अध्याय ७

आज मुलाकात का वक्त आ गया था. शान मेधावी के घर के ड्राइंग रूम में बैठा था. सामने बैठे थे मेधावी के माता-पिता. उनके ही बगल में थी मेधावी.

शान ने कमरे पर नज़र दौड़ाई. आस-पास देखा. उसे आज सब कुछ और पूरा माहौल प्रसन्नता से भरा लग रहा था. कमरे की सजावट, जिस काम से वह आया था, उसकी पूरक महसूस हो रही थी. वह आश्वस्त हो गया कि इस मुलाकात का परिणाम सकारात्मक रहेगा. वह खुश था.

शादी के प्रस्ताव वाली ऐसी मुलाकातों में अक्सर होने वाले दामाद अपने होने वाले सास-ससुर के सामने बिचक से जाते हैं. पर शान इसका अपवाद था. सच तो यह था कि वह उसके होने वाले सास-ससुर से मिलने के लिए काफी उत्सुक था.

शान को विश्वास था कि सब कुछ आसानी से हो जायेगा. उसके विचार जारी थे. “मेधावी इतना जो मुझे चाहती है, प्यार करती है. उसने हमारे प्यार के बारे में उसके माता-पिता को पहले ही से बताया हुआ है. यह मुलाकात तो एक औपचारिकता मात्र है.”

आज मेधावी ने अपने माता-पिता और शान के बीच परिचय काफी औपचारिक और विस्तृत रूप से करवाया. अब तक उसके माता-पिता शान को मेधावी के कॉलेज का मित्र मानते थे. वे उसके बारे में इतना और जानते थे कि वह मेधावी को पढ़ाई में आने वाली कठनाइयों को सुलझाने में सहायता करता है. अब तक वे उससे केवल एक दो बार ही मिले थे.

परिचय करने के बाद वाली कुछ मिनिटों की स्तब्धता को मेधावी के पिता ने तोड़ते हुए कहा, “शान, मेरी लड़की ने मुझे बताया है कि वह तुम्हे बहुत चाहती है. वह तुम्हारी तारीफ़ भी करती है कि तुम बहुत होशियार हो. तुमने यूनिवर्सिटी में टॉप किया है. उसने यह भी बताया कि कठिन परिश्रम और लाख कोशिशों के बावजूद वह तुम्हारे जैसे मार्क्स अब तक किसी भी परीक्षा में नहीं ले पाई. मुझे पूरा भरोसा है कि तुम्हारे इतने अच्छे कॅरियर के कारण तुम्हे जल्दी अच्छी नौकरी मिल जायेगी. तुम जिंदगी में तरक्कियों की उच्चाइयों को छू पाओगे. फिर भी दूसरे माँ-बाप की तरह हम भी तुम्हारे कॅरियर के अलावा तुम्हारे बारे में और भी जानना चाहेंगे.” इतना कहकर मेधावी के पिता रुक गए.

“आप जो कुछ भी जानना चाहते हैं, जरूर पूछिए,” शान बोला.

“शान, हम तुम्हारे परिवार के बारे में जानना चाहेंगे यानी फॅमिली बैकग्राउंड.”

“क्या मेरे माता-पिता के बारे?”

“हाँ. उनके बारे में. तुम्हारे दूसरे सगे-सम्बन्धियों के बारे में. जैसे, तुम्हारे भाई-बहन, दूसरे सम्बन्धी और इस तरह की आम मालूमात.”

“मेरे माता-पिता उत्कृष्ठ माँ-बाप तो हैं ही और साथ में अति परिष्कृत इंसान भी हैं. वे समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से है. उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है. दोनों एम. डी. डॉक्टर्स हैं. मेरे पिता सर्जन हैं और माँ गैनोकोलॉजिस्ट हैं. वे इतने सुलझे विचारों हैं कि वे अंतर्धार्मिक विवाह करने में भी नहीं हिचकिचाए. वह भी उन दिनों में जब अंतर्धार्मिक या अन्तर्जातीय विवाह के बारे में सोचना भी गुनाह था. उन्होंने मुझे एक अनाथाश्रम से गोद लेने का साहस भी दिखाया. मेरे कोई भाई-बहन नहीं हैं. मेरे माता और पिता से, उनके अंतर्धार्मिक विवाह की वजह से, उनके रिश्तेदारों ने सारे नातें तोड़ दिए. इसीलिए मेरे और कोई सगे-सम्बन्धी नहीं हैं.”

