अध्याय १३

शान केली का इंतज़ार बहुत उत्सुकता से करने लगा. पिछले कुछ दिनों से वह केली के बारे में कुछ ज्यादा ही सोचने लगा था. उसे खुद उसके इस व्यवहार पर आश्चर्य हुआ. उसने मन ही मन सोचा, “ऐसा क्यों? शायद क्योंकि वह एक स्वतंत्र विचारों वाली लड़की है? या क्योंकि शायद वह बहुत ही सुन्दर है? या शायद दोनों ही?”

जब वह ऐसे विचारों में खोया हुआ था केली ने उसके अपार्टमेंट में प्रवेश किया. घर का दरवाजा खुला था. केली ने सोचा, “शान मेरे आने की अपेक्षा कर रहा होगा इसीलिए घर का दरवाजा खुला रख छोड़ा है.”

दूसरी ओर शान उसके ख्यालों में इस कदर डूबा हुआ था कि उसे केली के आने की खबर तक न हुई. शान की किसी विषय पर एकाग्रता को देख कर केली थोड़ी मनोरंजित हुई. वह मुस्कराई. उसे शान की एकाग्रता वाले विषय के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. “शान किस बारे में इतनी तन्मयता से विचार कर रहा है?”

कुछ देर रुक कर जब उसे लगा कि शान को उसके आने का अभी तक पता नहीं चला है तब उसने नाजुकता से खाँसकर शान का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की. शान चौंक पड़ा. झेंपते हुए उसके मुँह से निकला, “कौन? केली? क्षमा करना केली. मैं तुम्हे देख नहीं पाया. कृपया अंदर आ जाओ.”

“नहीं. मैं अंदर नहीं आ रही. चलो हम तुरंत निकलते हैं, नहीं तो हमें देरी हो जायेगी. और तुम ऐसे किन ख्यालों में खोये थे कि एक सुन्दर लड़की को आते देख न सके? क्या मैंने तुम्हारी किसी अति-गंभीर, अति-महत्वपूर्ण विचार-श्रृंखला में विघ्न तो नहीं डाल दिया?”

“ओह, कुछ भी नहीं. बिलकुल नहीं,” कुछ अटपटे ढंग से शान ने जवाब दिया.

उसने इस विषय पर और कोई वार्तालाप टाल दिया. वह कुछ शरमा रहा था. यह बात केली की पैनी नज़रों से बच न सकी.

वे केली की लाल रंग की ‘पोर्श’ कार में बैठे. गाडी चल रही थी और केली बोली, “शान, जिस समुदाय से आज हम मिलने जा रहे हैं उसके बारे में जानकारी मैं तुम्हें दूँगी. हम इस समुदाय को ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ या ‘मानवता मंच’ कहते हैं.”

“जरूर बताओ. वैसे, तुम्हारी कार बहुत भव्य और सुन्दर है.”

“मेरे मॉम की है, फिर भी गाडी की तारीफ के लिए तुम्हारा शुक्रिया. अब मुझे ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के बारे मे बताने दो. इस समय ‘सैन होज़े’ में इस संगठन में करीब ४५ सदस्य हैं. यह गुट इस स्वरूप में धीरे धीरे उभर कर आया है. कोई पाँच-छह साल लगे. सदस्य युवा हैं. ये सब अत्यधिक खुले दिलो-दिमाग के, बुद्धिमान, उद्यमी और सक्रिय लोग हैं. वे उच्च मानव मूल्यों के समर्थक हैं. हम एकदम किसी भी तरह की सीमाओं से परे हैं. हम मनुष्य-मनुष्य के बीच किसी भी प्रकार का भेद-भाव नहीं रखते. अलग अलग व्यवसायों और धर्मों के पुरुष और महिलाएँ  इस गुट में शामिल हैं. इसलिए इंजीनिअर्स, डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, प्राध्यापक, बिज़नेस एक्जीक्यूटिव्स, वकील, राजनीतिज्ञ आदि सभी यहाँ हैं. और हममें हैं नास्तिक, अज्ञेयवादी, हिन्दू, इसाई, मुस्लिम, बौद्ध, यहूदी, सिख, किसी भी धर्म से न जुड़े लोग. हममें हैं श्वेत-वर्ण, कृष्ण-वर्ण, पीले-वर्ण, भूरे-वर्ण इत्यादि के लोग. भिन्न-भिन्न देशों से आये हुए लोग हैं. उनकी मातृभाषाएँ एक दूसरे से अलग हैं. सारांश में तात्पर्य यह कि हर उस व्यक्ति का यहाँ स्वागत है जो मानवतावादी है, जो खुले दिल और दिमाग का है, जो स्थापित रूढ़ियों और परम्पराओं पर सवाल करता है, जो खुद के लिये और दूसरों के लिये अच्छा सोचता है, अच्छा महसूस करता है और अच्छा करता है, जो सच्चा इंसान है.”

