहीं जाता, प्यार किया जाता है स्वयं के उपयुक्त व्यक्ति
से’. इसीलिये सामने दिख रही परिस्थिति में, शान कितने ही आकर्षक व्यक्तित्व का लड़का
क्यों न हो, उससे प्यार में न पड़ने का निर्णय उसने ले लिया. फिर भी दिल के एक ख़ास कोने
में वह उसके इस निर्णय से खुश नहीं थी. ऐसा लगता था कि शान ने उसके दिल के इस कोने
में ख़ास जगह बना ली थी.
शान
के मार्गदर्शन की वजह से मेधावी की पढाई में बहुत सुधार आ रहा था. परीक्षाओं में मिलने
वाले उसके गुण भी बढ़ रहे थे. उसके दिमाग में एक शरारत भरा ख्याल आया. “जिस गति से अब
मैं प्रगति कर रही हूँ इसी तरह यदि मैं शान की सहायता से आगे बढ़ती रही तो यूनिवर्सिटी
में टॉप भी कर सकूंगी, शान को हरा कर. मैंने यह सपना कबसे कितनी ही बार देखा है पर
हर वक्त शान मेरे सामने रोढ़ा बनकर खड़ा हो जाता है. अब सपना सच होने का समय आ गया है.”
इस
बीच शान ने मेधावी की मदद करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी. पर उसे क्या पता था कि
एक तरफ मेधावी उसे एक मार्गदर्शक की तरह इस्तेमाल कर रही थी और दूसरी तरफ उसे बलि का
बकरा बनाने का भी सोच रही थी.
एक
और ख्याल मेधावी के मन में आया, “यदि मैं किसी तरह शान का गाइडेंस और ज्यादा समय हर
दिन पा सकूँ
तो कितना
अच्छा होगा? इसके लिए उसको किस तरह प्रोत्साहित किया जाए?”
उसे
एक तरकीब सूझी और वह मन ही मन मुस्कुरा दी. उस तरकीब के बारे में सोचते सोचते उसे एक
अजीब सी गुदगुदी हुई और वह अपने आप से शरमा गई.
फिर
जो सोचा था उसके अनुसार, एक दिन जब वे साथ में पढाई कर रहे थे तब अचानक मेधावी अपनी
जगह से उठी, शान के पास गई, उसे अपनी बाहों में जकड लिया और अपने होठों से उसके होठों
को चूम लिया.
शान
के लिये यह सब कुछ अनपेक्षित था. पर इसकी उसे चाह नहीं थी ऐसा भी नहीं था. मन ही मन
वह इसके विषय में सोचता रहता कि ऐसी कोई घटना कब होगी. आखिकार उसे मेधावी से प्यार
जो हो चला था. पर मेधावी की अचानक की गई इस पहल से उसे थोड़ा धक्का जरूर लगा हालाँकि
शान जल्दी ही संभल गया. उसने अद्भुत गर्मजोशी से और शानदार रीति से मेधावी के चुम्बन
का उत्तर दिया. शान के बारे में यह निश्चित रूप से कहा जा सकता था कि वह जो कुछ भी
करता था, शानदार तरीके से ही करता था.
“मुझसे
अनजाने में कितनी बड़ी मूर्खता हो गई? मेरा यह सब कुछ करने का सच में कोई इरादा नहीं
था. मैंने यह नहीं करना चाहिये था. मुझे तुम्हे देखने में भी अब लज्जा आ रही है. मैं
शर्मिंदा भी हूँ. पर यह कहने से भी अपने आप को रोक नहीं पा रही हूँ कि शान, तुम्हारा
किस अप्रतिम था. सच सच बताओ. इससे पहले कितनी लड़कियों को तुमने किस किया है? शान, तुम
ऐसे कैसे हर चीज में परफेक्शन हासिल कर लेते हो?”
“ख़ुशी
है कि तुम्हे अच्छा लगा, माधवी. और हाँ, फिक्र मत करो. यह मेरा पहला किस था. पर मैंने
इसकी थ्योरी जरूर पक्की कर रखी थी और उसको प्रयोग में लाने के इंतज़ार में था. मौका
देने के लिये शुक्रिया.”
“छोडो
भी इस मामले को. मजाक बंद करो. सही में बताओ कि तुम थ्योरी कैसे पक्की करते हो?”
“अब
कोई मजाक नहीं. मैं पढ़ता बहुत हूँ और पैनी नज़र से देखता भी रहता हूँ,” शान मुस्कुराते
हुए बोला.
“जो
कुछ भी तुम मुझे समझाओ सर आँखों पर. लेकिन एक चीज सत्य है कि तुम सही माने में पुरुष
हो.”
इस
वक्त शान की शरमाने की बारी थी.
इस
दिन के बाद हर दिन, शान और मेधावी देर समय तक, पहले से कही अधिक, साथ पढाई करने लगे.
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