अपने होने वाले दामाद की पारिवारिक जानकारी के बारे में सुनकर मेधावी की माँ को बहुत बड़ा धक्का लगा. वे बेहोश होते-होते बची. उनके चहरे से हवाइयाँ उड़ गई थीं. मेधावी के पिता भी अंत्यंत विचलित हो गये. पर उन्होंने किसी तरह अपने आप को संभाला और यह प्रतीत नहीं होने दिया कि उन्हें जबरदस्त सदमा पहुँचा है. मेधावी ने जान बूझकर शान की पारिवारिक जानकारी अपने माता-पिता को नहीं दी थी. ऐसी जानकारी छुपाकर रखना उसके प्लान का महत्वपूर्ण अंग था.

जैसे तैसे मेधावी के पिता ने शान के साथ सम्भाषण जारी रखा. “मुझे थोड़ी उत्सुकता हो रही यह जानने की कि तुम्हारे माताजी और पिताजी के धर्म क्या हैं? और जब उन्होंने तुम को अनाथालय से गोद लिया तब उन्हें तुम्हारे धर्म के बारे में कुछ पता था क्या?”

“मेरी माताजी इसाई धर्म को मानती हैं और मेरे पिताजी मुस्लिम धर्म को. विवाह के बाद उनमे से कोई भी अपना धर्म नहीं बदलेगा ऐसा उन्होंने पहले से सोच रखा था. अनाथालय के संचालक के अनुसार मैं एक हिन्दू बच्चा था. उनके पास इस बात का कोई ठोस आधार, प्रमाण या सबूत नहीं था. मेरे माँ-बाप के लिए यह महत्वपूर्ण नहीं था कि दत्तक लिया जाने वाला बच्चा किस धर्म का हो. इसीलिये उन्हें मेरे जैसे हिन्दू प्रमाणित को गोद लेने में कोई झिझक नहीं हुई.”

“तो उन्होंने तुम्हारे लिये कौन सा धर्म चुना? हिन्दू, मुस्लिम या इसाई?”

“स्पष्ट बोलूँ तो कोई भी नहीं. मेरे पालन पोषण के दौरान मुझसे सम्बंधित काफी सारे मुद्दे वे तय नहीं कर पाये. एक दूसरे से विवाह करने में और मुझे दत्तक लेने में जो असीम परिपक्वता उन्होंने दर्शाई थी, उस परिपक्वता का उपयोग वे उनके गोद लिये बेटे से सम्बंधित बातों को तय करने में नहीं कर पाये.”

“मैं कुछ समझा नहीं. तुम जो बोल रहे हो वह मुझे समझ में नहीं आ रहा.” बहुत स्पष्ट था कि मेधावी के पिता इस संवेदनशील मसले पर विस्तृत जानकारी चाहते थे.

“मेरे माता और पिता में, मेरे लिए कौन कौन सी धार्मिक प्रथाएँ और नियम ज्यादा उपयुक्त रहेंगे, इसको लेकर काफी मतभेद हुआ करते थे. जैसे कि मेरा हिन्दू रीतियों की तरह यज्ञोपवीत या उपनयन किया जाये अथवा इसाइयों की तरह बप्तिस्म किया जाए या मुस्लिमों की तरह खतना किया जाए? फिर एक प्रश्न था मेरे खान-पान का था. हरेक धर्म में खाने के कौन से पदार्थ निषिद्ध हैं और किन पदार्थों के सेवन की अनुमति या छूट है, इस विषय पर ख़ास नियम होते हैं. मेरे लिये कौन से नियम लागू किये जाएँ? मैंने अल्लाह की प्रार्थना करनी चाहिए या ईसामसीह की या हिन्दू देवी देवताओं की? ऐसे विषयों पर बातचीत करने से वे कतराते रहे, बचते रहे. उन्हें डर था कि इन बातों को लेकर उनमे और मतभेद न पैदा हो जाएँ. ऐसे किसी संघर्ष में एक दूसरे से खोने का डर उन्हें खाये जा रहा था. उन्हें डर था कि इन बातों को लेकर उनके आपसी रिश्तों में दरार न पैदा हो जाए. इसीलिये मुझसे जुड़े हुए इन मुद्दों पर निर्णय लेना वे टालते गए.”

“फिर?” मेधावी के पिता ने शान से उसकी बात जारी रखने का संकेत देते हुए कहा.

“इसी पशोपेश और दुविधा में एक हद्द तक चर्चा करके वे आगे चर्चा करना बंद कर देते. वे इन विषयों पर निर्णय लेना टालते गये. ‘फिर कभी सोच लेंगे’ कहकर बातचीत रुक जाती थी. और क्योंकि ये सारी चीज़ें मेरा धर्म क्या हो इस पर निर्भर थी, वह निर्णय भी पीछे रह गया.”

“तो क्या इसका मतलब यह है कि तुम तुम्हारे माता या पिता में से किसी का भी धर्म नहीं मानते?”

“ऐसा नहीं है. अब तक वे मेरे धर्म के बारे में कोई निर्णायक कदम नहीं उठा पाए थे. पर क्योंकि अब मैं वयस्क हो गया हूँ उन्होंने हाल में इसके बारे में फैसला लेने का अधिकार मुझे दे दिया है.”