केली ने दी जानकारी उसे बिना रोके-टोके शान ने सुनी. पर उसे एक शंका सता रही थी. इसलिये उसने पूछ ही लिया, “इस समूह में अलग अलग देश, नस्ल, रंगभेद, धर्म, आस्था, श्रद्धा, धारणा, भाषा और व्यवसाय वाले विभिन्न पृष्टभूमियों से आये लोग क्या वाकई एक साथ मिलकर काम कर लेते हैं? या वे हमेशा अंत में एक दूसरे से असहमत रहने के लिये ही आपस में सहमति बना लेते हैं? ऐसी कौन सी बात है जिस वजह से यह गुट इतनी विभिन्नताओं के बावजूद सक्रिय है?”

“तुम्हारी सोच काफी ठीक है. मूल रूप से इस समूह का हर एक सदस्य अनोखा है.”

“यही मेरा मुख्य प्रश्न है. किसी भी कल्पना को कार्यान्वित करने के पहले उससे जुड़े सब व्यक्तियों में एक मत बन जाना जरूरी होता है. हर सदस्य का एक दूसरे से इतना ज्यादा विभिन्न होना किसी भी मुद्दे पर आम राय बनाने में गंभीर रुकावट पैदा कर सकता है.”

“सच तो यह है कि सदस्यों की विविधताओं की वजह से एक ही मुद्दे पर बहुत सारे नज़रिये और विकल्प सामने आते हैं. तत्पश्चात हमारी संस्था के उद्देश्यों की एकात्मकता और स्पष्टता और उसके साथ सदस्यों के मस्तिष्कों का खुलापन, विचारों में लचीलापन और क्रिया-कलापों की पारदर्शकता उस मुद्दे पर आम राय बनाने की प्रक्रिया आसान कर देती है. हमारे सदस्य उनके अपने अपने सांस्कृतिक और धार्मिक सीख और सोच की गलतियों, अपूर्णताओं, अपर्याप्तताओं, कमियों और खामियों से अवगत हैं. इसलिये वे एक मत या आम राय बनाने के लिये प्रत्येक व्यक्ति और प्रत्येक जगह से उनकी सबसे अच्छी बातें ग्रहण करके आत्मसात करते हैं. वे हमेशा उनको आपस में जोड़ने वाली एकमेव मानवता की संकल्पना के पक्ष में उनके अपने उन सांस्कृतिक और धार्मिक नियमों और सिद्धांतों को भी ताक पर रख देने में नहीं चूकते जो मानवता की संकल्पना के विरुद्ध हो. अंततः हरेक सदस्य मानवता के सिद्धांत को प्राथमिकता देते हुए उस पर ही केंद्रित रहता है.”

“तुमने दिया स्पष्टीकरण दिलचस्प है. पर क्या इस प्रकृति की प्रजाति वास्तव में पाई जाती है? क्या वाकई में ऐसे लोग मिल जातें हैं? यह काम बहुत कठिन मालूम पड़ता है. ऐसा प्रतीत होता है कि आप लोगों का लक्ष्य ०% नफरत और १००% प्रेम प्रकरण वाला विश्व तैयार करना है. यह एक बहुत ही कठिन और संकटमय प्रस्ताव है.”

