अध्याय ८

शान निकला तो था हॉस्टल-रूम जाने के लिये पर वह वहाँ नहीं पहुँचा. इस परिस्थिति ने, जिससे वह अभी गुजर रहा था, उसे एक अलग दिशा में जाने के लिये मजबूर कर दिया. उसके पैर उसे हॉस्टल के पास वाली चट्टानों की ओर ले गये. ऊँची सी चट्टानों से सटी एक बड़ी झील थी. जब भी उसे किसी महत्वपूर्ण विषय पर मनन करने की आवश्यकता होती वह झील की इन्ही चट्टानों का रुख कर लेता था. झील के पानी के चट्टानों से टकराने की लयबद्ध संगीतभरी आवाजों से सुकून मिलता था. मेधावी के माता-पिता से हुई मुलाकात और मेधावी के कुछ बदले बदले रुख जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गंभीरता से विचार करना शान के लिये जरूरी हो गया था.

वह मनन करना चाहता था. उसे एकांत की जरूरत थी. झील और चट्टानों से पैदा हुआ नीरव, शांतिमय वातावरण उसे उसके लिये इस समय जरूरी विचारों की स्पष्टता पाने के लिये सहायक था. कुछ देर तक वह चट्टानों से घिरे अकेलेपन में बैठा रहा. इसके पहले कि वह मेधावी के घर में हुई घटनाओं पर सोच-विचार करना शुरू करता, उसे उसके बगल की चट्टान से जो थोड़े से अंतर पर स्थित थी, एक लड़की के खिलखिलाने की आवाज़ आई. चट्टान के पीछे बैठी लड़की को वह देख नहीं सकता था पर सुन जरूर सकता था. उसके कान उस तरफ मुड़ गये.

“तुम पागलों की तरह क्यों खिसिया रही हो?” दूसरी लड़की ने पूछा. ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ एक नहीं बल्कि दो लड़कियाँ थी.

हँसनेवाली लड़की ने जैसे तैसे अपनी हँसी पर काबू पाते हुए उत्तर दिया, “एक मिनट रुको. थोड़ा सब्र करो. इन चट्टानों पर ठीक से बैठ तो लो. फिर सब कुछ तुम्हे बताती हूँ. मेरी जीत की बात मुझे तुमसे तुरंत शेयर करने की इच्छा हो रही थी. तुम मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड जो हो. अच्छा हुआ कि तुम तुम्हारे हॉस्टल-रूम में थी और मैं तुम्हे यहाँ तक खींच कर ला पाई. मैं तुम्हे सब कुछ बता देने के लिए उतावली हो रही थी.”

शान की उत्सुकता पल पल बढ़ रही थी ठीक वैसे ही जैसे एक रहस्यमय सिनेमा देखते समय होता है. वह उस चट्टान की तरफ जरा खिसका जिस ओर से लड़कियों की बातचीत करने की आवाज़ आ रही थी. वह इस तरह से छुपा बैठा था जिससे वे लड़कियाँ उसे देख न सकें. वह भी उन्हें देख नहीं पा रहा था. उनकी आवाजों पर से वह उन लड़कियों को पहचान नहीं पाया. हँसने वाली लड़की कौन थी? दूसरी लड़की कौन थी? शान इस बारे में अटकलें भी नहीं लगा सका.

उसने खिलखिलाने वाली लड़की को फुसफुसाते हुए सुना, “अंजी, लड़के वाकई में बहुत बेवकूफ होते हैं. और यदि लड़का विचित्र टाइप का हो और वह यह कहे कि उसका कोई धर्म नहीं है तो वह लड़का एकदम बड़ा सा पागल दिखता है.”

लड़की की अंतिम टिप्पणी सुनकर शान को लड़कियों की बातचीत सुनने में रस आने लगा था. उसने उसका एक कान चट्टान से सटा दिया. लड़कियाँ बहुत धीमी आवाज़ में बोल रही थीं. वे आगे क्या बोलेंगी यह सुनने के लिए वह उत्सुक था.

