अध्याय १७

केली ने एक बार कहा, "शान, दुनिया एक वैश्विक गाँव जैसी बन रही है. ऐसे वातावरण में जब व्यापार, व्यवसाय और पैसे कमाने की बात आती है तब लोग एक-दूसरे के करीब आते दिखते हैं. लेकिन सामाजिक रूप से लोग उतने ही पिछड़े हुए हैं जितने कि वे सैकड़ों वर्ष पहले थे."

"हां केली, अभी भी ज्यादातर लोग अपनी अपनी नस्ल, रंग, धर्म, जाति, उप-जाति आदि के लोगों से ही सामाजिक संपर्क बनाना और रखना पसंद करते हैं. हम यह भी झुठला नहीं सकते कि इन विचारों और भेदभावों से व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्र भी एकदम अछूते नहीं हैं.”

"तुम्हारे और मेरे माता-पिता इन मामलों के अति-अल्पसंख्यक कहे जा सकते हैं.”

"हमारे माता-पिता सभी विचारों, सामाजिक मान्यताओं और विरोधों के बावजूद एक हो गए क्योंकि वे केवल एक ही चीज़ से संतुष्ट थे और वह थी एक दूसरे में नीहित मानवीय अच्छाइयाँ. उन्होंने सिर्फ एक दूसरे की अच्छाइयों को परखा और एक दूसरे को अपना लिया. और अच्छाइयाँ हर किसी में हो सकती हैं.”

"शान, तुमने सही कहा. यदि दो अच्छे व्यक्ति एक दूसरे को चाहते हैं तो वे एक दूसरे के करीब आ सकते हैं भले ही वे भिन्न भिन्न धर्मों या समुदायों से सम्बद्ध हों या ताल्लुकात रखते हों. इस तरह की कार्रवाई ही मानव प्रजाति का एकीकरण करने के लिए अनुकूल होगी.”

"यह एक बहुत ही हसीन सपना है जो सच हो जाये तो जन्नत मिल जाए. पर यह अगले सैकड़ों वर्षों में भी एक वास्तविकता बन जाएगी इसका पूरा यकीन नहीं होता."

"शान, हमें इसके बारे में न तो ज्यादा दार्शनिक होना चाहिए और न ही निराशावादी. हम इस तथ्य से खुश रहें कि तुम और मैं और हम दोनों के माता-पिता विविध विचारों वाले इंसानों की एक बहुत साफ़-सुथरी टोली बना चुके हैं. यह एक अच्छी दिशा में एक अच्छी, छोटीसी शुरुआत है.”

"और आशा करें कि अन्य लोग भी इस जैसा काम करना सीख लें.”

"शान, हमारे 'ह्यूमनिटी फ़ोरम' के समूह के सदस्य भी इसका महान उदाहरण हैं. जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं उसे वे पहले से ही हासिल कर चुके हैं. तो हम जैसे प्राणियों की संख्या बढ़ रही है. है न ख़ुशी की बात?”

इन्ही दिनों शान के माता-पिता यूसुफ और एलिस ने अमेरिका की यात्रा की. उन्होंने केली और उसके माता-पिता अरुण और यिन से मुलाकात भी की. एक दूसरे के साथ समय बिताने का आनंद उन सभी को बहुत भाया. इस प्रकार से भारत, चीन और अमेरिका के इसाई, हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध धर्म को मानने वाले व्यक्ति और किसी भी संगठित धर्म से संबद्ध नहीं होने वाले व्यक्ति करीबी पारिवारिक दोस्त बन गये.

अरुण और यिन अक्सर केली की असली माँ क्रिस्टी को याद करते थे. इस तरह क्रिस्टी, एक अफ्रीकी अमेरिकी सदस्य, अनुपस्थित रहकर भी इस अद्भुत भाई-चारे का हिस्सा बन गई. उनके दिल में क्रिस्टी के लिए विशेष स्थान था.

केली और शान पेशेवर तौर पर और मानवता सम्बन्धी गतिविधियों में साथ-साथ काम कर रहे थे. और अब अच्छे सहयोगी होने के अलावा वे धीरे-धीरे बहुत अच्छे दोस्त बन गये.

उनमे अच्छा-खासा सामंजस्य और तालमेल उत्पन्न हो गया था क्योंकि मूलतः वे अच्छे इंसान थे, हालाँकि वे बहुत ही विविध पृष्ठभूमि के थे.

......................

लेकिन पूरी तरह से समान पृष्ठभूमि होने के बावजूद मेधावी और संस्कार एक-दूसरे से दूर हो रहे थे.

अपनी शादी की पहली सालगिरह पर उन्होंने सोचा कि शहर के किसी प्रतिष्ठित रेस्तराँ में खाना खाया जाए. मेधावी ने सुझाव दिया, "चलो 'थाई फेस्ट रेस्टॉरेंट’ जाएँ. वहाँ एकदम प्रामाणिक शाकाहारी थाई भोजन मिलता है. सुना है कि रेस्तराँ का माहौल बिल्कुल अद्भुत है. मुझे थाई खाना बहुत पसंद है. मैंने शादी के बाद एक बार भी थाई खाना नहीं खाया है. संस्कार, चलो वहाँ जायेंगे.”