“तुम सही कह रहे हो. हाल के दिनों में इस दुनिया में बहुत कम लोग आगे आएंगे और इन शर्तों पर खरे उतरेंगे. यही कारण है कि मात्र ४५ लोग ही समुदाय से जुड़ पाए अब तक और वह भी पांच-छह वर्षो के दौरान. लोगों की सोच बदल रही है पर दुखदाई सुस्त चाल से. पर अभी भी उम्मीद कायम है.”

“हाँ, तुम्हारे उत्साह और तुम्हारी आशा को देखकर मैं कह सकता हूँ कि यह संभव है.”

“मैं आशा करती हूँ कि एक दिन विश्व और उसके लोग बदलेंगे. तब बहुत बड़ी संख्या में लोग आगे आएंगे और हमारे द्वारा शुरू किये गये कामों को हमसे भी अच्छी भावनाओं के साथ चालू रखेंगे.”

“मैं भी ऐसी ही उम्मीद रखता हूँ.”

“तो तुम हमारे इस गुट से मिलने का मन बना चुके हो?”

“अवश्य. मैं उनसे जरूर मिलना चाहुंगा.”

अब तक वे एक पाठशाला के परिसर में पहुँच चुके थे.

केली ने शान को जानकारी देते हुए कहा, “हमने हमारी नियमित बैठकों के लिए इस पाठशाला का सम्मलेन कक्ष किराये पर ले रखा है. हम साधारणतः एक महीने में एक दिन करीब एक घंटे के लिये मिलते हैं. हमारे समूह ने इस स्थान को मुख्यतः तीन कारणों की वजह से चुना. एक तो इसकी जगह सबके लिये सुविधा-जनक है. दूसरे, यहाँ की मेज गोल आकार की है. तीसरा कारण, इसका किराया एकदम मामूली है.”

केली ने शान के चेहरे पर आई मुस्कराहट को ध्यान से देखा और फिर आगे बोली, “हम सब लोग इस गोलाकार मेज के सब ओर बैठते हैं. गोलाकार मेज पर बैठने की व्यवस्था का फायदा यह है कि इसमें मेज का प्रमुख यानी सभा का प्रमुख या सभापति कोई नहीं हो सकता. मेज के चारों ओर बैठे सभी लोग एक ही स्तर के माने जाते हैं और सभी को अपनी बातें रखने का समान मौका मिलता है.”

पाठशाला के सभा-कक्ष में केली और शान चालीस-एक व्यक्तियों के समुदाय से मिले. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे वे लोग वाकई में सामर्थ्यशील लोग हैं.

जब सब अपनी अपनी जगहों पर बैठ चुके तब केली ने गुट के प्रत्येक व्यक्ति से शान का परिचय कराया. हर एक ने उसका स्वागत किया. केली ने सबको सम्बोधित करते हुए कहा, “शान सैन होज़े में लम्बे समय के लिए रहने वाले हैं. आज मैं यहाँ उन्हें मेरा अतिथि बनाकर लाई हूँ. इन बेचारे शख्स के यहाँ अब तक केवल इक्के-दुक्के ही मित्र ही बन पाए हैं और इसलिये इन्हें एक बड़े मित्र-परिवार की आवश्यकता थी. यदि इन्हें आप सब लोग पसंद आ जाते हैं तो ये हमेशा के लिये हमारे समुदाय का हिस्सा बन जाएंगे. अब हम आज का कार्यक्रम शुरू कर सकते हैं.”

इसके बाद सदस्यों ने पिछले एक महीने का लेखा-जोखा एक दूसरे के साथ साझा किया. जिस सदस्य के बोलने की बारी आती, केली हल्की आवाज़ में शान को उस व्यक्ति का विस्तृत परिचय देती जैसे उसकी नस्ल, उसका धर्म यदि कोई हो तो, उसकी शिक्षा, व्यवसाय और परिवार सम्बन्धी जानकारी, उसका मूल देश कौन सा है इत्यादि.