दूसरी लड़की क्या कहना चाह रही थी यह अंजी नाम की लड़की की समझ के बाहर था क्योँकि वह पूछे बिना रह न सकी, “सीधे सीधे बताओ मेधावी कि तुम आखिर कहना क्या चाहती हो? पहेलियों में रहस्यमयी और मूर्खताभरी बातें मत करो.”

शान को एक जबरदस्त धक्का लगा. उसने सोचा, “ओह! ये दो लड़कियाँ तो मेधावी और अंजी याने अंजली हैं- अंजली, जो मेधावी की सबसे करीबी दोस्त है और पास वाले लड़कियों के हॉस्टल में रहती है. इसका मतलब यह है कि मेधावी छुप-छुपाकर, गुप्त रूप से मेरे बारे में कुछ तो अंजली को बताने की कोशिश कर रही है.”

फिर एक लड़की की आवाज़ सुनाई दी. “यह लड़का सोचता है कि महज यूनिवर्सिटी-टॉपर होने की वजह से वह मुझे प्रपोज़ करने लायक हो गया है! और तो और, मेरे माता-पिता से मेरा हाथ मांगने की हिम्मत भी मिल गई है.”

“उसने तुम्हे प्रपोज़ कर दिया तो क्या गलत किया? मुझे लगा कि तुम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हो,” अंजली ने अपना तर्क मेधावी को पेश किया.

“अंजी, मेरी तरफ से यह प्यार-वार शुरुवात से ही एक नाटक था. सिर्फ एक बनावटी बात! और उस गधे ने सोचा कि मैं उससे प्यार करती हूँ. मैं थोड़े समय के लिए उसे अपना बनाना चाहती थी पर एकदम अलग कारण की वजह से. उसकी करीबी बनकर मैं उससे पढाई करने के नुस्खे सीखना चाहती थी जिससे मैं यूनिवर्सिटी-टॉपर बनने के मेरे लक्ष्य को हासिल कर पाऊँ.”

“मेधावी, फिर भी तुम टॉप नहीं कर पाई, शान को हरा न सकी. इसका गुस्सा तुम्हे है और इसलिए तुम शान से किसी तरह बदला लेना चाहती हो. बताओ मेधावी, यह सच है या नहीं? तुम नंबर एक की दुष्ट लड़की हो.”

“तुम जैसा समझ रही हो वैसा कारण कतई नहीं है. मुख्य कारण यह है कि मैंने उससे प्यार करने के बारे में या उससे शादी करने के बारे में कभी नहीं सोचा क्योंकि मुझे उसका फॅमिली बैकग्राउंड पता था. अंजी, उसका कोई फॅमिली बैकग्राउंड ही नहीं है. सामाजिक तौर पर वह शून्य है, खोखला है. जानती हो अंजी, वह किसी भी धर्म को नहीं मानता. वह धर्म-रहित प्राणी है.”

“यह तुम क्या बकवास कर रही हो, मेधावी. क्या कोई ऐसा भी हो सकता है?”

“हाँ अंजी, शान ऐसा ही है. उसका किसी धर्म-वर्म से नाता या सरोकार नहीं है ऐसा वह कहता है. उसे एक कपल ने, जिसमे पत्नी इसाई है और पति मुस्लिम है, एक अनाथाश्रम से गोद लिया था.”

अंजली ने मेधावी को बीच में ही टोका, “तब या तो वह इसाई है या मुसलमान है.”

“ऐसा नहीं है, अंजी, क्योँकि उसके कानूनी माता-पिता यह नहीं तय कर सके कि उसे कौन सा धर्म दिया जाए. हालाँकि उन दोनों ने अन्तरधार्मिक शादी की है फिर भी किसी वजह से अपने गोद लिए बेटे को कौन सा धर्म दिया जाए इसे तय करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाये. इसी बीच किसी धर्म को अपनाये बिना शान बड़ा हो गया.”