इस पर संस्कार ने अपनी प्रतिक्रिया दी. “मैं ऐसे किसी भी रेस्तरॉं में नहीं जा सकता जहाँ वे मांसाहारी भोजन भी पकाते हैं. इसलिये क्यों न हम किसी शुद्ध शाकाहारी भारतीय रेस्तरॉं में जाएँ?”

"लेकिन यहाँ कोई भी भारतीय रेस्तरॉं ऐसा माहौल प्रदान नहीं करता जो हमारी शादी की पहली सालगिरह के लिए उपयुक्त हो. मेरे द्वारा सुझाये गये इस थाई रेस्तरॉं मैं शाकाहारी भोजन सामग्री में गैर-शाकाहारी या मांसाहारी सामग्री को नहीं मिलाया जाता. सही बात तो यह है कि अन्य कोई अच्छे रेस्तरॉं भी इस तरह का मिश्रण नहीं करते. वे सब शाकाहारी भोजन अलग पकाते हैं और मांसाहारी भोजन अलग. या फिर तुम ही ऐसा रेस्तरॉं चुनो जहाँ हमें अच्छा माहौल मिले और अच्छा शाकाहारी भोजन भी.”

"हमें इस बात पर बहस करने की कोई जरूरत नहीं है. इसलिए बहस न करें तो अच्छा है. तुम इस विषय पर मेरे विचार जानती हो. केवल भारतीय रेस्तराँ और उनमें से कुछ विशेष ही शुद्ध तरीके से खास शाकाहारी भोजन पकाते हैं. हम उन्ही में से एक चुन लेते हैं. रेस्तराँ का माहौल और साज-सजावट उतनी महत्वपूर्ण बातें नहीं हैं.”

मेधावी ने बहस जारी नहीं रखी. वह अपनी शादी की पहली सालगिरह के मौके को और बदतर नहीं बनना चाहती थी.

मेधावी की शादी की पहली सालगिरह की शुरुवात इस प्रकार नीरसता भरी थी. देर रात तक उसका असंतोष केवल कायम ही नहीं रहा बल्कि बढ़ता गया.

यह असंतोष अब मेधावी के दिमाग पर स्थायी जख्म की तरह दुःख का एहसास पहुँचा रहा था. इस घटना के बाद उसने संस्कार के हरेक शब्दों, इशारों और हरकतों पर शक करना शुरू कर दिया.

एक दिन संस्कार ने मेधावी को निर्देश दिया, "हमारे धार्मिक सिद्धांत सामान्यतः जुलाई से सितंबर तक के बारिश के मौसम में प्याज और लहसुन खाने की अनुमति नहीं देते. इसलिये यदि इस अवधि के दौरान हम उनका उपयोग करने से बचें तो अच्छा रहेगा.”

"मुझे इसके बारे में यह पता नहीं था कि यह बात इतनी महत्वपूर्ण है. हम इस तरह के प्रतिबंध को साधारणतः जानते तो थे लेकिन मेरी माँ ने इसका सख्ती से पालन नहीं किया. वास्तव में उसने सोचा कि सभी मौसमों में लहसुन का उपयोग करना स्वाथ्य के लिए बहुत लाभकारी रहेगा. अब तुम मुझे बताओ कि यह प्रतिबंध क्यों है?” मेधावी ने पूछा.

"मुझे यह नहीं पता. लेकिन हम अपने संबंधित धर्मों द्वारा निर्धारित कई परंपराओं और नियमों का पालन करते हैं. यह हर धर्म के बारे में सच है, केवल हिंदू धर्म के लिए नहीं. प्रत्येक धर्म के लोगों ने उनके धर्म द्वारा निर्धारित ऐसे मार्गदर्शनों, अनुष्ठानों और उपदेशों का बिना प्रश्न पूछे या बिना शक किये पालन करना चाहिये.”

"पहले मैं भी ऐसी ही थी. मैंने धार्मिक अनुष्ठानों या रीति-रिवाजों पर पहले कभी कोई प्रश्न नहीं पूछा था. लेकिन अब मैं सवाल पूछना पसंद करूंगी,” मेधावी ने दृढ़ता से कहा. वह ऐसे मुद्दों पर स्पष्ट बोलने का साहस जुटा पाई थी.

"ऐसा मत करो. ऐसा करने से फायदा कम पर नुकसान ज्यादा होगा. किसी भी धर्म के उपदेशों और सिद्धांतों के बारे में शक करना या बहस करना लगभग पाप करने के समान है.”

संस्कार की इस राय पर मेधावी कुछ भी नहीं बोली. उसने चुप्पी साधे रखना पसन्द किया. उसे डर था की उनकी आपसी बहस-बाजी और भड़क सकती थी. मेधावी और संस्कार के बीच हर सप्ताह आम तौर पर एक या दो ऐसी चर्चाएँ होती थीं जो अक्सर गंभीर असहमतियों में परिवर्तित हो जाती थीं. मेधावी सोचती कि अगर उन दोनों में ऐसी चर्चाएँ जारी रहीं तो यह उनकी शादी के लिए खतरा बन सकता है. मेधावी अपने विवाह को टूटने से बचाना चाहती थी.