“अब तो सब कुछ आसान हो गया तुम्हारे लिये. तुम हिन्दू धर्म को अपना सकते हो. अभी थोड़ी देर पहले तुमने बताया था कि अनाथाश्रम के प्रमाणपत्र के मुताबिक तुम जन्मतः हिन्दू हो. इसलिए हिन्दू ही तुम्हारा धर्म है, सैद्धांतिक या तार्किक रूप से.”

“उससे क्या होगा? वह भी तो गलत हो सकता है. अनाथाश्रम चलाने वाले लोगों को कैसे पता चला कि मैं हिन्दू हूँ? मेरा धर्म कुछ भी हुआ होगा- हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, इसाई या और कोई. किसी ने मुझे अनाथाश्रम के दरवाजे पर मेरे जन्म के कुछ ही दिनों बाद छोड़ दिया था. अनाथाश्रम के संचालक मुझे वहाँ छोड़ने वाले व्यक्ति से मिले नहीं थे उनसे मेरे धर्म के बारे में पूछने के लिए. उन्होंने बिना किसी आधार के प्रमाणपत्र पर मेरा धर्म हिन्दू लिख दिया था. इसलिए मैंने फैसला कर लिया है कि मैं अपने आप को किसी भी संगठित धर्म से नहीं जोड़ूंगा.”

मेधावी के माता-पिता से शान की मुलाक़ात अब एक नाजुक मोड़ पर आ गई थी. कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति मुलाकात में उपजी गंभीरता को अनुभव कर रहा था.

ऐसे गंभीर वातावरण के बीच मेधावी के पिता ने मौन तोड़ने का साहस किया और बोले, “मेरे परिवार और मुझे इस विषय पर सोचने के लिए कुछ समय लगेगा.”

इस पर शान ने पूछा, “क्या मेरे धर्म की वजह से आपको कोई आपत्ति या अड़चन है? मुझे नहीं लगता कि मेधावी को इससे कोई ऐतराज़ है. वह मुझसे प्रेम करती है और मैं उससे. क्या इतना काफी नहीं है? मेरा मस्तिष्क, त्वचा और खून मेधावी और आप लोगों से भिन्न नहीं हैं. मेरा ऐसा कहना आपको किताबी लगता होगा पर मेरा इस पर पूरा और पक्का यकीन है.”

ऐसा कहकर शान ने मेधावी की ओर आशा-भरी नज़रों से देखा. वह इस क्षण मेधावी का पूर्ण समर्थन चाहता था.

पर मेधावी के तेवर कुछ और थे. उसने पैने शब्दों में शान की बातों को काटते हुए कहा, “रुक भी जाओ शान. मेरे माता-पिता को थोड़ा सोचने का मौका और समय तो दो. वे बहुत उदारवादी सोच रखते हैं. अंत में सब कुछ ठीक हो जाएगा.”

फिर तुरंत उनकी सभा एकाएक बरख़ास्त हो गई. शान को मेधावी के रुख पर आश्चर्य हो रहा था. मेधावी की तटस्तथा उसकी समझ के परे थी, धक्कादायक थी.

शान जब घर से बाहर जाने के लिए निकला तब मेधावी उसे छोड़ने के लिए उसके साथ बाहर नहीं गई जैसा पहले वह हमेशा करती थी. ऐसी बेरुखी मेधावी ने पहली बार जाहिर की थी. उसकी अनिश्चितता ने शान को बेचैन कर दिया.

पर शान ज्यादा विचलित नही हुआ. जल्दी ही संभल गया. उसे एहसास हुआ कि उसके साथ एक बार फिर वही होने जा रहा था जिसका अनुभव उसे हाल में जॉब-इंटरव्यू में हुआ था. टॉपर होने के बावजूद उसे चुना नहीं गया था. अब शायद मेधावी के माता-पिता और शायद मेधावी भी उसे नामंजूर न कर दें.

वह उसके हॉस्टल-रूम की ओर अकेला ही चल पड़ा.



Order your copies of the novel "सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी" on the following Amazon links:

eBook or Digital Books:

Printed Books (Paperback):


English Version of the Novel (titled "Good People" or "Love Knows No Bounds")

The readers interested in reading this novel in English can read it on the following blog site:

Interesting Novels, Stories and Other Interesting Stuff : Read Now


3. सीमाओं के परे: एक अलग प्रेम कहानी: 

4. Funny (and Not So Funny Short Stories): https://funny-shortstories.blogspot.com/


6.  Building Leadership and Management: http://shyam.bhatawdekar.com

Comments

Popular posts from this blog

अध्याय १

अध्याय ६

अध्याय १२