“पर अब शान वयस्क है और वह उसके माता-पिता में से किसी एक का धर्म अपना सकता है. उसे ऐसा करने की आज़ादी है.”

मेधावी ने उत्तर दिया, “आज़ादी है इसीलिए शान ने निर्णय ले लिया है. वह किसी भी संगठित धर्म का हिस्सा बनने में विश्वास नहीं रखता. वह विचित्र आदमी है. उसके अनुसार वह स्वतंत्र रहना चाहता है. वह मौजूदा धर्मों की संकुचितताओं, उनमे उदारताओं की कमियों और नाहक थोपी गईं निरर्थक विधियों, कर्म-क्रियाओं व औपचारिकताओं में बंधना नहीं चाहता.”

“तब तो सही में तुम्हारे लिये मुसीबत वाली बात है. मैं भी धर्म को न मानने वाले शख्स से शादी करने की कल्पना नहीं कर सकती. पर फिर मेधावी, तुम उसे तुम्हारे प्यार के चक्कर में फँसने के लिये क्यों उकसाती रही? और तुम थोड़ी देर पहले तुम्हारी किसी जीत के सम्बन्ध में बोल रही थी? कौन सी जीत? कैसी जीत?”

“ओह! मैं गुस्से से दीवानी हो गई थी. मैं प्रतिशोध लेना चाहती थी. इस साल एक बार फिर उसने मुझे यूनिवर्सिटी-टॉपर बनने से रोक लिया. यह हमारा अंतिम वर्ष था और मेरा आखरी मौका था टॉप करने का. अंतिम परीक्षा मे टॉप करना मेरी इन सरे सालों की सबसे ऊँची तमन्ना और महत्वाकांक्षा थी. हमेशा की तरह शान ने उसी पर पानी फेर दिया. उसे मैं कभी माफ़ नहीं करूंगी.”

“तो इसमें तुम्हारी जीत की कौन सी बात है? बाजी तो शान मार के ले गया. उसने टॉप किया. सही में जीत उसकी हुई न?”

“नहीं, अंजी. उसने मुझे इतने सालों में जितनी चोट दी है उससे कहीं ज्यादा चोट मैं उसे पहुँचाना चाहती थी. इसके लिये मैंने उससे प्यार का नाटक रचा. अंत में मैंने उसे मेरे माता-पिता से मिलने और बात करने के लिये उकसाया. आज वह उनसे मिला भी. मुझे पक्का पता था कि वे ऐसी शादी के लिये कभी भी मंजूरी नहीं देंगे. वे सच्चे धर्मनिष्ठ हिन्दू हैं. वे शादी में अपनी बेटी का हाथ किसी दूसरे धर्म वाले लड़के के हाथ में देने का सोच भी नहीं सकते. और शान तो इससे भी कोसों दूर है, एकदम अलग-थलग. उसका तो कोई धर्म ही नहीं है.”

“मेधावी, यार, तुम तो बहुत दुष्ट दिल वाली निकली. तुममे दिल-विल हैं की नहीं? तो इसका मतलब यह कि तुम्हारे माता-पिता ने शान को नामंजूर कर दिया है. और इसे एक महत्वपूर्ण कारण होने का बहाना बनाकर फिर तुमने भी शान को ठेंगा दिखा दिया होगा. सॉरी, परिष्कृत भाषा में कहूँ तो तुमने भी तुम्हारी अस्वीकृति दे दी होगी. शान के सामने रोने धोने का नाटक करके कहा होगा कि मैं मेरे माँ-बाप को दुखी नहीं देखना चाहती. शान, मुझे तुम भूल जाओ. मैंने सही कहा न?”