एक सदस्य ने यह सूचना दी, “अभी हमारी आर्थिक स्तिथि काफी सुदृढ़ है. केली की कंपनी के चेयरमैन आश्वस्त हैं कि हमारे कामों से समस्त मानवता को फायदा हो रहा है. इसलिये उन्होंने उनकी कंपनी की कल्याण-निधि में से हमें और भी ज्यादा पूँजी देने का मन बना लिया है. मैं हाल ही में उनसे मिला और उन्हें उनकी उदारता के लिये तहेदिल से धन्यवाद दिया. मैं अमेरिका में और विश्व के अन्य देशों में ‘सुपर सॉफ्ट टेक्नोलॉजीज’ जैसी कई संस्थाए देखने की उम्मीद करता हूँ.”

इसे सुनकर केली का उसकी कंपनी के प्रति आदर और बढ़ गया. अब तक वह उसकी कंपनी की तकनीकी और व्यावसायिक निपुणता से प्रभावित थी. अब वह कंपनी का मानवीय और नैतिक रूप भी देख रही थी. “काश! इस तरह की और भी कई संस्थाएँ यदि आगे आएँ और उनका हाथ बढ़ाएँ तो कितना अच्छा होगा,” केली ने सोचा.

जब इस समूह की एक महिला की बारी आई तब वह बोली, “मैं मेरा एक अनुभव आपसे बाँटना चाहती हूँ. हाल ही में न्याय विभाग ने हमारे दफ्तर में फ़ोन किया था. एक तलाक़ के मामले में किसी भी फैसले पर पहुँचने के पहले न्यायाधीश ने तलाक़ मांगने वाले परिवार से सलाह-मशविरा करने के लिए हमारी सहायता लेना उचित समझा. न्यायाधीश को हमरो संस्था ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के बारे में जानकारी थी. मैंने इस काम का जिम्मा संभाला. मैं इस परिवार से मिली. परिवार में पति, पत्नी और उनका छह वर्ष का बच्चा है. यह एक अंतर्धार्मिक प्रेम विवाह है. पत्नी हिन्दू है और पति मुस्लिम.”

कुछ क्षण रुककर उसने उसका बोलना जारी रखा. “हाल के वर्षों में अपने बेटे की परवरिश किस तरह से की जाए इसको लेकर पति-पत्नी में झगड़े होने लगे थे. कॉफी सारे मुद्दों के बीच एक मुद्दा यह था कि उसने हिन्दू और मुस्लिम धर्मों में वर्जित खाने के पदार्थ खाने चाहिये या नहीं. लड़का पाठशाला जाता है. वहाँ वह सब तरह के खाने के व्यंजन, जिसमे हर तरह के मांसाहारी खाद्य भी शामिल हैं खाना सीख गया है. जिन बच्चों के साथ मिल-बैठ के वह खाता है वे बच्चे अलग अलग धर्मों के हैं. उसके माता और पिता दोनों को इससे दुःख होता है और उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती है. पर उनका बेटा हर तरह की खाने लायक चीजों को खाकर खुश रहता है. बच्चे के इस तरह के उनके अपने अपने धर्म से मेल न खाने वाले क्रिया-कलापों पर शुरुवात से ही अंकुश न रख पाने के लिए पति और पत्नी एक दूसरे को दोष देते रहते हैं. इसी तरह के और भी बहुत मुद्दे है जिनको लेकर वे झगड़ते रहते हैं. मैं इन सभी विषयों पर उनसे परामर्श कर रही हूँ. मैं इस प्रकरण पर आशावादी हूँ.”