लेकिन जल्द ही संस्कार के बार बार दोहराए गए कट्टर धार्मिक व्यवहार मेधावी की छाती पर पहाड़ से महसूस होने लगे. कभी-कभी वह अपमानित महसूस करती थी. साथ-साथ वह चिढ, कुंठा, झुंझलाहट और पूरी निराशा भी महसूस करती थी. नित्य और बार-बार बहुत सी धार्मिक प्रथाओं, परम्पराओं और अनुष्ठानों के साथ चिपके रहकर उनका सख्ती से पालन करने की जबरदस्ती उसकी सहनशीलता से परे उसे परेशान किये जा रही थी. उसने सोचना शुरू कर दिया कि संस्कार का व्यवहार दिनों-दिन अजीब होता जा रहा है.

मेधावी अब धार्मिक परम्पराओं और शास्त्र-विधियों  का अति-पालन करने के लिए तैयार नहीं थी. साथ ही साथ अन्य धर्मों के लोगों को निम्नता भरी नज़रों से देखने की खुद की आदत को सुधारना चाहती थी. आम तौर पर संस्कार का दूसरे धर्मों के लोगों के प्रति दृष्टिकोण ऐसा ही हुआ करता था. पर मेधावी उससे हाँ में हाँ मिलाने को अब तैयार नहीं थी.

उसने सोचा, "काश मैंने किसी अन्य सुसंस्कृत और सुलझे व्यक्ति से शादी की होती जो धार्मिकता को लेकर इतना ज्यादा कट्टर-पंथी न होता! अब मैं उन अन्य धर्मों के लोगों की भी कल्पना कर सकती हूँ जो अपने धर्मों की हर छोटी-बड़ी किन्तु अनावश्यक बातों का पालन बहुत कट्टरता से करते हैं. उनके बारे में भी मेरी राय कोई अच्छी नहीं है.”

वह इस वक्त गंभीर परीक्षण करने की मनःस्थिति में थी. इसलिये इससे सम्बंधित और विचारों ने भी उसे घेर लिया. “लोग अपने धर्म के सिर्फ अच्छे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर सकते और अपने धर्म के प्रतिकूल पहलुओं को क्यों नहीं छोड़ सकते? वे अपने-अपने धर्म द्वारा प्रस्थापित अनुष्ठानों और नियमों की उपयोगिताओं के साथ-साथ उनकी व्यर्थताओं की जाँच करने के बाद अनावश्यक व गैर-मूल्य वाली बातों और कामों को क्यों नहीं रोक सकते या त्याग सकते? वे अन्य जातियों, धर्मों और समुदायों के अच्छे पहलुओं की सराहना क्यों नहीं कर सकते? वे उनसे नफरत करना या उन्हें निम्न-दृष्टि से देखना बंद क्यों नहीं कर सकते?”

वह संस्कार से जुडी अपनी समस्याओं का हल ढूँढना चाहती थी. इसीलिये वह इन सब मुद्दों पर गौर कर रही थी.

फिर अपने पति द्वारा तैयार किये गये कष्टमय माहौल में मेधावी को उसकी स्वतः की बुद्धिमत्ता ने रास्ता दिखाया. उसने संस्कार से दूर जाने का फैसला कर लिया.

उसने सोचा, "संस्कार से कुछ महीने का अलगाव उनके तनावपूर्ण रिश्ते को खत्म करने में मदद कर सकता है.”

उसने जापान में शुरू होने वाली उसकी कंपनी की नई परियोजना में खुद को शामिल करने के लिए कार्यालय में अपने बॉस से मिलने का फैसला किया. अगली सुबह वह बॉस के केबिन में प्रवेश करने वाली पहली कर्मचारी थी.

उसने उसका प्रस्ताव अपने बॉस के सामने रखा. उसने कहा, “हाल ही में आपने घोषणा की थी कि जापान की टीम में शामिल होने के लिए आपको हमारे अमेरिकी कार्यालय के कुछ लोगों की जरूरत है. मैं उसके लिये अपनी उम्मीदवारी पेश करना चाहती हूँ. मैं सभी दृष्टि से अपने आप को इस काम के लिये उपयुक्त समझती हूँ. मेरे पास उस तरह के काम को संभालने के लिए आवश्यक योग्यता और कौशल हैं. मुझे यकीन है कि मैं इस परियोजना में बहुत योगदान दे सकती हूँ.”

बॉस ने कहा, "मुझे तुम्हारा रेज़्यूमे एक बार और देख लेने दो. वैसे पहली नज़र में तुम इस काम के लिये सही मालूम पड़ती हो. इस बारे में अंतिम निर्णय लेने के लिये मुझे दो दिन दो. ठीक है?"

"धन्यवाद. मैं आपसे आपका निर्णय जानने के लिये इंतजार करूंगी.”


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