“अंजी, तुम जिस तरह से कह रही हो वैसे नहीं. मेरे माता-पिता तुम जैसा सोच रही हो उससे कहीं ज्यादा सभ्य हैं. उन्होंने शान से इस विषय पर सोचने के लिये वक्त माँगा है. मैंने भी शान से यही कहा कि उन्हें सोचने का समय दो. कुछ गलत तो नहीं किया मैंने!”

“क्या शान तुम्हारे माता-पिता से फिर मिलेगा? इस मुलाकात में उसे तुम्हारा साथ यानि समर्थन न मिलने पर वह बहुत दुखी हुआ होगा, है न? तुमने तो झट तुम्हारे माता-पिता का राग उसके सामने आलाप दिया?”

“हाँ, बिलकुल. फिर भी वह मेरे माता-पिता से मिलने आएगा. जरूर आएगा. वह मेरे प्यार में गहराई तक डूबा हुआ है. जब वह अगली बार उन्हें मिलने आएगा तब मैं मजबूर और लाचार होने का नाटक करुँगी. मेरे माता-पिता उनका निर्णय शान को सुनाएंगे. मैं अप्रत्यक्ष रूप से उनका समर्थन करुँगी. मैं उसके चेहरे पर मुझसे शादी करने की इच्छा और महत्वाकांक्षा को टूटने क़े कारण हुई निराशा को देखना चाहती हूँ. उसके चेहरे से हवाइयाँ उड़ते देखना चाहती हूँ. तब हम बराबरी में आ जाएंगे, हमारे खेल का लव-ऑल हो जाएगा.”

“पर यह बताओ मेधावी, यदि तुम यूनिवर्सिटी में टॉप कर लेती तो कोई फर्क आ सकता था? तब तो तुम्हे शान के साथ आगे जाने में कोई आपत्ति नहीं होती? फिर शान से बदला लेने का सवाल ही नहीं पैदा होता था?”

“बदला? नहीं. तुमने ठीक सोचा. तब शान से बदला किस चीज़ का? पर अंत ऐसा ही होता. मैं ऐसे किसी भी व्यक्ति के साथ शादी नहीं कर सकती जिसका कोई धर्म ही न हो. और यह भी पक्का है कि मैं हिन्दू लड़के से ही शादी करुँगी. लड़का हमारी बिरादरी का ही होना चाहिये.”

शान ने मेधावी और अंजली क़े बीच हो रही बातचीत को ध्यान से सुना. शुरुवात में उसे बहुत दुःख हुआ. खुद को आहत महसूस किया. पर जल्दी ही सँवार भी लिया. उसने अपनी भावनाओं को काबू कर लिया.

मेधावी और अंजली के आखरी संवादों तक आते आते वह एकदम सामान्य स्तिथि में आ चुका था.

उसने अपने आप से सवाल पूछा, “मुझे क्यों और कैसे इस जैसी चालाक और कुटिल लड़की से प्यार हो गया? अब मैं ऐसा महसूस कर रहा हूँ जैसे मैं इस लड़की को जानता ही नहीं. असली मेधावी जिसे मैंने प्यार किया वह तो कोई और थी. यह मेधावी नकली है, मेरे लिये अजनबी है.”

मेधावी ने उसका दिल तोड़ दिया था. कुछ पलों के लिये वह बहुत मायूस हो गया था.

फिर भी वह एक नज़रिये से खुश भी था कि उसे मेधावी और उसके माता-पिता से तय की गई दूसरी मुलाकात में जलील नहीं होना पड़ेगा. वह एक मजाक बनने से बच जायेगा. अब उसे उन लोगों से मिलने की कोई ज़रुरत नहीं थी क्योंकि वह मेधावी के सारे इरादों, मनसूबों और दाँव-पेचों को पूरी तरह से जान चुका था. उसका काम हो चुका था. उसको इन निरर्थक बातों में अपना वक्त बेकार करने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही.

मेधावी जल्द ही उसके दिलो-दिमाग से निकल जाएगी.



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