एक और सदस्य ने उसके बचाव अभियान के बारे में बताया जिसमे उसने तीन अन्य सदस्यों के साथ भाग लिया था. उसने बताया, “आप सबको हाल की एक बड़ी इमारत को आग लगने की वारदात के बारे में पता ही है. उस इमारत में ४५ घर हैं. उनमे सभी रहने वालों को हमने बचा लिया है. इन घरों के निवासी मुख्यतः कम आय वाले परिवारों से थे. वे अलग अलग नस्लों और धर्मों के थे. इस वजह से और इसलिए भी कि इन लोगों की स्थानीय सम्बंधित अधिकारियों तक पहुँच नहीं थी, किन्ही भी सरकारी, सामाजिक या धार्मिक संस्थाओं से कोई सहायता नहीं पहुँची. हमने उनके रहने के लिये अस्थायी बसेरे का इंतज़ाम किया. हमने उन्हें भोजन भी दिया. हमारे मार्ग-दर्शन में उन परिवारों ने वर्तमान संकट से उभरने के लिये आपसी योगदान से काफी धन इकठ्ठा किया और एक सार्वजनिक निधि का निर्माण किया. हम बीमा कंपनी से संपर्क बनाये हुए हैं और जल्दी ही हमें फिर से इमारत खड़ी करने और उसमे परिवारों को बसाने के लिये धन मिल जाएगा.”

एक सदस्य ने यह विवरण पेश किया. “पिछले सप्ताहांत हम दो सदस्य सिएटल गये. वहाँ जाकर हमने अपनी सिएटल शाखा को उनकी नई योजना में मदद की. यह योजना चिकित्सा-सुविधाओं को लेकर है. इसके अन्तर्गन उन कर्मचारियों को चिकित्सा-सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी जिन्हें उनको काम पर रखने वाली संस्थाएँ इन सुविधाओं से वंचित रखती हैं. हम इस सम्बन्ध में बीमा संस्थाओं से भी चर्चा कर रहे हैं.”

केली ने शान को अमेरिका के अन्य शहरों में बनी ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ की शाखाओं के बारे में थोड़ी जानकारी दी. “हमारी सैन होज़े की शाखा सबसे पहले बनी. फिर हमारे कुछ सदस्यों ने अमेरिका के अन्य शहरों में बसें उनके ऐसे मित्रों को ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के बारे में बताया जिनकी विचार-धाराएँ हमसे मिलती-जुलती थी. कुछ लोगों ने अपनी पहल से भी और हमसे सलाह-मशविरा करके यह काम दूसरे शहरों में शुरू किया. अब तक हमारी शाखाएँ अमेरिका के सात शहरों में काम कर रही हैं. इन सब का एक ही उद्देश्य है- नस्ल, रंग, धर्म, जाति, उप-जाति, संप्रदाय, पंथ, सामाजिक हैसियत, आर्थिक हैसियत इत्यादि का भेद-भाव न करते हुए केवल मानवता के लिये काम करना.”

शान ने प्रश्न पूछा, “क्या सभी सातों शाखाएँ एक दूसरे से जुडी हुई हैं और एकत्रित काम करती हैं?”

“हरेक शाखा ने अपने अपने क्षेत्र निर्धारित कर लिये हैं जिनमे वे स्वतंत्र रूप से काम कर सकेंगे. सामान्यतः वे उन्ही चुने हुए क्षेत्रों में काम करते हैं. तथापि बड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिये हम एक साथ आ जाते हैं और एकत्रित काम करते हैं. सभी शाखाओं में ऊँचे दर्जे की संपर्क-यंत्रणा स्थापित है.”

“आप सब सदस्य पूर्णकालिक व्यावसायिक हैं और अपने व्यवसायों में व्यस्त रहते हैं. फिर आप ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ के लिये समय कैसे निकाल पाते हैं? आपके व्यवसाय सम्बन्धी काम-काजों से आप कैसे बाहर निकल पाते हैं? छुट्टी कैसे ले सकते हैं? यह सब एक साथ संभाल पाना कठिन होता होगा?”

“हमारी हरेक शाखा में तीन से चार मुख्य सदस्य होते हैं. ये शाखा के पूर्णकालिक कार्यकर्ता होते हैं. उन्हें उनकी शाखा से तनख्वाह मिलती है. मेरे जैसे अन्य सदस्य उनकी छुट्टियों में से कुछ दिन ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ का काम करने में बिताते हैं. हम अपनी अपनी शाखाओं को इन दिनों की सूचना वर्ष के शुरुवात में ही दे देते हैं. फिर शाखा के मुख्य सदस्य उन दिनों में हमें आवश्यकतानुसार काम के लिये बुला लेते हैं.”

उस दिन की सभा में, जिसमे शान पहली बार शामिल हुआ था, कुछ और सदस्यों ने उनके कामों और अनुभवों के बारे में समूह के अन्य सदस्यों को बताया.

जबरदस्ती धर्म-परिवर्तन की बढ़ती हुई वारदातें उनमे सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा था. कुछ देशों में बहु-संख्यक धर्म के कट्टरपंथी लोग अल्प-संख्यक धर्म के लोगों को धर्म-परिवर्तन करने के लिये जोर-जबरदस्ती कर रहे थे. इन देशों की सरकारें ऐसी घटनाओं को नज़र-अंदाज़ कर रही थीं. ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ की विचार-धारा के मुताबिक पृथ्वी के हर एक व्यक्ति को देश के संविधान के तहत खुद का धर्म या आस्था को चुनने और पालन करने का पूर्ण अधिकार मिलना चाहिये. विश्व में हर जगह जबरदस्ती किये जाने वाले धर्म-परिवर्तन बंद होने चाहिए. इसलिए ‘ह्यूमैनिटी फोरम’ इस समस्या के समाधान के लिये योजना बना रहा है.”

करीब एक घंटे के बाद सभा समाप्त हुई. सबने एक दूसरे से हाथ मिलाया और विदा ली.

शान और केली, केली की कार में बैठे. केली ने शान के घर की ओर रुख किया. शान ने आपत्ति उठाई. उसने कहा, “क्यों न किसी अच्छे रेस्तरा में जाएँ? मैं आज खाना पकाना नहीं चाहता और मुझे रेस्तराँ में जाने के लिए कंपनी की ज़रूरत है. क्या मैं तुमसे मेरा साथ देने के लिये अनुरोध कर सकता हूँ? "

शान ने केली के सामने ऐसा प्रस्ताव पहली बार रखा था.

शेली ने उदारता दिखाई. उसने कहा, "मुझे कोई समस्या नहीं है. मैंने काफी दिनों से बाहर खाना नही खाया है. इसलिये मैं तुम्हारा निमंत्रण स्वीकार करती हूँ. अपने माँ और पिता को सूचित कर लूँ?”

केली ने अपने सेल-फ़ोन से माँ को फ़ोन किया. पर फ़ोन पिताजी ने उठाया. केली ने आश्चर्य से पूछा, “हाय डैड, आपके पास मॉम का सेल-फ़ोन कैसे?”

"वह रसो-घर में है. उसका फ़ोन हमेशा की तरह दूसरे कमरे में पड़ा है. ठहरो. मैं उसे देता हूँ.”

"डैड, सुनो. रात के खाने के लिए मेरा इंतजार मत करना. मैं बाहर खाऊंगी. अब मॉम को दे दो.”

फिर उसने पिताजी को कहते सुना. "यिन, केली तुम्हारे साथ बात करना चाहती है.”

जैसे ही उसने अपनी माँ से ‘हाय’ सुना, उसने कहा, "तुम्हे याद है? मैंने तुमसे एक शख्स का जिक्र किया था ...."

“शान?”

"हाँ. उसने मुझे रात के खाने के लिए उसका साथ देने के लिए आमंत्रित किया है. हम 'ग्रीन्स' में खा रहे हैं. तो खाने के बाद मिलेंगे. मेरा इंतजार मत करना. और तुम और डैड समय पर जरूर खा लेना. बाय.”

केली उसके कानूनी अभिभावकों को बेहद पसंद करती थी उतना ही जितना उसने अपनी असली माँ क्रिस्टी को प्यार किया था.

"तुम मजे करो."

"धन्यवाद. बाय यिन."

केली शान से ख़ुशी-ख़ुशी बोली, “आओ, चलें.”

शान खुश था.



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